लैटिन अमरीकी देश मेक्सिको में जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) मक्के की खेती ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। एक ओर वहां की सरकार इसकी परीक्षण खेती की अनुमति दे चुकी है, वहीं दूसरी ओर वहां के हजारों वैज्ञानिक इसके विरोध में उठ खड़े हुए हैं। करीब दो हजार से भी अधिक वैज्ञानिकों ने सरकार को याचिका देकर डो एग्री साइंसेज और मोनसेंटो द्वारा की जा रही जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) मक्के की प्रायोगिक खेती पर रोक लगाने की मांग की है। ये वैज्ञानिक देश के उत्तरी क्षेत्र में जीएम मक्के की खेती होने से चिंतित हैं तथा इनका कहना है कि प्राकृतिक मक्के की किस्मों को पराजीनों (transgenes) के प्रदूषण से बचाए रखने लायक सामर्थ्य व संसाधन मेक्सिको के पास नहीं है।
गौरतलब है कि मक्के की उत्पत्ति मेक्सिको से ही मानी जाती है और वहां यह आहार का मुख्य स्रोत है। बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियां जीन संवर्धित मक्का को उस देश में मंजूरी दिलाने के लिए लंबे समय से प्रयत्नरत रही हैं, लेकिन पिछले ग्यारह वर्षों से सरकार ने वहां जीएम मक्के की खेती पर रोक लगा रखी थी। हालांकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आखिरकार सफलता मिल ही गयी और पिछले माह वहां की सरकार ने डो एग्री साइंसेज और मोनसेंटो नामक कंपनियों को देश के उत्तरी क्षेत्र में करीब 13 हेक्टेयर भूमि के दो दर्जन प्लाटों में पराजीनी मक्के की परीक्षण खेती करने की अनुमति दे दी।
इस संबध में सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जीन संवर्धित मक्के से प्राकृतिक किस्मों में जीनों के प्रवाह को रोकने के लिए उपयुक्त उपाय किए जा रहे हैं। उनका कहना है कि अभी सिर्फ प्रायोगिक खेती की जा रही है, जिसका उद्देश्य यह देखना है कि इन परिस्थितियों में जीन संवर्धित पौधे कितने कारगर हैं। वे कहते हैं, ‘’आधा हेक्टेयर से भी छोटे प्लॉट होंगे, प्राकृतिक मक्के से इतर समय में बीज डाले जाएंगे और देसी मक्के पर उसके असर के बारे में किसानों से सर्वेक्षण होगा।‘’
हालांकि परीक्षण खेती का विरोध कर रहे वैज्ञानिक इन तर्कों से आश्वस्त नहीं हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले के आनुवांशिकीविद मोंटगोमरी स्लाटकिन कहते हैं, ‘’देसी फसल को पराजीन-प्रदूषण से बचाने का कोई उपाय नहीं है।‘’ मेक्सिको के प्रमुख जीवविज्ञानी जोस सारुखन केरमेज कहते हैं, ‘’यदि मेक्सिको पराजीनी मक्के की प्रायोगिक खेती करता है तो यह आदर्श स्थितियों व समुचित निगरानी में होना चाहिए। लेकिन हमारे पास दोनों में से कोई चीज नहीं।‘’
फोटो नेचर से साभार
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आशोक जी इस का बिरोध होना ही चाहिये, जिस फ़सल पर कीडे नही बेठते, पक्षी उस का दाना नही चुगते, उस जहर को हम खा कर क्या बच पायेगे? पुरे युरोप मै इस की मनाही है, क्यो इसे पहले गरीब देशो मै ही लगाना चाहते है, क्या गरीबो की जान की कीमत नही,,,,,
ReplyDeleteअच्छी रपट.
ReplyDeleteईमानदारी से कहूं तो इन बीजों पर निश्चित मन नहीं बना पाया हूं।
ReplyDeleteवैज्ञानिकों द्वारा विरोध की वजह समझ नही आई।
ReplyDeleteट्रांस्जींस से क्या हानि हो सकती है, कृपया इस पर भी प्रकाश डालें, तो बेहतर समझ में आए।
@ डॉ. टीएस दराल, इस ब्लॉग पर जीन संवर्धित बीज से संबंधित बहुत से आलेख हैं। जीएम फूड या उसी तरह के अन्य टैग पर चटका लगाकर इस संबंध में अन्य जानकारियां हासिल की जा सकती हैं।
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