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Friday, April 2, 2010

उन सब का आभारी हूं, जिन्‍होंने मुझे याद रखा।

लंबे समय बाद ब्‍लॉगजगत में लौट रहा हूं। थोड़ा असहज महसूस हो रहा है, लेकिन घर लौटने पर किसे खुशी नहीं होती। बहरहाल, सबसे पहले मैं उन सभी साथियों के प्रति आभार व अभिवादन व्‍यक्‍त करना चाहूंगा, जिन्‍होंने मेरी अनुपस्थिति में भी मुझे याद रखा।

लवली कुमारी जी ने मेरी पिछली पोस्‍ट में टिप्‍पणी कर खैरियत पूछी थी। पिछले खरीफ सीजन में सूखे की वजह से कुछ परेशानियां थीं, जिनका असर मेरी जमीनी खेती-बाड़ी पर अभी भी है। लेकिन मैं ठीक हूं और अब इस स्थिति में हूं कि आप सभी से अपने विचारों व भावनाओं को साझा करने के लिए कुछ समय निकाल सकूं।

अनुराग शर्मा जी ने ताऊ की मुंडेश्‍वरी मंदिर वाली पहेली में टिप्‍पणी की है, ‘कमाल है ताऊ. पहेली कैमूर की और विजेताओं में अशोक पाण्डेय जी (खेतीबारी वाले) का नाम भी नहीं! कमाल है!’ भाई, मुझे इस पहेली का उस समय पता ही नहीं चल पाया, वरना विजेता बनने का यह मौका तो समीर भाई से पहले ही मैं झटक लेता:) वैसे मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि पहेली के जरिए कैमूर की धरती पर मौजूद इस प्राचीनतम हिन्‍दू मंदिर की चर्चा हुई। चर्चाकारों व विजेताओं को मेरा हार्दिक धन्‍यवाद और बधाई। मैं स्‍वयं इस बात के लिए प्रयत्‍नशील रहा हूं कि बिहार से बाहर के लोग भी इस अनमोल धरोहर के बारे में जानें। मुंडेश्‍वरी मंदिर से संबंधित मेरे तीन आलेख नेट पर मौजूद हैं, दो मेरे ब्‍लॉग में और एक साप्‍ताहिक अखबार ‘चौथी दुनिया’ में।

आपको यह जानकर संतोष होगा कि ब्‍लॉगिंग से दूर रहने के बावजूद मैं इंटरनेट से दूर नहीं था। नेट पर मैं तकरीबन हर रोज आता था, लेकिन जरूरी काम निपटाने तक ही टिक पाता था। मैंने कुछ डायरीनुमा ब्‍लॉग बना रखे हैं, जिनमें मैं विविध समाचारपत्रों की साइटों पर प्रकाशित काम लायक खबरों की कतरनों का संग्रह करता हूं। यह काम भी मैंने कमोबेश जारी रखा।

ब्‍लॉगिंग से दूर रहने की वजह से मुझे क्षति भी हुई। ‘खेती-बाड़ी’ का गूगल पेजरैंक 3 से 2 हो गया और ब्‍लॉग एग्रीगेटरों की सक्रियता क्रमांक में भी यह काफी पीछे खिसक गया। मैं ट्विटर के निर्देश के मुताबिक अपने खाते को अपडेट नहीं कर पाया, और अब अपने ट्विटर अकाउंट तक पहुंच नहीं पा रहा हूं। ब्‍लॉगजगत में इस बीच कई नए साथी जुड़े होंगे, कई नई जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ होगा, मैं उन सबसे दूर रहा। इस क्षति की पूरी भरपाई तो संभव नहीं, लेकिन उम्‍मीद है कि आंशिक भरपाई शीघ्र कर लूंगा।

इतने दिनों बाद लौटने पर ब्‍लॉगजगत बिलकुल बदला-बदला नजर आ रहा है। ब्‍लॉगवाणी व चिट्ठाजगत का रूप-रंग तो बदला दिख ही रहा है, साथी ब्‍लॉगरों के चिट्ठों की साज-सज्‍जा भी पहले से अलग और आकर्षक नजर आ रही है। एक नजर उन सब पर डालनी है, इसलिए अभी के लिए इतना ही। तब तक के लिए राम-राम।

Thursday, May 7, 2009

गूगल को बताइए अपनी कहानी, वह सुनना चाहता है आपकी जुबानी।

कनाडा के यानिक कुस्‍सॉन का 17 सालों से अपने पिता से संपर्क टूटा हुआ था। उन्‍हें नहीं पता था कि उनके पिता कहां हैं और क्‍या कर रहे हैं। एक दिन उनके घर में इंटरनेट आया। उन्‍होंने गूगल सर्च बॉक्‍स में अपने पिता का नाम लिखा, और फिर चमत्‍कार हो गया। गूगल सर्च के जरिए उन्‍होंने अपने बिछड़े हुए पिता को पा लिया।

तब से आज तक कुस्‍सॉन अपने पिता के संपर्क में हैं, और वह दिन आज भी उनकी स्‍मृति में ताजा है। दरअसल दुनिया में ऐसे अनगिनत लोग होंगे जिनके जीवन पर गूगल सर्च ने इसी तरह अमिट छाप छोड़ी होगी। हो सकता है उन शख्‍सों में आप भी हों जिनके जीवन पर गूगल ने काफी असर डाला हो।

यदि ऐसा है तो देर किस बात की। इस लिंक पर जाकर गूगल के ग्रुप प्रोडक्‍ट मैनेजर जैक मेंजेल की पोस्‍ट पढि़ए और उनके बताए ठिकाने पर लिख भेजिए अपनी कहानी। जी हां, आपकी कहानी का इंतजार हो रहा है।