
लाइव हिन्दुस्तान डॉटकॉम में वाशिंगटन से प्राप्त एजेंसी की खबर में कहा गया है –
‘’विंध्य नदीघाटी के जीवाश्मों के एक नए अध्ययन के मुताबिक धरती पर जीवन की शुरुआत पहले के अनुमान से 40 करोड़ साल पहले हुई है। कर्टिन तकनीकी विश्वविद्यालय के ब्रिगर रासमुसेन की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक दल ने भारत के विंध्य घाटी के कुछ नमूने का अध्ययन किया और पाया कि यहां के जीवाश्म 1.6 अरब साल पुराने हैं। यह पहले के यहां पाए गए जीवाश्मों से एक अरब साल पुराने है, वहीं धरती के किसी भी हिस्से में पाए जीवाश्मों से ये 40 से 60 करोड़ साल पुराने हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक उन्होंने इस काम के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल किया। प्रो़ रासमुसेन ने बताया कि जीवाश्म के शुद्ध परीक्षण के लिए सारे प्रयास किए गए। उनका कहना था कि भारतीय प्रयोगशालाओं में पहले हुई जांचों में त्रुटि हो सकती है। उन्होंने बताया कि जीवाशम के आयु निर्धारण के लिए उसमें मौजूद पास्पोरेट का लेड डेटिंग किया गया। करोड़ों साल पहले जीवाश्मीकरण की प्रक्रिया में समुद्र तल पर पास्पोरेट कार्बनिक पदार्थों पर जमा होने लगे। उनका कहना था कि यह पद्वति काफी सटीक होती है।‘’
उल्लेखनीय है कि विंध्य पर्वतमाला क्षेत्र में प्रागैतिहासिक मानव की गतिविधियों के भी पुष्ट प्रमाण मिले हैं। इस पर्वतश्रृंखला की तलहटी में मौजूद भीमबेतका के प्राकृतिक शैलाश्रयों में पाषाणयुगीन मानव के बनाए हुए बेहतरीन भित्ति-चित्र मौजूद हैं। इस स्थल को यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर रखा है।
ऐसा लगता है कि जीवन की निरंतरता का क्रम इस क्षेत्र मे कभी टूटा ही नहीं। विंध्य पर्वतश्रृंखला का ही एक अंग कैमूर पहाड़ी है, जिसके शिखर पर बिहार के कैमूर जिले में मुंडेश्वरी मंदिर मौजूद है। उपलब्ध साक्ष्यों के ताजा अध्ययन के मुताबिक इसे भारत का प्राचीनतम हिन्दू मंदिर बताया जा रहा है। खास बात यह है कि करीब 2000 साल से इस मंदिर में निरंतर पूजा होती रही है।
विंध्य पर्वत की चर्चा भारतीय पौराणिक कथाओं में भी मिलती है। पुराकथाओं में इस क्षेत्र में बहनेवाली गंगा, कर्मनाशा आदि नदियों की भी चर्चा है। शायद ये तथ्य भी इस भूभाग में जीवन की प्राचीनता और निरंतरता की ओर ही संकेत करते हैं।