
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ग्लोबल वार्मिंग या भूमंडलीय उष्मीकरण धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी को कहते हैं, जिसके फलस्वरूप जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। ऐसा धरती के वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का घनत्व बढ़ने, ओजोन परत में छेद होने और वन व वृक्षों की कटाई की वजह से हो रहा है।
वायुमंडल में मौजूद कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड आदि जैसी ग्रीनहाउस गैसें धरती से परावर्तित होकर लौटनेवाली सूर्य की किरणों को रोक कर धरती का तापमान बढ़ाती हैं। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली उत्पादन संयंत्रों, उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध गैसीय उत्सर्जन के चलते वायुमंडल में कार्बन डायआक्साइड में वृद्धि हो रही है। पेड़-पौधे कार्बन डाइआक्साइड को अवशोषित करते हैं, लेकिन उनकी कटाई की वजह से समस्या गंभीर होती जा रही है। इसके अलावा जैसा कि वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती के ऊपर बने ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें (ultra violet rays) सीधे धरती पर पहुंच कर उसे लगातार गर्म बना रही हैं। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकती है। यह सीएफसी की वजह से नष्ट हो रही है जिसका इस्तेमाल रेफ्रीजरेटर , अग्निशामक यंत्र इत्यादि में होता है।
बताया जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से धरती पर मौजूद बर्फ और ग्लेशियर के पिघलने से समुद्री जल स्तर बढ़ जाएगा, जिससे तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन की वजह से रेगिस्तान का विस्तार भी बढ़ेगा। हालांकि इसका सबसे त्वरित और तात्कालिक कुपरिणाम बढ़ते हुए तापमान के कारण महामारी, सूखा, बाढ़, दावानल, पेयजल संकट जैसी विपदाओं के रूप में सामने आनेवाला है। ज्यादा गर्म तापमान वाले विश्व में मलेरिया, यलो फीवर जैसी बीमारियां तेजी से फैलेगी, साथ ही कई नयी संक्रामक बीमारियां भी पैदा होंगी। बढ़ते तापमान के कारण हमारे उपजाऊ इलाके कृषि या पशुचारण के योग्य नही रहेंगे, इससे दुनिया की आहार आपूर्ति को खतरा हो सकता है।
भारत में तो जलवायु परिवर्तन की विभीषिका शुरू भी हो गयी है और मुझे इस बात में तनिक भी संदेह नहीं कि इसकी सबसे अधिक पीड़ा हम भारतीय ही भोगने जा रहे हैं। एक अरब से अधिक की आबादी वाले जिस देश में अधिकांश लोगों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान आज भी समस्या है, आग उगलती धरती के स्वाभाविक शिकार वही लोग होंगे। हमारी दृढ़ मान्यता है कि प्रकृति अपना न्याय जरूरी करती है। भारतवासियों को बगानों, वृक्षों व ताल-तलैयों को नष्ट करने की कीमत धरती की आग में जलकर चुकानी होगी। मानसून में विलंब होने भर से पेयजल और सिंचाई के लिए यहां किस तरह हाहाकार मच गया है, यह गौर करने की बात है।
यदि आपको अब भी अपनी चौखट पर जलवायु परिवर्तन की आहट सुनाई नहीं देती तो अपने वातानुकूलित घर से बाहर निकलें और नंगे पांव चार कदम शुष्क धरती पर चलें, या फिर इन खबरों का संदेश समझें :
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