
घाघ और भड्डरी के जीवन के बारे में प्रामाणिक तौर पर बहुत ज्ञात नहीं है। उनके द्वारा रचित साहित्य का ज्ञान भी ग्रामीणों ने किसी पुस्तक में पढ़ कर नहीं बल्कि परंपरा से अर्जित किया है। कहावतों में बहुत जगह 'कहै घाघ सुनु भड्डरी', 'कहै घाघ सुन घाघिनी' जैसे उल्लेख आए हैं। इस आधार पर आम तौर पर माना जाता है कि भड्डरी घाघ कवि की पत्नी थीं। हालांकि अनेक लोग घाघ व भड्डरी को पति-पत्नी न मानकर एक ही व्यक्ति अथवा दो भिन्न-भिन्न व्यक्ति मानते हैं।
घाघ और भड्डरी की कहावतें नामक पुस्तक में देवनारायण द्विवेदी लिखते हैं, ''कुछ लोगों का मत है कि घाघ का जन्म संवत् 1753 में कानपुर जिले में हुआ था। मिश्रबंधु ने इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण माना है, पर यह बात केवल कल्पना-प्रसूत है। यह कब तक जीवित रहे, इसका ठीक-ठाक पता नहीं चलता।''
यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं महाकवि घाघ की कुछ कहावतें व उनका अर्थ :
सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।
अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
अर्थात् यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
अर्थात् यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा में तपन रहे और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
अर्थात् उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।
अर्थात् पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है।
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।
अर्थात् जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
दरअसल कृषक कवि घाघ ने अपने अनुभवों से जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे किसी भी मायने में आधुनिक मौसम विज्ञान की निष्पत्तियों से कम उपयोगी नहीं हैं।