
पिछले कुछ दिनों से कोसी नदी की बाढ़ से उत्तरी बिहार में मची तबाही की खबरों को पढ़-देख कर कर मन में उमड़ रहे भावों ने कब एक लघुकथा का शक्ल ले लिया पता ही नहीं चला। वह अच्छी या बुरी जैसी भी है, आपके समक्ष प्रस्तुत है :
भारत नामक गांव के दस भाइयों के उसे बड़े परिवार में वैसे तो सभी हिन्दीभाषी थे, लेकिन दो भाई अंगरेजी भी जानते थे।
जमींदार की गुलामी से आजाद होने के बाद सभी भाइयों ने मिलकर नया घर बनाया और नए तरीके से गृहस्थी बसाई।
हिन्दी जाननेवाले आठ भाई खुद कृषि, दस्तकारी आदि पेशे में लग गए और घर चलाने की जिम्मेवारी अंगरेजी जाननेवाले भाइयों को सौंप दी।
पहले परिवार के सारे निर्णय सबकी सहमति से होते थे। लेकिन अब अंगरेजी जाननेवाले दोनों भाई एक-दूसरे से ही विमर्श कर घर के सभी फैसले करने लगे।
धीरे-धीरे उन्होंने परिवार की अधिकांश जायदाद अपने कब्जे में कर ली और शहर में जाकर रहने लगे। शहर में अपने मकान में उन्होंने लाखों रुपये के टाइल्स लगवाए, लेकिन गांव में मौजूद हिन्दीभाषी भाइयों के मिट्टी के मकान की मरम्मत तक नहीं कराई।
एक दिन इतनी तेज बारिश हुई कि गांव के उनके और अन्य सारे लोगों के मकान ढह गए और अधिकांश लोग मलबे में दब कर मर गए। अब गांव में चारों ओर या तो मलबे और लाशें थीं, या जख्मी अधमरे लोगों की करुण चित्कार।
बारिश में मरे लोगों के जीवन का दर्द अब आंसू की शक्ल में अंगरेजी जाननेवाले भाइयों की कलम से अबाध गति से झर रहा है। कभी वे इस दर्द को अपने मुंह से बयां करते हैं, कभी उनकी लेखनी कमाल दिखाती है। अक्सर वे इस विपदा के लिए प्रकृति या सरकार को कोसते हैं। अब वे दुनिया भर के लोगों के धन्यवादपात्र हैं, क्योंकि उन्हीं के माध्यम से दुनिया को भारत गांव के लोगों की बदनसीबी व बदहाली की जानकारी मिली। अगर वे नहीं होते तो शायद लोगों को यह सब पता ही नहीं चलता।
भारत नामक गांव के दस भाइयों के उसे बड़े परिवार में वैसे तो सभी हिन्दीभाषी थे, लेकिन दो भाई अंगरेजी भी जानते थे।
जमींदार की गुलामी से आजाद होने के बाद सभी भाइयों ने मिलकर नया घर बनाया और नए तरीके से गृहस्थी बसाई।
हिन्दी जाननेवाले आठ भाई खुद कृषि, दस्तकारी आदि पेशे में लग गए और घर चलाने की जिम्मेवारी अंगरेजी जाननेवाले भाइयों को सौंप दी।
पहले परिवार के सारे निर्णय सबकी सहमति से होते थे। लेकिन अब अंगरेजी जाननेवाले दोनों भाई एक-दूसरे से ही विमर्श कर घर के सभी फैसले करने लगे।
धीरे-धीरे उन्होंने परिवार की अधिकांश जायदाद अपने कब्जे में कर ली और शहर में जाकर रहने लगे। शहर में अपने मकान में उन्होंने लाखों रुपये के टाइल्स लगवाए, लेकिन गांव में मौजूद हिन्दीभाषी भाइयों के मिट्टी के मकान की मरम्मत तक नहीं कराई।
एक दिन इतनी तेज बारिश हुई कि गांव के उनके और अन्य सारे लोगों के मकान ढह गए और अधिकांश लोग मलबे में दब कर मर गए। अब गांव में चारों ओर या तो मलबे और लाशें थीं, या जख्मी अधमरे लोगों की करुण चित्कार।
बारिश में मरे लोगों के जीवन का दर्द अब आंसू की शक्ल में अंगरेजी जाननेवाले भाइयों की कलम से अबाध गति से झर रहा है। कभी वे इस दर्द को अपने मुंह से बयां करते हैं, कभी उनकी लेखनी कमाल दिखाती है। अक्सर वे इस विपदा के लिए प्रकृति या सरकार को कोसते हैं। अब वे दुनिया भर के लोगों के धन्यवादपात्र हैं, क्योंकि उन्हीं के माध्यम से दुनिया को भारत गांव के लोगों की बदनसीबी व बदहाली की जानकारी मिली। अगर वे नहीं होते तो शायद लोगों को यह सब पता ही नहीं चलता।
(फोटो बीबीसी हिन्दी से साभार)