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Thursday, November 26, 2009

जज आप, ऐडवोकेट भी आप, बीटी बैगन का रास्‍ता साफ

क्‍या आप ने किसी केस में जज को ही पैरवी करते देखा है ? यदि ऐसा ही हो तो क्‍या फैसला होगा आसानी से समझा जा सकता है। भारत में जेनेटिकली मोडिफाईड बैगन के मामले में यही बात देखने को मिल रही है। जीएम बैगन की खेती के बारे में जिस केन्‍द्र सरकार को निर्णय लेना है, वही उस तरह की फसलों की पैरवी कर रही है। केन्‍द्र सरकार एक तरफ कह रही है कि बीटी बैगन के बारे में अंतिम निर्णय लेने से पहले सभी पक्षों से परामर्श किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर उसके संबंधित मंत्री ट्रांसजेनिक फसलों के पक्ष में चल रही मुहिम में शामिल नजर आ रहे हैं।

पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने हाल ही में सार्वजनिक रूप से बीटी बैगन का समर्थन करते हुए एक लिखित प्रश्‍नोत्‍तर में लोकसभा को बताया है कि बीटी बैगन का विकास अंतरराष्‍ट्रीय मानदंडों के अनुरूप किया गया है तथा इसके पर्यावरण संबंधी खतरे का अध्‍ययन करनेवाले विशेषज्ञों की समिति ने इसमें कोई खराबी नहीं पायी है। इसलिए इसकी खेती से देश की जैव विविधता को नुकसान होने की आशंका नहीं है। उधर केन्‍द्रीय कृषि एवं उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री के वी थामस तो यहां तक कह रहे हैं कि जीएम फसलों से क्रांति आ सकती है। वे कहते हैं कि आनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों से मानवता का कल्याण हो सकता है। जीएम फसलों के समर्थन में श्री थामस के लगातार आ रहे वक्‍तव्‍य आप यहां, यहां, यहां, और यहां देख सकते हैं।

जब कृषि, उपभोक्‍ता व पर्यावरण जैसे विभागों के मंत्री ही बीटी बैगन के पक्ष में इतनी जोरदार दलीलें दे रहे हों तो माना जाना चाहिए कि भारत में उसकी वाणिज्यिक खेती को मंजूरी अब औपचारिकता भर रह गयी है। कभी-कभी तो यह संदेह भी होने लगता है कि कहीं पहले ही पूरा मामला फिक्‍स तो नहीं कर लिया गया है।

गौरतलब है कि केन्‍द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की राष्ट्रीय खाद्य नियामक संस्था जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी पहले ही किसान संगठनों के कड़े विरोध के बावजूद बीटी बैगन को अंतिम मंजूरी दे चुकी है। कमेटी के कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया था। कमेटी के सदस्य और जाने-माने वैज्ञानिक पीएम भार्गव ने मॉलिक्यूलर प्रकृति का मुद्दा उठाया, लेकिन अन्य सदस्यों ने उसे खारिज कर दिया। अब यह मामला केन्‍द्र सरकार के पास है तथा सरकार के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की स्‍वीकृति के बाद बीटी बैगन के बीज को बाजार में उतारा जा सकेगा।

बीटी बैगन का विकास महाराष्ट्र हाईब्रिड सीड कंपनी (माहिको) ने किया है जो मोनसैंटो की पार्टनर है। बीटी शब्‍द का प्रयोग बैसिलस थ्‍युरिंगियेंसिस (Bacillus thuringiensis) के लिए किया जाता है। बैसिलस थ्‍युरिंगियेंसिस मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाया जानेवाला बैक्‍टीरिया है जो जहरीला प्रोटीन पैदा करता है। वैज्ञानिकों ने इस जहरीला प्रोटीन के लिए जिम्‍मेवार जीनों की पहचान की और उन्‍हें जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक के जरिए अलग कर फसलों की जीन संरचना में डालकर बीटी फसलें तैयार कीं। बीटी कपास, बीटी मक्‍का और बीटी बैगन जैसी फसलों के बीजों का निर्माण इसी तरीके से हुआ है। माहिको द्वारा तैयार बीटी बैगन में क्राई1एसी (cry1Ac) नामक बीटी जीन डाला गया है, जिसकी वजह से बननेवाले जहरीले प्रोटीन को खाकर कीड़े मर जाएंगे। हालांकि पर्यावरणवादियों का कहना है कि इस तरह की जीनों से तैयार जीएम फसलें मिट्टी, मानव स्‍वास्‍थ्‍य व वन्‍य प्राणियों के लिए नुकसानदेह हैं। उनका कहना है कि इनकी वजह से अन्‍य फसलें भी प्रदूषित हो जाएंगी, जिससे पर्यावरण व मानव स्‍वास्‍थ्‍य के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।

Tuesday, April 21, 2009

जहरीला प्रोटीन पैदा करनेवाला जीन ही बीटी बैगन में !

आप यह बात जानते होंगे कि भारत का पहला जीन संवर्धित खाद्य पदार्थ बीटी बैगन सरकार की सर्वोच्‍च प्रौद्योगिकी नियामक संस्‍था जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (GEAC) की स्‍वीकृति पाने के अंतिम चरण में है। उम्‍मीद है कि वर्ष 2009 के अंत तक वाणिज्यिक उत्‍पादन के लिए इसके बीज बाजार में आ जाएंगे। लेकिन क्‍या आप यह भी जानते हैं कि बीटी का मतलब क्‍या है ?

बीटी मतलब बैसिलस थ्‍युरिंगियेंसिस (Bacillus thuringiensis)। जी हां, यह मिट्टी में पाया जानेवाला वही बैक्‍टीरिया है जिसके जीन को मोंसैंटो के जीएम मक्‍का मोन 810 में मिलाया गया है, जिसकी खेती जर्मनी में प्रतिबंधित कर दी गयी।

कहने का तात्‍पर्य है कि बीटी बैगन में भी उसी तरह का जीन डाला गया है, जिसकी वजह से मोंसैंटो के जीन संवर्धित बीटी मक्‍का मोन 810 की खेती पर जर्मनी, फ्रांस सहित छह यूरोपीय देशों में रोक लगी हुई है। रोक संबंधी पूरी खबर आप हमारे पूर्व के लेख में देख सकते हैं। बैसिलस थ्‍युरिंगियेंसिस बैक्‍टीरिया का जीन मक्‍का में एक ऐसा जहरीला प्रोटीन पैदा करता है, जिससे मक्‍के को नुकसान पहुंचानेवाली कॉर्नबोरर तितली का लार्वा मर जाता है। बीटी बैगन में इस जीन के मिलावट के पीछे भी पौधे में नुकसानदेह कीटों को मारने की क्षमता विकसित करने की ही सोच है। संभव है इस जीन प्रोद्यौगिकी की मदद से कीटनाशकों पर होनेवाला किसानों का व्‍यय बचे तथा उपज में वृद्धि हो। लेकिन मानव स्‍वास्‍थ्‍य व पर्यावरण पर इसका कितना दुष्‍प्रभाव पड़ेगा, इसका समूचा आकलन अभी शेष है।

मोंसैंटो कंपनी द्वारा तैयार किए गए जीन परिवर्तित (gnentically engineered) मक्‍के की किस्‍मों के बारे में पर्यावरणवादियों का कहना है कि ये पर्यावरण, मिट्टी, मानव स्‍वास्‍थ्‍य व वन्‍य प्राणियों के लिए नुकसानदेह हैं। उनका कहना है कि इनकी वजह से अन्‍य फसलें भी प्रदूषित हो जाएंगी, जिससे पर्यावरण व मानव स्‍वास्‍थ्‍य के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि चूहों पर किए गए परीक्षणों में इस मक्‍का के खाने से उनकी रक्‍त-सरंचना में परिवर्तन, जनन क्षमता में ह्रास और लीवर व किडनी जैसे आंतरिक अंगों को क्षति पहुंचने की बात सामने आयी है। कहा जा रहा है कि खुद जर्मन कृषि मंत्रालय के सामने ऐसे कई वैज्ञानिक अध्ययन हैं, जो कहते है कि इस मक्के की खेती से तितलियों और गुबरैलों को ही नहीं, मिट्टी और पानी में रहने वाले कुछ दूसरे जीवधारियों को भी ख़तरा है।

गौर करने की बात है कि बीटी मक्‍का की खेती यूरोप में खाने के लिए नहीं, जानवरों को खिलाने के लिए होती है। लेकिन बीटी बैगन तो भारत में हमारे आप के जैसे इंसान खाएंगे। जब पशु चारा के रूप में जीएम फूड की खेती का इतना खतरा है तो आदमी के खाद्य पदार्थ के रूप में इसके उत्‍पादन का क्‍या दुष्‍प्रभाव होगा आप खुद ही आंक लीजिए।

Sunday, April 19, 2009

जीन संवर्धित फसल : किसानों के लिए टेंशन लेने का नहीं, देने का !

इस शीर्षक में तल्‍खी है, इस बात से हमें इंकार नहीं। लेकिन जीएम फसलों की वजह से क्षुब्‍ध किसानों को तसल्‍ली देने के लिए इससे बेहतर शब्‍दावली शायद नहीं है। वैसे यह बात गलत भी नहीं है। भारत में जीएम फसलों के प्रति बढ़ते रूझान से अब समय ही ऐसा आ रहा है कि देश के किसान आपके खाने के लिए जहरीला खाद्यान्‍न उपजाएंगे। सृष्टि का चक्र शायद कुछ इसी तरह घूमता है। अब तक उपेक्षा सह रहे किसानों को संभवत: इसी रूप में न्‍याय मिलनेवाला है।

जहां यूरोपीय देशों की सरकारें प्राणियों व पर्यावरण पर जीन संवर्धित फसलों के दुष्‍प्रभाव को लेकर उन पर रोक लगा रही हैं, भारत की सरकारी संस्‍थाएं उनके प्रचार में जुटी हैं। चिंता की बात यह है कि भारत के आम शहरी भी इस मामले में उदासीन बने हुए हैं, मानो उनके लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है। वे सोचते होंगे कि जीएम फसल से उन्‍हें क्‍या मतलब, इसके बारे में किसान जानें, पर्यावरणवादी जानें या सरकार। हालांकि उनकी यह उदासीनता उनके लिए बहुत बड़ा संकट उत्‍पन्‍न करनेवाली है, जिससे बचने का बाद में शायद कोई विकल्‍प न हो। वे यदि उदासीन न रहते तो सरकार पर इस मामले में गंभीर रहने का दबाव पड़ता।

देश में कृषि संबंधी सारी समस्‍याओं का खामियाजा अब तक सिर्फ किसान भुगतते आए हैं, लेकिन जीन संवर्धित फसलों के मामले में ऐसा नहीं होनेवाला। इनका सबसे अधिक नुकसान इन्‍हें उपजानेवालों को नहीं, बल्कि इन्‍हें खानेवालों को उठाना होगा। किसान को तो जीएम फसलों की वजह से पैदावार बढ़ने या कीटनाशकों पर लागत कम आने का शायद फायदा भी हो जाए, लेकिन गैर किसानों को तो सिर्फ क्षति ही क्षति है। किसान तो शायद अपने खाने के लिए थोड़ी मात्रा में परंपरागत फसल उपजा ले, लेकिन गैर किसानों के लिए तो बाजार सिर्फ और सिर्फ जीएम फसलों से ही पटा होगा।

हाल ही में जीन संवर्धित मक्‍के की खेती पर जर्मनी में रोक लगा दी गयी है। मोन 810 (MON810) नामक मोंसैंटो (Monsanto) कंपनी के जिस मक्‍के पर यह कार्रवाई हुई, उसकी खेती पर यूरोपीय संघ के पांच अन्‍य देशों फ्रांस, आस्ट्रिया, हंगरी, ग्रीस और लक्‍जेमबर्ग पर पहले से ही रोक लगी हुई थी। यूरोप में पशु चारे के लिए इस मक्‍के की खेती होती थी। आस्ट्रिया में मोंसैंटो के ही एक अन्‍य जीन संवर्धित मक्‍के मोन 863 (MON863) के आयात पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है। जीएम मक्‍के की इस किस्‍म की अमेरिका व कनाडा में खेती होती है।

हालांकि भारत की सरकार और उसकी संस्‍थाएं जीन संवर्धित फसलों के प्रति सहिष्‍णु रवैया अपनाए हुए हैं। भारत में मोंसैंटो के आंशिक स्‍वामित्‍व वाली कंपनी माहीको (Mahyco) के जीन संवर्धित बीटी कपास का बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उत्‍पादन हो रहा है तथा बीटी बैगन के वाणिज्यिक उत्‍पादन की तैयारी भी अंतिम चरण में है। जिन फसलों से जीव व पर्यावरण को होनेवाली क्षति को देखेते हुए यूरोप में प्रतिबंधित किया जा रहा है, उनके प्रति भारत के रवैये का एक नमूना तमिलनाडु कृषि विश्‍वविद्यालय के अधिकृत बयान में देखा जा सकता है। संस्‍था के रजिस्‍ट्रार ने जीन संवर्धित मक्‍का को परंपरागत मक्‍का की किस्‍मों की तुलना में वरदान मानते हुए कहा है कि यह नुकसानदेह नहीं है। देश में जैव प्रौद्योगिकी का नियमन करनेवाली शीर्ष संस्‍था जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (GEAC) है जो केन्‍द्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय के अधीन काम करती है। लेकिन वह जीन संवर्धित फसलों से पर्यावरण व मानव स्‍वास्‍थ्‍य को होनेवाली क्षति वाले पहलू पर गंभीरता से विचार करते नहीं जान पड़ती। खुद तत्‍कालीन केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री अंबुमणि रामदास ने कुछ माह पूर्व जीन संवर्धित फसलों का विरोध करते हुए कहा था कि बीटी बैगन को इसकी सुरक्षा पर बिना पर्याप्‍त शोध किए भारत में लाया गया है।

जाहिर है हमारी सरकारी संस्‍थाएं जीन संवर्धित फसलों के प्रति सहिष्‍णु बनी हुई हैं। बहरहाल हम जर्मन कृषि मंत्री सुश्री इल्‍जे आइगनर को जीएम मक्‍के की खेती पर प्रतिबंध के उनके साहसिक निर्णय के लिए धन्‍यवाद देते हुए यह सोचकर हैरान-परेशान हैं कि हमारे मंत्री इस तरह का फैसला क्‍यों नहीं कर पाते!