
यह कारनामा नीदरलैंड्स के शोधकर्ताओं ने कर दिखाया है। हालांकि यह अभी सूअर के गीले मांस की तरह है और वैज्ञानिक इसके मांसपेशी ऊत्तक में इस आशा में सुधार के उपाय में लगे हैं कि लोग किसी दिन इसे खाना चाहेंगे। वैसे अभी किसी ने इसे चखा नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि पांच साल के अंदर कृत्रिम मांस की बिक्री होने लगेगी।
डच सरकार द्वारा समर्थित इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक बताते हैं कि इस प्रक्रिया में एक जानवर से मांस लेकर लाखों पशुओं के बराबर मांस तैयार किया जा सकता है। उनका कहना है कि यह उत्पाद पर्यावरण के लिए अच्छा रहेगा तथा इससे जानवरों की पीड़ा कम होगी। उनका कहना है कि प्रयोगशाला में मांस का उत्पादन होने का यह फायदा भी है कि इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा। पशुओं के अधिकार के लिए संघर्ष करनेवाले संगठन पेटा (PETA - People for Ethical Treatment of Animals) ने भी इस मामले में कहा है कि यदि मांस मृत जानवरों का नहीं है तो उन्हें कोई नैत्तिक आपत्ति नहीं।
बहरहाल हमारे लिए तो सबसे महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया आपकी है, इस संबंध में आप क्या कहेंगे ? वैसे एक बात तो तय है कि निकट भविष्य में आचार-विचार के पुराने मानदंडों से काम नहीं चलनेवाला। आनेवाले वर्षों में शाकाहार-मांसाहार के बीच की रेखा भी उतनी स्पष्ट नहीं रहेगी, जितनी अब तक रहते आयी है।