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Friday, September 19, 2008

विदर्भ के आत्‍महत्‍या कर रहे किसानों को 4825 करोड़ रुपए में मिली सिर्फ दो फीसदी रकम

लोग समझते हैं कि सरकार किसानों को राहत पहुंचा रही है, और माल चला जाता है कुछ लोगों की जेब में। आप के द्वारा दिया गया जो टैक्‍स देश के विकास व खुशहाली पर खर्च होना चाहिए, वह घोटालों की भेंट चढ़ जाता है। आतंकवादियों व अपराधियों से भी निष्‍ठुर हैं ये घोटालेबाज। आत्‍महत्‍या कर रहे विदर्भ के किसानों का निवाला छिनने में भी इनकी आत्‍मा नहीं डोली। प्रस्‍तुत है करोड़ों रुपये का गाय भैंस घोटाला शीर्षक से बिजनेस स्‍टैंडर्ड में मुंबई डेटलाइन से प्रकाशित यह खबर :

देश में किसानों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा तो कर दी है लेकिन यह राहत पैकेज किसानों के पेट की आग न बुझाकर नेताओं और उनके चेलों की जेब में समा गया।

यह बात सूचना अधिकार के द्वारा मांगी गई जानकारी के जरिए प्रकाश में आई है। सरकारी खजाने से किसानों के लिए दिए गए 4825 करोड़ रुपए में से किसानों को मिली सिर्फ दो फीसदी रकम, बाकी की रकम बैंक, नेताओं और सरकारी बाबुओं की तिकड़ी डकार गयी।

देश में सबसे ज्यादा विदर्भ के अन्नदातों ने गरीबी और तंगहाली से परेशान होकर मौत को गले लगाना बेहतर समझा। देश-विदेश में भूख से मरने की खबरों से शर्मसार होकर महाराष्ट्र और केन्द्र सरकार ने विदर्भ के किसानों को विशेष राहत पैकेज दिया।

विदर्भ में किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने दिसंबर 2005 में 1075 करोड़ रुपए का राहत देने की घोषणा की। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जुलाई 2006 में अपने विदर्भ दौरे के दौरान इस क्षेत्र के अन्नदाताओं के विकास के लिए 3750 करोड़ रुपये देने की बात कही।

सरकारी खजाने से दिए गए पैसों के लिए योजना के तहत किसानों के बीच दुग्ध कारोबार को बढ़ावा दिया जाना था। इस पैकेज के मूल उद्देश्य किसानों को दुग्ध व्यसाय से जोड़ने के तहत 4 करोड़ 95 लाख 35 हजार रुपये जानवारों की खरीददारी में खर्च किए गए। इन पशुओं के लिए चारे और अन्य पोशक तत्वों में 63 लाख 64 हजार रुपये और गाय-भैसों पर 35 लाख 35 हजार रुपये खर्च कर दिए गए।

इसके अलावा, यवतमाल जिला दुध उत्पादक सहकारी संस्था के माध्यम से 53 लाख रुपये खर्च करने का बजट बनाया गया, जिसमें से 40.95 लाख रुपये खर्च भी कर दिए गए और 14.05 लाख रुपये खर्च किये जाने वाले है।

पहली नजर में देखने या कहें कि एसी दफ्तरों में बैठ कर इस योजना को देखने पर किसानों का लाभ ही लाभ दिखाई दे रहा है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हैं, क्योंकि सूचना अधिकार के तहत मिली लाभांवित किसानों की सूची बोगस है।

विदर्भ किसानों के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष करने वाले किशोर तिवारी कहते हैं कि हमारे नेताओं को शर्म नहीं आती है कि वे भूखे किसानों के पेट की रोटी खुद खा रहे है। इस खुलासे के बाद महाराष्ट्र सरकार जांच करने की बात कह कर मामला टालने में लग गयी है,क्योंकि महाराष्ट्र और केन्द्र की सत्ता में बैठी कांग्रेस और एनसीपी दोनों के नेता इसमें शामिल है।

किसानों के संघटन का नेतृत्‍व कर रहे किशोर तिवारी ने इन नेताओं के ऊपर आपराधिक मुकदमा चलाए जाने की मांग करते हुए कहा कि आजाद भारत का यह सबसे शर्मसार कर देने वाला गाय-भैंस घोटला है। उनके अनुसार सरकारी खजाने से किसानों के लिए राहत पैकेज के नाम से निकाली गयी राशि में से सिर्फ दो फीसदी की रकम किसानों तक पहुंची है, बाकि की राशि बैंकों, नेताओं और सरकारी अधिकारियों की तिजोरियों में जमा हो गयी है।