मुद्रास्फीति की बढ़ती दर से जूझ रही सरकार ने 15 अक्टूबर तक के लिए मक्का के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, ताकि घरेलू बाजार में उपलब्धता बढ़ाई जा सके और मुर्गी के चारे व अन्य उत्पादों की कीमतों पर नियंत्रण किया जा सके।
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के जरिए इस प्रतिबंध की घोषणा की गई जो 15 अक्टूबर तक लागू रहेगी तब तक नई फसल तैयार होगी। वित्त वर्ष 2007-08 की बंपर पैदावार के बावजूद जुलाई में मक्के की कीमत 40 फीसदी बढ़कर 970 रुपये प्रति क्विंटल हो गई जो जनवरी में 700 रुपये प्रति क्विंटल थी। सरकार ने गेहूं, गैर बासमती चावल, खाद्य तेल और दालों पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्री कमलनाथ ने हाल ही में कहा था कि कोई और उत्पाद है जो प्रतिबंध से बचा हुआ है। कारोबारियों ने कहा कि विशेषकर अमेरिका में जैव ईधन में मक्का के इस्तेमाल के कारण बढ़ रही वैश्विक मांग का असर घरेलू कीमतों पर भी हुआ। मक्के का इस्तेमाल कलफ [स्टार्च] उद्योग के अलावा मुर्गी और पशुओं के चारे के तौर पर होता है जिसके लिए सालाना 1.2 टन मक्के की जरूरत होती है।
उन्होंने कहा कि भारत मक्का का विश्व में छठा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। भारत द्वारा मक्के के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने से अंतरराष्ट्रीय बाजार पर असर पड़ेगा। भारत ने वित्तवर्ष 2007-08 के दौरान 25 लाख टन मक्के का निर्यात किया था, जबकि इसके पिछले साल 10 लाख टन मक्के का निर्यात किया गया था। दिल्ली स्थित मुर्गी चारा विनिर्माता राम विलास मंगला ने कहा कि निर्यात में बढ़ोतरी से घरेलू बाजार की उपलब्धता और कीमत पर असर पड़ा।
कीमतों में फर्क होने के कारण भारत से निर्यात की मांग मुख्यत: पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया और पश्चिम एशिया से आती है। अमेरिका के मुकाबले भारत में मक्का लगभग आधी कीमत पर मिलता है। मुर्गी पालक और कलफ निर्माता निर्यात पर पाबंदी लगाने की मांग कर रहे थे, ताकि घरेलू कीमतों को नियंत्रित किया जा सके।
आल इंडिया स्टार्च मेन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अमोल एस शेठ ने कहा कि भारत को चीन का अनुसरण करना चाहिए और मक्का के निर्यात का नियमन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नई फसल की आवक से पहले इस उद्योग को 35 लाख टन मक्के की जरूरत होगी।
(दैनिक जागरण से साभार)
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