Wednesday, April 15, 2009
जीन संवर्धित मक्के की खेती पर जर्मनी में लगी रोक
पर्यावरण पर खतरे से चिंतित लोगों को यह जानकर खुशी हो सकती है कि जर्मनी में जीन संवर्धित मक्के की खेती पर रोक लगा दी गयी है। यह रोक विख्यात अमेरिकी बायोटेक कंपनी मोंसैंटो (Monsanto) के जीन संवर्धित मक्के मोन 810 (MON810) की खेती पर लगायी गयी है। बताया जाता है कि मोन 810 में इस तरह का जीन डाला गया है जो पौधे को नुकसान पहुंचानेवाले कीड़े कॉर्नबोरर को मारने के लिए विष का काम कर सके।
मोन 810 की खेती पर रोक लगानेवाला जर्मनी यूरोपीय संघ का छठा देश है। फ़्रांस, ऑस्ट्रिया, हंगरी, ग्रीस और लक्ज़ेमबर्ग में पहले से ही इसकी खेती पर रोक लगी हुई है। इसके अलावा ऑस्ट्रिया में मोंसैंटो के ही जीन संवर्धित मक्का मोन 863 (MON863) के आयात पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है। इस फैसले का महत्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि मोन 810 ऐसी एकमात्र जीन संवर्धित फसल है, जिसकी यूरापीय संघ में वाणिज्यिक तौर पर खेती हो रही है। वहां पर इसकी खेती मुख्य रूप से पशु चारे के लिए की जाती है। यूरोपीय संघ में इसकी खेती का दस सालों का लाइसेंस समाप्त होनेवाला है और अब उसके नवीकरण की जरूरत पड़ेगी।
जर्मन कृषिमंत्री इल्जे आइगनर ने मोन 810 की खेती पर प्रतिबंध के अपने फ़ैसले की वजह बताते हुए कहा है कि इस बात का संदेह है कि जीन परिवर्तित मक्का दूसरे प्राणियों को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि उन्होंने दावा किया कि उनका फैसला विज्ञान पर आधारित है और इसका अभिप्राय सभी तरह के जीन संवर्धित फसलों पर प्रतिबंध नहीं है। सुश्री आइगनर ने कहा कि जीन अभियांत्रिकी में मनुष्य, जानवर, पौधों व पर्यावरण की सुरक्षा की संपूर्ण गारंटी समावेशित होना जरूरी है।
मोंसैंटो कंपनी द्वारा तैयार किए गए इन जीन परिवर्तित (gnentically engineered) मक्के की किस्मों के बारे में पर्यावरणवादियों का कहना है कि ये पर्यावरण, मिट्टी, मानव स्वास्थ्य व वन्य प्राणियों के लिए नुकसानदेह हैं। उनका कहना है कि इनकी वजह से अन्य फसलें भी प्रदूषित हो जाएंगी, जिससे पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न हो जाएगा। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि चूहों पर किए गए परीक्षणों में इस मक्का के खाने से उनकी रक्त-सरंचना में परिवर्तन, जनन क्षमता में ह्रास और लीवर व किडनी जैसे आंतरिक अंगों को क्षति पहुंचने की बात सामने आयी है। कहा जा रहा है कि मोंसैंटो के जीएम मक्के की इन किस्मों में डाले गए जीन की वजह से जो कीटनाशी विष तैयार होता है, वह मिट्टी में रिसकर केंचुआ जैसे मृदा स्वास्थ्य के लिए उपयोगी जीवों को हानि पहुंचाता है। इसके अतिरिक्त उसकी वजह से तितली, मकड़ी, चींटी आदि वन्य जीवों को भी नुकसान होता है।
ग्रीनपीस जैसे कई पर्यावरणवादी संगठन जीन परिवर्धित मक्के की इन किस्मों की खेती और इनके आयात पर प्रतिबंध की अरसे से यूरोप में मांग करते रहे हैं।
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शुक्रिया ,इस भस्मासुरी भुट्टे को भारत में भी भोज भात के पहले भांपना पडेगा !
ReplyDeleteये तो होना ही था।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
अंधाधुंध विकास और व्यवसायिक प्रलोभ के बीच पर्यावरण पर गंभीरता से ध्यान देना जरुरी हो गया है.
ReplyDeleteअब हमने जो हमने बोया है वो तो काटना ही पडेगा.
ReplyDeleteरामराम.
वाकई खुशी की खबर है ये तो .. जानकारी के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteभारत का क्या नजरिया है?
ReplyDeleteachcee jankari hai.bharat mein bhi aisee fasalen hoti hain kya?agar haan -to unhen bhi ban karna chaheeye.
ReplyDeleteभारत अभी जूते चप्पल फेकने में व्यस्त है कृपया ये खबर दौर ए जूता-उछाल, कठनही पीटान के बाद बतायें.....खबर ज्यादा लोगों तक पहुँचेगी :)
ReplyDeleteमोंसैंटो बहुत समृध्ध और ताकतवर कँपनी है
ReplyDeleteऐसे आलेख और लोगोँ तक पहुँचाना जरुरी है
- लावण्या
ग्रीनपीस का अब तक नाम ही सुना था.. पता नही था वाकई में कुछ होता भी होगा.. पर आपने काफ़ी कुछ जानकारी दी.. उम्मेड है वाहा तक भी पहुँचे जहाँ इसकी सख़्त ज़रूरत है..
ReplyDeleteमौनसैन्टो मुर्दाबाद!
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट, महत्वपूर्ण जानकारी।
ReplyDeleteपंचम जी सही कह रहे हैं:)