Thursday, April 2, 2009
वैज्ञानिक करें सिक्यूरिटी गार्ड का काम, तो कैसे हो कृषि अनुसंधान !
मीडिया में पिछले दिनों प्रोफेसर विजय भोसेकर की खबर आयी थी, जिसे शायद आपने देखा हो। गोल्ड मेडल से सम्मानित भारत का यह कृषि वैज्ञानिक इन दिनों कनाडा के टोरंटो शहर में सिक्यूरिटी गार्ड का काम कर रहा है। मजेदार तथ्य यह है कि प्रो. भोसेकर को गोल्ड मेडल किसी ऐरू-गैरू संस्था ने नहीं बल्कि देश में कृषि अनुसंधान के अग्रणी संगठन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने दिया है। और ये हालात तब हैं जबकि आईसीएआर की विभिन्न संस्थाओं में कृषि वैज्ञानिकों के करीब 2500 पद खाली हैं।
घोषित तौर पर कृषि क्षेत्र सरकार के एजेंडा में भले ही सबसे ऊपर हो लेकिन जमीनी सच्चाई हमेशा इसके विपरीत ही नजर आती है। जिस देश में कृषि वैज्ञानिकों की कमी की बात कही जा रही हो, वहां के कृषि वैज्ञानिक का दूसरे देश में जाकर असम्मानजनक काम करना देश में कृषि विज्ञान की उपेक्षापूर्ण स्थिति का ही परिचायक है।
कृषि विज्ञान में पीएचडी हासिल कर चुके भोसेकर पूर्व में आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद में यूनिवर्सिटी प्रोफेसर थे। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें सुरक्षा प्रहरी की पोशाक पहन भवनों की पहरेदारी करनी पड़ेगी। हालांकि अप्रैल, 2005 में कनाडा जाने के बाद से इस 49-वर्षीय शख्स को यही करना पड़ रहा है। कनाडा जाने के बाद उन्हें पता चला कि वहां भारतीय डिगरियों की मान्यता नहीं है। मजबूरन परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्हें 10 डॉलर प्रति घंटे के हिसाब से सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी करनी पड़ रही है।
इधर अपने देश में कृषि अनुसंधान का हाल यह है कि इस क्षेत्र में वैज्ञानिकों की घोर कमी है, जिसके चलते कई परियोजनाओं के ठप पड़े होने की बात कही जाती है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के विभिन्न संस्थानों के कृषि वैज्ञानिकों के करीब 38 फीसदी अर्थात 2500 पद खाली हैं। आईसीएआर कृषि अनुसंधान और विकास के लिए कार्य करनेवाला देश का सर्वोच्च संगठन है, जिसके अधीन पूरे देश में 47 संस्थान हैं। इन संस्थानों में कृषि, मवेशीपालन, मछलीपालन आदि क्षेत्रों में अनुसंधान का काम होता है। आईसीएआर के विभिन्न अनुसंधान संस्थानों में कृषि वैज्ञानिकों के कुल 6500 पद हैं, जिनमें करीब 38 फीसदी रिक्त पड़े हैं। खबरों के मुताबिक आईसीएआर के अंतर्गत काम करनेवाले भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) में वैज्ञानिकों के कुल करीब 680 पद हैं, जिनमें 280 रिक्त पड़े हैं। बताया जाता है कि देश के उत्तर-पूर्व के संस्थानों में तो और भी बुरा हाल है, जहां कृषि वैज्ञानिकों के लगभग 50 फीसदी पद खाली हैं। इसी प्रकार विभिन्न प्रांतों के अधिकारक्षेत्र में आनेवाले कृषि विश्वविद्यालयों में भी स्थिति रूचिकर नहीं है।
जिस देश की अधिकांश जनता जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर आश्रित हो, वहां कृषि वैज्ञानिकों के पदों का रिक्त रहना यही साबित करता है कि कृषि शिक्षा और अनुसंधान सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं है। इससे अधिक दुर्भाग्य की बात कुछ भी नहीं हो सकती कि जिस देश में कृषि वैज्ञानिकों की इतनी कमी हो, प्रो. भोसेकर जैसे वैज्ञानिक विदेश जाकर मकानों की पहरेदारी करें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
प्रा चीन यूनान के शासक सिकंदर (Alexander) को विश्व विजेता कहा जाता है। लेकिन क्या आप सिकंदर के गुरु को जानते हैं? सिकंदर के गुरु अरस्तु (Ari...
-
भाषा का न सांप्रदायिक आधार होता है, न ही वह शास्त्रीयता के बंधन को मानती है। अपने इस सहज रूप में उसकी संप्रेषणयीता और सौन्दर्य को देखना हो...
-
हमारे गांवों में एक कहावत है, 'जिसकी खेती, उसकी मति।' हालांकि हमारे कृषि वैज्ञानिक व पदाधिकारी शायद ऐसा नहीं सोचते। किसान कोई गलत कृ...
-
आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
-
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान कि...
विचारणीय आलेख-चिन्ताजनक स्थितियाँ.
ReplyDeleteअमरीका के किसी भी कार्यक्षेत्र मेँ , यहीँ की समकक्ष परीक्षा देने के बाद ही आपको यहाँ पर नौकरी मिलती है -
ReplyDeleteएक प्राँत से दूसरे अगर टीचर का काम भी करना हो तब, पुन: सर्टीफिकेट लेना पडता है यही कायदा है -
और डाक्टरी या कृषि विशेशज्ञ को भी शायद यहाँ परीक्षा देनी अनिवार्य हो -
ये मामला वाकई चिँताजनक है -
- लावण्या
पाण्डेय जी ,
ReplyDeleteयह दो गंभीर स्थितियों की और संकेत करता है -एक तो यह कि भारतीय क्रषि विज्ञान की पढ़ाई का स्तर ही वैश्विक स्तर का ही नहीं है -और यह कुछ हद तक सही भी है ! यहाँ पुरस्कारों की रेवडियाँ इस कदर बंटी हैं कि प्रतिभा उसमें दब गयी है ! दूसरे धनलोलुपता में लोगबाग देश सेवा छोड़ कर विदेश जाते हैं -कदाचित यह हो कि वे सज्जन इसी काबिल हों जिस के लिए उन्हें हर घंटे कुछ डालर दे दिए जा रहे हैं !
सरकार की ओर से कृषि क्षेत्र को गंभीरता से न लिए जाने का दुष्परिणाम ही तो किसान झेल रहे हैं ... करे कोई भरे कोई।
ReplyDeleteआपका ये लेख और प्रोफ़ेसर विजय भोसेकर की कथा बड़ी विचित्र है. मुझे ये समझ में नहीं आया की अगर विजय भोसेकर के पास डिग्री नहीं थी तो उनको वीसा कैसे मिला. कनाडियन दूतावास (http://geo.international.gc.ca/asia/new-delhi/ ) के सूचना के अनुसार वर्क परमिट कनाडा जाने से पहले ही मिलना चाहिए,
ReplyDeleteif you to work in Canada, you must get a work permit before coming to Canada. This can only be done once you have been offered a job in Canada and your prospective employer has demonstrated to a Human Resources and Social Development Centre (HRSDC) in the city where the job is located, that the employment opportunities of Canadian citizens and residents will not be adversely affected.
और अगर कोई व्यक्ति कनाडा में इम्मिग्रेट कर रहा है तो उसको वह पर काम करने के लिए कुछ शर्ते है, जिनमे से एक प्रमुख पंक्ति को आप निचे पढ़े.
Once your job offer confirmation has been issued by HRSDC, you will then need to apply for a Work Permit from the visa office.be a skilled worker who has at least one year of experience in one or more of the following occupations:
और इस लिस्ट में
४१२१: University Professors
भी शामिल है.
रही बात भारतीय डिग्री के न मानने की तो अगर डिग्री की मान्यता नहीं थी तो वर्क परमिट कैसे मिला.
इसका एक ही तरीका हो सकता है की भोसेकर कनाडा विजिटिंग वीसा पे गए हो (जिसके लिए वर्क परमिट की जरुरत नहीं होगी ) और वहा जा के वो इम्मिग्रेंट बने हो.
२५०० पोस्ट खाली रहने की तो इसमे गलती दोनों तरफ से है, जहा भारत में नौकरी के लिए तमाम तरह के गणित की आवस्यकता होती है, वही विजय भोसेकर जैसे लोग भी है, जो सरकारी नौकरी पाते है, और फिर भाग जाते है. और सच पूछिये तो विजय भोसेकर जैसे लोगो के लिए दुनिया के किसी कोने में दया नहीं दिखाई जानी चाहिए, आखिर वो भारत में पढ़े (जिसके लिए निश्चित रूप से विदेशो की तुलना में उनको बहुत कम धन खर्च करना पड़ा होगा ) और उससे भी बड़ी बात की उनके पास एक रोजगार भी था (अगर पढ़ने के बाद बेरोजगार होते तो उनका रोजगार की तलाश में विदेश जाना दूसरी बात है), यह अवसर बादी लोग है, और इनके साथ जो भी हो रहा हर ठीक हो रहा है. वैसे भी विजय भोसेकर आपने इस हालत से खुश ही है जैसा की उनके बयान से लगता है, और अगर खुश ना होते तो कनाडा छोड़ के भारत आने के लिए उनके पास रास्ते हमेशा है.
जो अनामी भाई ने लिखा यही मैंने भी सोंचा आखिर वो गए ही क्यों ..? फिर भी यहाँ भारत में स्थिति तो चिंताजनक है ही
ReplyDeleteवैसे हम आप की बात से सहमत हैं. अरविन्द जी की हाँ में हाँ भी मिला रहे हैं. धनलोलुपता ने ही इन सज्जन को विदेश जाने के लिए प्रेरित किया होगा.
ReplyDeleteप्रोफेसर विजय के साथ यह दुखद हुआ। कृषि वैज्ञानिक के लिये देश में ही सम्मानजनक स्थान होना चाहिये।
ReplyDelete----
शिव कुमार मिश्र की एसएमएस से भेजी श्री उदय प्रताप जी की पंक्तियां याद आती हैं:
एक बार रवि के प्रति दैन्यभाव जागा।
डूबने को चढ़ता है व्योम में अभागा।
न बोला, और क्या फल होगा उसका;
जो पूरब में जन्म ले कर पश्चिम को भागा।
खैर, यह पंक्तियां विषयान्तर हैं।
Aapka aalrkh sochne ko majboor karta hai.
ReplyDeleteदुखद है यह ..पर सोचने का विषय भी है ..बहुत सी बाते हैं जो इस केस में विचारणीय है
ReplyDeleteबात कुछ हजम नहीं हो रही है .
ReplyDeleteविचारणीय आलेख
ReplyDeleteबहुत विचार करने लायक लिखा है आपने. और बहुत ही चिंताजनक बात है.
ReplyDeleteरामराम.
स्वर्ण पदक प्राप्त वैज्ञानिक की योग्यता पर शक करना हमारे संदेहवाद का ही सूचक है हाँ हो सकता है उनका देश छोड़ना व्यक्तिगत निर्णय हो जिसके पीछे यहाँ के तंत्र से उपजी हताशा न हो जैसा कई मामलों में होता है.
ReplyDeleteमेने आप का लेख पढा, ओर सारी टिपण्णियां भी पढी... ओर बस मुस्कुरा दिया... हम सब बाते तो बहुत बडी बडी करते है, लेकिन जिस पत बीत रही होती है वो ही जानता है, कनाडा ही नही भुत से देशो मे हमारे भारतीया वैज्ञानिक , डा०, इन्जिंयर काम करते है, कारण क्या हमरे भारत मै बिना जानपहचान के, बिन सिफ़ारिस के, बिना रिशवत दिये, बिना अपना समम्मन खोये नोकरी मिलना आसान है? यह लोग किता पढते है, कितनी मेहनत करते है, फ़िर जा कर इन्हे डिगरी मिलती है, ओर जब नोकरी का समय आता है तो नोकरी के ले रिश्वत के लिये इअतना मुंह खोला जाता है कि सामने वाला अपने आप को लानत भेजता है, फ़िर निकम्मे नेता इन्हे अपने इशारो पर नचाना चाहते है, क्या लाभ फ़िर इतनी पढाई का, अगर यकीन नही तो मै आप को देता हुं दो तीन लोगो के पत्ते जिन्होने ऎम ऎ मै गोलड मेडल लिया ओर आज रिकक्षा चला रहे है, हमारे देश मै ही इन लोगो की कदर नही, कदर है तो गुंडो मवालियो की, जो अपने आप को भारत का राजा समझ्ते है, मुझे प्रोफ़ेसर विजय भोसेकर जी से सहानुभुति है, ओर फ़िर दुनिया मै कोन सा काम असम्मानजनक काम है ? आप मे से कोई मुझे बतायेगा, सब से असम्मानजनक काम है मां बाप के टुकडो पर ऎश करनी, दुसरो का हक मारना, चलाकी करनी, मेहनत कर के कमाना कोई असम्मानजनक काम नही है.
ReplyDeleteधन्यवाद
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletebenaami kahtey hain---अगर खुश ना होते तो कनाडा छोड़ के भारत आने के लिए उनके पास रास्ते हमेशा है.
ReplyDelete--paristhityan aisee ho jaati hain ki....aap wapas aane ke layak hi nahin rah jaate...ek immigration mein kitna khracha ata hai..aap hisaab lagaayeey..aur agar back home koi backing na ho..to koi rasta nahin bachta...bahut baar to achchey achchey logon ke paas..ticket afford karne ke paise nahin hote--yah sachhayee hai...
Gaman movie to dekhi hogi aap ne -yah wahi sach bhi ho sakta hai---
exceptional cases ke baare mein nahin kah rahi...yah bahuton ki kahani hai..US/canada mein...
gaman movie dekhi thi??
hamne apne canada visit ke samay bahut aise asians se baat ki /miley jo in halaaton se gujar rahey hain...magar kush hain..har countries ke apne positive negative sided hain--
ReplyDeleterahi baat india mein pratibha ki--to Bihar mein ek mathmatician ke baare mein tV mein dekha tha..jinhen NASA se invitation mila tha..magar desh prem mein unhone reject ar diya..
aaj wah schizophrenia nam ki bimari se bimaar hain aur ilaaj ke poore painse bhi nahi hain--un ki likhi ganit ki kitaaben school mein chalti hain..wahi kamaayee hai..bataayeeye..agar yahi vyakti wahan hote to aaj unki pratibha ka sahi upyog hua hota..
western countries mein sabhi money ke liye jaatey hain aisa nahin hai..wahan talent ko encourage kartey hain..haal hi main..hamare parichit ke bete ko california mein uski acedemic excellency par..PG ki ek saal mein hi degree de di..aur ab PhD ka raha hai..har samy 24 hrs..ek chauffeur ready hota hai jab bhi Lab mein jana ho..
...achcha bura har jagah hai.Ek-do cases se generalise karna theek nahin hai.
बेहद दुखद स्थिति है..बात जो आप ने लिखी है वह बिल्कुल सही है..यह बात समीर जी भी जानते होन्गे.
ReplyDeletebahut si degrees wahan accept nahin hoti.
is baat ka sabhi ko dhyan rakhna chaeeye..ki usee university ko select kare--jo UCG se affiliated ho.
Canada bahut strict hai degree recognisitions ke mamle mein..
yah ek kadwaa sabh hai ki wahan ek driver ko salary ek manager se jyada milti hai....
aur bahut se aise bhi professionals hain jo wahan ka exam qualify nahin kar paatey aur phir jo job mil jaati hai wahi kar lete hain....social security hoti hai...
Videsh mein jaane wale aur wahan jaa kar basne walon..ke liye aksar....wahan bas jaana ek majboori hoti hai....ek aisee gale mein fansi haddi..jo na nikaali jaati hai na nigali jaati hai...
Jo bhi videshon mein jaane ka sochtey hain aaj ki sthityon mein nahin jaana chaheeye...bharat mein jo stability hai kahin nahin hai.
----
Aap doctors ko taxi driver bane dekh saktey hain magar wah khush hai...ek anesthetist hai jo packing factory mein kaam kartey hain....
yah sab sach hai...:)
--ham ne apne canada pravaas ke dauraan is baare mein bahut logon se baat ki hai.. jinhen yah baat sach nahin lag rahi un ke liye bahut si sites bhi hain jahan testimonial evidence hain....
lekin yah sach hai ki consumer act etc ke chaltey kuchh jobs bahut safe aur more income wali hain...kyonki western countries mein....dignity of labour hai jo INDIA mein nahin hai.
लगी-लगायी प्रोफेसर की नौकरी छोड कर विदेश जाने के पीछे सिवाय लोलुपता के ऒर कुछ नहीं लगता ऐसे ही समझदारों ने भारत का नाम डुबो रखा है भारत सरकार को ऐसे लोगों की डिग्रियां ही निरस्त कर देनी चाहिये
ReplyDeleteकनाडा के टोरांटो शहर से ही लिख रही हूँ इसलिये कनाडा के ऐसी परिस्थितियों से वाक़िफ़ भी हूँ। कई डाक्टर और इस तरह के वैज्ञानिक टोरांटो में ऐसे नौकरी कर रहे हैं जिन्हें यहाँ आड जब्स कहा जाता है। ये तभी तक जब तक कि वो रिक्वायर्ड क्रेडिट प्राप्त नहीं कर लेते। ये आर्टिकल आपने टोरांटो स्टार से लिया है और इस में कई अच्छी बातें भी हैं जैसे कि सिक्योरिटी गार्ड होने का न तो इन्हें दुख है, न ही पड़ोसी इन्हें नीची नज़र से देखते हैं।("The thing about Canada is, I don't feel I lose my dignity. People respect me for what I do.")
ReplyDelete) इनके बच्चे अब अच्छी यूनिवर्सिटी में दाखिला पा चुके हैं और ये ख़ुद भी अपने डिग्री को यहाँ के मुताबिक अपग्रेड करने में लगे हैं आदि। मगर हाँ, किसी भी देश में इमिग्रेट करने से पहले हज़ार बार ये सोच कर आना चाहिए कि इसके क्या अच्छे और बुरे परिणाम हो सकते हैं और आपका गोल क्या है। अगर आप वो गोल हासिल नहीं कर सकते हैं तो आपका अगला क़दम क्या होना चाहिये। अल्पना जी का कमेंट भी काफ़ी महत्वपूर्ण है। वैसे सच है कि कुछ लोग सिर्फ़ कनाडा आने के लिये ही बस यहाँ आ जाते हैं, एक झिलमिलाती दुनिया का सपना देख कर...र नई जगह में बसने के अपने हार्ड शिप्स हैं और उन सबके लिये उन्हें तैयार तहना चाहिये।
mere comments mein UCG-ko-UGC padha jaye..
ReplyDeleteUGC
is ki bhartiy official site yah hai--
http://www.ugc.ac.in/index.html
jab bhi aap admission lete hain to yahan se apni university ki jaaanch jarur karen.
yah videsh jana chahne walon ke liye pahla important step hai.
pandey ji ka dhyan is taraf jana bahut hi sarahne yogya hai...aaj hindustan me higher qualify degree liye log ache naukri ki talas me be-rojgar ghumte rahte hai...lekin ab agriculture sector me bahut badi karanti aane wali hai...reliance jaise company ne kheti karne ke liye hajaro acre land haryana me liya hai...mujhe lagta hai ki ab aane wale samay me degree holder's ko videsh jane ki jarurat nahi padegi...aur na hi videsh ja kar driver & guard ki naukri karni padegi...Gopal Ojha
ReplyDeleteविचारणीय आलेख-चिन्ताजनक सोच. जब लोग इतने बड़े, परिपक्व और जिम्मेदार होते हुए भीसिर्फ़ विदेश में बसने के लिए किसी भी तरह के समझौते करने के लिए तय्यार हो जाते हैं और बाद में भी खुश होने के बजाय इस नयी जिन्दगी की भी उसी तरह शिकायत करते नज़र आते हैं जिस तरह भारत में एक प्रतिष्ठित नौकरी में होते हुए करते थे तो इस बात पर ध्यान जाना स्वाभाविक है की कमी अपनी सोच में भी है.
ReplyDeleteऔर हाँ, भारत और अमेरिका में हुए अपने अनुभवों के आधार पर अरविन्द मिश्रा जी के कथन से पूर्ण सहमति है मेरी.
ReplyDeleteमौदगिल साहब का ज़ोर बिल्कुल सही है!
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र
Kheti aur usaki samsyaaon ki jaanakaari dene waala shodhparak blog.
ReplyDeletebahut achha prayas hai.
A Special Free Online English to Hindi Dictionary. Please do visit for review. EngHindi.com
ReplyDeleteभारत एक कृषि प्रधान देश है और रहेगा इस में कोई संदेह नहीं है। विगत कुछ सालों से आयी आयातित गहरी जुताई ,रासायनिक उर्वरक ,भारी सिंचाई और मशीनों के कारण हमारे देश पर कृषि के अस्तित्व का भारी संकट आ गया है। खेत मरुस्थल में तब्दील होते जा रहे हैं और किसान खेती छोड़ रहे हैं। खेती किसानी के संकट के कारण उद्योग धंदे भी मंदी की चपेट में है। पर्यावरण नस्ट होते जा रहा है इस कारण महामारियां अपने चरम पर पहुँच रही है। हम सब जानते हैं की हमारी खेती किसानी हमारे पशुधन से जुडी है किन्तु अब पशुओं के लिए चारे का गंभीर संकट आ गया है इस कारण पशुधन भी लुप्तप्राय होने लगा है। एक और हमारे पालनहार अनाज ,फल सब्जियां प्रदूषित हो गए हैं वहीँ अच्छा दूध ,अंडे मांस भी अब उपलब्ध नहीं है। इसलिए अब हम बड़े खाद्य संकट में फंस गए हैं। वैज्ञानिक खेती के कारण हमारा पालनहार कार्बो आहार इतना खराब हो गया है की हर दसवा इंसान मधुमेह , मोटापे और कैंसर जैसी घातक बीमारी के चंगुल में फंसते जा रहा है। दालें जिन्हे हमारे पूर्वज बच्चे पाल कहते थे लुप्त होती जा रही हैं। उनमे भी आवशयक पोषक तत्व नदारत हैं। समस्या यह आ गयी है की आखिर हम क्या खाएं क्या नहीं खाये।
ReplyDeleteLatest News | Indian Farmers
Hi i like your post realy i have read first time Thanks for sharing keep up the good work.
ReplyDeleteupagriculture
great work
ReplyDeletewww.Khetikare.com
Pls go through Local Update
ReplyDeleteand forward suggestions.
Farming of Tulsi
ReplyDeletePm kisan Fruits
ReplyDeleteअरबी की खेती
ReplyDeleteस्ट्राबेरी की खेती
ReplyDeleteToday Mandi Rate
ReplyDelete