Sunday, March 29, 2009

ब्‍लॉगिंग यानी विचारों का मेला....ब्‍लॉगलेख यानी छोटी अनुभूतियों की बड़ी बात

आखिर हम क्‍यों करते हैं ब्‍लॉगिंग ? क्‍या मिलता है हमें इसमें ? कुछ लोग इसके जरिए पैसा जरूर कमाते हैं, लेकिन अधिकांश को तो एक पाई भी नहीं मिलती। फिर हम अपना इतना समय और श्रम क्‍यों जाया करते हैं ? ये सवाल बार-बार पूछे जाते हैं और पूछे जाते रहेंगे। लेकिन मेरी तरह शायद बहुत से ऐसे लोग होंगे जो इस तरह से नहीं सोचते।

हम हर दिन सैकड़ों ऐसे काम करते हैं जिनके पीछे अर्थोपार्जन जैसा कोई उद्देश्‍य नहीं होता। कहीं कोई अच्‍छा दृश्‍य नजर आता है, हम उसे अपलक देखते रहते हैं। कोई अच्‍छा गीत सुनाई पड़ता है, हम उसे जी भर के सुनना चाहते हैं। कहीं कोई प्‍यारा बच्‍चा अंकल कहता है और हम उसे गोद में उठा लेते हैं। इन कार्यों से हमें क्‍या मिलता है ? जा‍हिर है हमारा जवाब होगा, हमें यह सब अच्‍छा लगता है...ऐसा कर हमें संतोष मिलता है...हमें सुख की अनुभूति होती है।

बस इतनी-सी ही बात है। हम संतोष के लिए ब्‍लॉगिंग करते हैं। हम इसे इसलिए करते हैं क्‍योंकि यह अच्‍छा लगता है। ब्‍लॉगिंग ब्‍लॉगर को आत्मिक सुख देता है। मैं अपनी बात करूं तो मुझे ब्‍लॉगिंग में मेला घूमने जैसा आनंद आता है। मेरी दृष्टि में यह विचारों का मेला है। मेले में लोग अपने सामान लेकर आते हैं, नुमाइश करते हैं और जिन्‍हें पसंद आता है वे उन्हें ले लेते हैं। उसी तरह ब्‍लॉगिंग में दुनिया भर के लोग हर रोज अपने विचार ओर जानकारियां लेकर आते हैं। विचारों के इस मेले में हमारे पास बहुतेरे विकल्‍प होते हैं, हमें जो पसंद आता है उसे पढ़ते हैं और अपने भी विचार रखते हैं। इससे हमारे चिंतन को धार मिलती है और जानकारियों का विस्‍तार होता है।

एक औसत आदमी अपनी छोटी-छोटी अनुभूतियों के साथ जीता है। उसकी छोटी अनुभूतियां ही उसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी बातें होती हैं। और उसकी अनुभूति सिर्फ उसी के लिए नहीं, उसी जैसे दूसरे आदमी के लिए भी बड़ी बात होती है। ब्‍लॉग लिखने और पढ़नेवाला सबसे बड़ा वर्ग आम आदमी का है। यह आदमी क्षणों में जीता है, छोटे-छोटे लम्‍हों में जीता है। छोटी-छोटी खुशियों में उसे अपार सुख मिलता है, मामूली-से आघात से वह दुखी हो जाता है। यही कारण है कि सामान्‍य-सी दिखनेवाली संवेदना ब्‍लॉगर के लिए बड़ी बात होती है और इस जमात द्वारा यह पसंद भी की जाती है। किसी नामचीन ब्‍लॉगर के भारी-भरकम राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक विश्‍लेषण में एक आम ब्‍लॉगर की उतनी रूचि नहीं होती, जितनी अपने जैसे किसी औसत ब्‍लॉगर की मानसिक हलचल या दिल की बात में।

आइए इसी बात पर पढ़ते हैं हमारे प्रिय कवि रघुवीर सहाय की एक कविता :

आज फिर शुरू हुआ
रघुवीर सहाय

आज फिर शुरू हुआ जीवन
आज मैंने एक छोटी-सी सरल-सी कविता पढ़ी
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा

जी भर आज मैंने शीतल जल से स्‍नान किया

आज एक छोटी-सी बच्‍ची आयी, किलक मेरे कन्‍धे चढ़ी
आज मैंने आदि से अन्‍त तक एक पूरा गान किया

आज फिर जीवन शुरू हुआ।

(कविता राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रतिनिधि कविताएं से साभार उद्धृत, यह कविता 1954 में लिखी गयी थी।)

22 comments:

  1. हम संतोष के लिए ब्‍लॉगिंग करते हैं। हम इसे इसलिए करते हैं क्‍योंकि यह अच्‍छा लगता है। ब्‍लॉगिंग ब्‍लॉगर को आत्मिक सुख देता है।


    शब्दशः सहमत !

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  2. Aapke Bhai Ki Bhabhi Ki...
    Saas Ke Bhai Ki Biwi Ki...
    Saas Ke Pati Ke Jamai Ke...
    Pote Ki Maa Ki Nanand Ka
    Bhai Apka kaun Hai???

    Jawab De

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  3. अच्‍छी पोस्‍ट लिखी है आपने। रघुवीर सहाय की कविता पढ़वाने के लिए आभार।

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  4. बहुत ही सुंदर ओर मेर दिल की बात कही आप ने, मुझे तो यहा सिर्फ़ मनोरंजन मिलता है, ओर दिल लगा रहता है, ओर कभी कभी ग्याण की बाते भी मिल जाती है.
    एक दम सटीक लिखा आप ने धन्यवाद

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  5. आपने एकदम सही लिखा है. एक आत्मिक सुख की अनुभूति तो अवश्य होती है लेकिन उसके लिए शर्त यह है कि लोग हमारी प्रस्तुति को देखें. जितने अधिक लोग देखते हैं उतना ही अधिक आनंद भी मिलता है सहाय जी कि कविता अच्छी लगी.

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  6. कम से कम हिन्‍दी में ब्‍लागिंग करनेवालों की तो यही कहानी है ... आत्मिक संतुष्टि ... अच्‍छा लगता है ... और क्‍या ?

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  7. रघुवीर सहाय की कविता पढवाने के लिए शुक्रिया .....!!

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  8. हां ब्लॉगिंग का भी अपना मज़ा है। रघुवीर सहाय की कविताएं तो मुझे बहुत पसंद हैं।

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  9. बिल्कुल! अपनी अनुभूतियों और अपनी क्रियेटिव इचिंग (खुजली?) को ब्लॉगिंग एक सशक्त माध्यम मिल गया है। और शायद एक प्रकार की सोच के अलग अलग जगह के लोग जुड़ रहे हैं इस माध्यम से।
    दूरियां कम होना इसे कहते हैं।

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  10. बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें

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  11. बिलकुल सही लिखा आपने. हम तो अपने हाथ जगन्नाथ वाली कहावत की वजह से ही ब्लागिंग कर रहे हैं. किसी के उपर निर्भर्ता या रचना रिजेक्ट होने का दर नही. बस दिमाग मे खुजली ऊठी की मिटा डाली.:)

    और भारी भरकम और बुद्धिजिविता का ढींढोरा पिटने वालों की गलियों मे भी नही झांकते हम तो. अपने जैसे लोग हों फ़िर तो परमाम्नंद आता है.

    रामराम.

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  12. अच्छा सहज लेख लिखा। रघुवीर सहाय जी की कविता पढ़वाने का शुक्रिया।

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  13. "किसी नामचीन ब्‍लॉगर के भारी-भरकम राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक विश्‍लेषण में एक आम ब्‍लॉगर की उतनी रूचि नहीं होती, जितनी अपने जैसे किसी औसत ब्‍लॉगर की मानसिक हलचल या दिल की बात में।"
    आपसे पूर्ण सहमती है पाण्डेय जी!

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  14. आपका यह लेख मेरे जैसे कई लोगो के दिल की बात कह गया..बहुत ही सरल और सहज भाव में आपने ब्लॉगर के मन को खोल कर रख दिया.

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  15. बहुत खुशी हुई अशोक जी आपकी सोच को मेरी सोच के करीब देखकर.. बिल्कुल सही कहा आपने ये ब्लॉगिंग विचारो का मेला ही तो है...

    और हाँ ब्लॉग का नया ले आउट भी बहुत बढ़िया.. लहलहाती फसल सुकून देती है..

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  16. दिल की बात कही आप ने,बेहतरीन प्रस्तुति,रघुवीर सहाय की कविता पढवाने के लिए शुक्रिया !

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  17. एक-एक शब्द बिल्कुल सही लिखा है । वाकई ब्लॉगिंग आत्मिक सुख देता है । और साथ ही एक परिवार भी । :)

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  18. अपने विचार व्यक्त करने का इस से अच्छा और कोई जरिया नहीं लगता है ..आपसे सहमत .रघुवीर सहाय की यह कविता बहुत अच्छी है ..

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  19. और देखिये न विचारों के इसी मेले में आपसे मिलना हो गया.

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  20. भाई अशोक पाण्डेय, मैं आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ. आपने सही लिखा है.

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  21. अच्छा लिखा आपने.. कविता रोचक लगी..

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  22. vicharon ka mela ye bloging bilkul sahi bat...acha laga padhkar..

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अपना बहुमूल्‍य समय देने के लिए धन्‍यवाद। अपने विचारों से हमें जरूर अवगत कराएं, उनसे हमारी समझ बढ़ती है।