जब देश के अन्य भागों में अपने किसान भाइयों की आत्महत्या की घटनाएं पढ़ता-सुनता हूं तो अक्सर सोचता हूं कि कौन-सी ताकत है जो बिहार व उत्तरप्रदेश के हम पूरबिया किसानों को मरने नहीं देती। कौन से बुनियादी तत्व है, जिनके बूते हम मॉरीशस, फीजी अथवा दिल्ली, पंजाब जाकर मजदूरी कर जी लेते हैं, लेकन जान नहीं देते। मुझे लगता है कि हर मुश्किल में जीने का जीवट प्रदान करनेवाले वे मौलिक तत्व हमारे लोकपर्व व लोकसंगीत हैं, और संभवत: फागुन उनमें सर्वोपरि है।
फागुन में जिस होलिका का हम दहन करते हैं उसे हम ‘सम्मत’ कहते हैं। ऐसा कहने में एकजुटता व आपसी सम्मति से अगले संवत् को सकुशल गुजार लेने की प्रचंड आशावादिता का भाव अंतर्निहित होता है। जब हम रंगों में सराबोर होकर फाग गाते हैं तो पिछले सारे गम व कष्ट भूल जाते हैं तथा जीवन जीने की नयी उर्जा से लबरेज हो उठते हैं। तो चलिए आज हम लंबे समय से निष्क्रिय पड़े खेती-बाड़ी में भी होली से संबंधित रचनाओं व गीतों की ही बात करते हैं। गौर करने की बात यह है कि होली के विविध रंगों की भांति होली से संबंधित रचनाओं के भी अलग-अलग रंग व मिजाज हैं। हमारे यहां होली से संबंधित गीतों में भक्ति व अध्यात्म की अविरल धारा मिलेगी तो राष्ट्रवाद व देशप्रेम के सोते भी फूटते मिलेंगे। अल्हड़ता व मस्ती के स्वर तो हर जगह सुनाई देंगे।
भारतीय लोकजीवन में रचे-बसे होली से संबंधित ऐसे ही गीतों में सबसे पहले प्रस्तुत है, गंगा-जमुनी संस्कृति के पुरोधा अमीर खुसरो की एक रचना :
दैया री मोहे भिजोया री शाह निजाम के रंग में।
कपरे रंगने से कुछ न होवत है
या रंग में मैंने तन को डुबोया री।
पिया रंग मैंने तन को डुबोया
जाहि के रंग से शोख रंग सनगी
खूब ही मल मल के धोया री।
पीर निजाम के रंग में भिजोया री।
भक्तिकाल की प्रसिद्ध कवयित्री मीरा बाई ने होली से संबंधित कई भक्ति रचनाएं की हैं, जिनमें कुछ यहां प्रस्तुत की जा रही हैं :
मत डारो पिचकारी,
मैं सगरी भिज गई सारी।
जीन डारे सो सनमुख रहायो,
नहीं तो मैं देउंगी गारी।
भर पिचकरी मेरे मुख पर डारी,
भीज गई तन सारी।
लाल गुलाल उडावन लागे,
मैं तो मन में बिचारी।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर,
चरनकमल बलहारी।
उनकी दूसरी रचना :
होरी खेलन कू आई राधा प्यारी, हाथ लिये पिचकरी।
कितना बरसे कुंवर कन्हैया, कितना बरस राधे प्यारी।
सात बरस के कुंवर कन्हैया, बारा बरस की राधे प्यारी।
अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो, बैयां पकड झक झारी।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर, तुम जीते हम हारी।
मीरा बाई की एक अन्य रचना, जिसे इस लिंक पर आशा भोंसले की आवाज में यूट्यूब पर भी सुना जा सकता है :
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
सील संतोख की केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥
घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥
उनकी निम्नलिखित रचना को भी इस लिंक पर यूट्यूब पर सुना जा सकता है :
होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो,
संग जुबती ब्रजनारी।
चंदन केसर छिड़कत मोहन ,
अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग,
स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तहं,
दै दै कल करतारी।
फाग जु खेलत रसिक सांवरो,
बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया,
मोहनलाल बिहारी।
संत कवि सूरदास भी कहां पीछे रहनेवाले हैं :
हरि संग खेलति हैं सब फाग।
इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।।
सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन।
बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन।।
डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग।
अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग।।
एक कोध गोविन्द ग्वाल सब, एक कोध ब्रज नारि।
छांडि सकुच सब देतिं परस्पर, अपनी भाई गारि।।
मिली दस पांच अली चली कृष्नहिं, गहि लावतिं अचकाई।
भरि अरगजा अबीर कनक घट, देतिं सीस तैं नाईं।।
छिरकतिं सखि कुमकुम केसरि, भुरकतिं बंदन धूरि।
सोभित हैं तनु सांझ समै घन, आये हैं मनु पूरि।।
दसहूं दिसा भयो परिपूरन, सूर सुरंग प्रमोद।
सुर बिमान कौतुहल भूले, निरखत स्याम बिनोद।।
रसखान तो हैं ही रस की खान :
फागुन लाग्यो जब तें तब तें ब्रजमण्डल में धूम मच्यौ है।
नारि नवेली बचैं नहिं एक बिसेख यहै सबै प्रेम अच्यौ है।।
सांझ सकारे वहि रसखानि सुरंग गुलाल ले खेल रच्यौ है।
कौ सजनी निलजी न भई अब कौन भटु बिहिं मान बच्यौ है।।
गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रतीक 18वीं-19वीं शताब्दी के शायर नजीर अकबराबादी ने होली पर कई सुंदर रचनाएं लिखी हैं। उनकी एक प्रसिद्ध रचना निम्नलिखित है:
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।
हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे,
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे,
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे,
कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे,
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की।
गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो,
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो,
मुंह लाल, गुलाबी आंखें हो और हाथों में पिचकारी हो,
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो,
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।
और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।
ये धूम मची हो होली की, ऐश मज़े का झक्कड़ हो,
उस खींचा खींची घसीटी पर, भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो,
माजून, रबें, नाच, मज़ा और टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो,
लड़भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो,
जब ऐसे ऐश महकते हों, तब देख बहारें होली की।
इसे छाया गांगुली ने बहुत सुंदर तरीके से गाया है, जिसे यूट्यूब पर इस लिंक पर सुना जा सकता है।
युगप्रवर्तक साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा होली पर लिखित इन पंक्तियों का स्वर गौर करने की अपेक्षा रखता है :
कैसी होरी खिलाई।
आग तन-मन में लगाई॥
पानी की बूँदी से पिंड प्रकट कियो सुंदर रूप बनाई।
पेट अधम के कारन मोहन घर-घर नाच नचाई॥
तबौ नहिं हबस बुझाई।
भूँजी भाँग नहीं घर भीतर, का पहिनी का खाई।
टिकस पिया मोरी लाज का रखल्यो, ऐसे बनो न कसाई॥
तुम्हें कैसर दोहाई।
कर जोरत हौं बिनती करत हूँ छाँड़ो टिकस कन्हाई।
आन लगी ऐसे फाग के ऊपर भूखन जान गँवाई॥
तुम्हे कछु लाज न आई।
सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की रचना :
यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,
आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!
निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,
आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!
प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,
जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!
विख्यात शास्त्रीय गायक पं. छन्नूलाल मिश्र का गाया यह प्रसिद्ध फाग न सुना जाए तो होली की चर्चा अधूरी रहेगी :
खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेलैं मसाने में होरी,
भूत पिसाच बटोरी, दिगंबर खेलैं मसाने में होरी।
लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,
चिता-भस्म भरि झोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी।
गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना कौनो बाधा,
ना साजन ना गोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी।
नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी,
पीटैं प्रेत थपोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी।
भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज कै छोरी,
धन-धन नाथ अघोरी, दिगंबर खेलैं मसाने में होरी।
इसे यहां जाकर यूट्यूब पर सुना जा सकता है।
प्रसिद्ध गायिका शोभा गुर्टू द्वारा गाया गया होली से संबंधित यह गीत भी काफी कर्णप्रिय है, जिसे इस लिंक पर यूट्यूब पर सुना जा सकता है :
रंगी सारी गुलाबी चुनरिया रे,
मोहे मारे नजरिया संवरिया रे।
जावो जी जावो, करो ना बतिया,
ए जी बाली है मोरी उमरिया रे।
मोहे मारे नजरिया संवरिया रे
रंगी सारी गुलाबी चुनरिया रे
मोहे मारे नजरिया संवरिया रे
चलते-चलते आग्रह करूंगा कि महान बांग्ला कवि काजी नजरुल इस्लाम की रचना ‘ब्रजो गोपी खेले होरी..’ जरूर सुनें। यह यूट्यूब पर मोहम्मद रफी और सबिहा महबूब की आवाज में मौजूद है।
(रचनाएं मुख्यत: कविता कोश और चित्र विकिपीडिया से लिया गया है।)
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बहुत अच्छा लगा आप का लेख, विचारणिया, ओर गीत भी मस्त लगे, आप को सपरिवार होली की शुभकामनाऎं
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहम फाग चैता सुनते हैं यदा कदा। तभी हममें जीवन का कुछ अंश है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत, जीवन इसी लोक परंपरा के सहारे ज्यादा सुखद रहता है, होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
ReplyDeleteजानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्याख्या।
मन आनंदित कर दिया आपने.. सहेज कर रखने लायक पोस्ट है...
ReplyDeleteआपको ढेरों शुभकामनाएं...
very nice lines and this shows our culture great and thanks for these great lines
ReplyDeletefor health realted u can go on one to top