Wednesday, January 7, 2009
सरकारी नीतियों ने करायी बासमती चावल की फजीहत
भारत सरकार की नीतियों ने हमारे बासमती चावल (Basmati Rice) का यह हाल कर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके खरीदार नहीं मिल रहे हैं। अपने स्वाद और खुशबू के लिए दुनिया भर में विख्यात इस चावल की यह दशा भारत सरकार द्वारा इसके निर्यात पर शुल्क लगाए जाने की वजह से हुई है।
निर्यात शुल्क के चलते पाकिस्तानी बासमती के मुकाबले भारतीय बासमती की कीमत 400 डॉलर प्रति टन ज्यादा हो गयी है। इस कारण खरीदार पाकिस्तानी बासमती को तरजीह दे रहे हैं और पिछले कुछ महीनों में भारतीय बासमती चावल को बाजार के एक बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा है।
मालूम हो कि घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता सुनिश्चित करने की खातिर केन्द्र सरकार ने अप्रैल 2008 में बासमती पर निर्यात शुल्क लगा दिया था, लेकिन इसे हटाने पर वित्त मंत्रालय ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। निर्यातकों की बार-बार मांग के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने वित्त मंत्रालय से मामले को देखने को कहा है।
करीब 5000 करोड़ रुपए के भारतीय बासमती चावल का खरीदार तलाश रहे इसके निर्यातकों की परेशानी का आलम यह है कि उन्हें 8000 रुपए प्रति टन के शुल्क के अलावा 1200 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य से भी पार पाना पड़ता है। इन वजहों से पश्चिम एशिया और यूरोप के परंपरागत बाजारों में सिर्फ दस फीसदी भारतीय बासमती का निर्यात ही हो रहा है। कारोबारी अमूमन बासमती किसानों से उनकी फसल खरीदने का करार अक्टूबर-दिसंबर के बीच करते हैं। इस बीच पाकिस्तान की मुद्रा में काफी गिरावट आयी और वहां का बासमती चावल भारत के मुकाबले 400-500 डॉलर प्रति टन सस्ता पड़ने लगा। निर्यातकों का का कहना है कि पाकिस्तानी बासमती के मुकाबले 100-150 डॉलर प्रति टन प्रीमियम का बोझ तो वह सह सकते हैं, लेकिन मौजूदा 400-500 डॉलर प्रति टन प्रीमियम का बोझ उठाना उनके लिए मुमकिन नहीं।
गौरतलब है कि पाकिस्तान में इस बार बासमती की बंपर फसल हुई है और वहां की मुद्रा भी काफी कमजोर हुई है। एक डॉलर के बदले पाकिस्तानी मुद्रा का भाव 82 रुपए है। इसके अलावा, पाकिस्तान भारतीय बासमती के बाजार को हासिल करने के लिए हर संभव कोशिश भी कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि विश्व में बासमती चावल के बाजार में भारत का हिस्सा 53 फीसदी है। दुनिया के 130 देशों में भारत के बासमती चावल का निर्यात होता रहा है। सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, यमन, कनाडा, ईरान, जर्मनी, ओमान, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस सीरिया, बेल्जियम और आस्ट्रेलिया आदि हमारे देश के बासमती चावल के कुछ प्रमुख आयातक देश हैं। वर्ष 2006-07 के दौरान चीन को भी प्रायोगिक तौर पर 54 टन बासमती चावल का निर्यात किया गया था।
भारत की आधिकारिक कृषि उत्पाद निर्यात संस्था 'कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ निर्यात विकास प्राधिकरण' (एपीईडीए) के अधिकारियों की मानें तो भारतीय बासमती को गुणवत्ता, स्वाद और सुगंध तीनों ही स्तरों पर व्यापारिक प्रतिद्वन्दी पाकिस्तान की अपेक्षा वरीयता दी जाती है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में भारी अंतर ने सारा गुड़ गोबर कर दिया है।
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अजी डरिये नही भारत का बासमती का मुकाबला पाकिस्तानी चावल नही कर सकता, अब भी यहा पाकिस्तानी चावल भारतीया नाम से ही बिक सकता है, पकिस्तानी नाम से उसे कोई नही खरीदने वाला, तो फ़िर सस्ते मै क्यो बेचो????
ReplyDeleteधन्यवाद
बढ़िया आलेख। हमारी जानकारी बढ़ी। शुक्रिया..
ReplyDeleteसरकार में त्वरित निर्णय लेने वाले सक्षम लोगों की कड़ी आवश्यकता है. एक बार बाज़ार हाथ से निकल जाए तो फ़िर हाथ आते-आते बरसों लगते हैं - शायद न भी आए.
ReplyDeleteअन्य क्षेत्र भी हैं जो सरकारी आतंकवाद झेल रहे हैं क्रषि क्षेत्र भी उसी का उदाहरण है। जानकारी अच्छी लगी।
ReplyDeleteकस्टम ड्यूटी के मामले में लगभग हर सेक्टर यही कहता है कि सरकारी नीतियां निर्यात चौपट कर रही हैं।
ReplyDeleteइस मामले में शायद सही भी हो।
अशोक जी, नमस्कार
ReplyDeleteसही कह रहे हो जी आप. सरकारी नीतियों की वजह से ही सारा गुड गोबर हो रहा है.
बढ़िया लेख | जानकारी के लिए आभार
ReplyDeleteइस बारे में कोई जानकारी नहीं. आभार इस जानकारी के लिए. हर मामले में सरकारी नीतियाँ बेकार ही क्यों होती हैं?
ReplyDeleteबहुत सही और सटीक लिखा आपने. उपाय और नीतियां जो समय रहते कारगर रहती हैं वो समय बीतने के बाद नहीं. कुछ त्वरित निर्णय भी अति आवश्यक होते हैं.
ReplyDeleteरामराम.
chinta n karen hamara v no. aayega. lekh badhiya hai jankari badhi.
ReplyDeleteसरकार की नीँद उडाने के लिये क्या किया जाये अशोक भाई ?
ReplyDeleteजानकारी का आभार जी
- लावण्या
तब से ही चावल के दाम यहाँ बेतहाशा बढ़े थे, १० डॉलर में जितना आता था उतना ही चावल १८ डॉलर में मिलने लगा था लेकिन दिवाली के बाद ये १३-१४ डॉलर पर टिक गया। ये सिर्फ एक ही ब्रांड के साथ हुआ हो सकता है वो लोग पाकिस्तान से मंगाने लगे हों। वैसे भी यहाँ अमेरिकन बासमती चावल नही खाते, इसकी ज्यादातर खपत भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों द्वारा ही होती है।
ReplyDeleteजानकारी के लिये शुक्रिया!
ReplyDeletebouth he aacha post kiyaa aapne
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बेहद सुन्दर जानकारी, आभार...!!
ReplyDeleteअद्भुत जानकारियों से भरा आलेख......कमाल है सरकार चेतती क्यों नही ?
ReplyDeleteबहुत ही बढिया.......
ReplyDeleteजानकारी हेतु आभार