क्या आप ने किसी केस में जज को ही पैरवी करते देखा है ? यदि ऐसा ही हो तो क्या फैसला होगा आसानी से समझा जा सकता है। भारत में जेनेटिकली मोडिफाईड बैगन के मामले में यही बात देखने को मिल रही है। जीएम बैगन की खेती के बारे में जिस केन्द्र सरकार को निर्णय लेना है, वही उस तरह की फसलों की पैरवी कर रही है। केन्द्र सरकार एक तरफ कह रही है कि बीटी बैगन के बारे में अंतिम निर्णय लेने से पहले सभी पक्षों से परामर्श किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर उसके संबंधित मंत्री ट्रांसजेनिक फसलों के पक्ष में चल रही मुहिम में शामिल नजर आ रहे हैं।
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने हाल ही में सार्वजनिक रूप से बीटी बैगन का समर्थन करते हुए एक लिखित प्रश्नोत्तर में लोकसभा को बताया है कि बीटी बैगन का विकास अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप किया गया है तथा इसके पर्यावरण संबंधी खतरे का अध्ययन करनेवाले विशेषज्ञों की समिति ने इसमें कोई खराबी नहीं पायी है। इसलिए इसकी खेती से देश की जैव विविधता को नुकसान होने की आशंका नहीं है। उधर केन्द्रीय कृषि एवं उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री के वी थामस तो यहां तक कह रहे हैं कि जीएम फसलों से क्रांति आ सकती है। वे कहते हैं कि आनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों से मानवता का कल्याण हो सकता है। जीएम फसलों के समर्थन में श्री थामस के लगातार आ रहे वक्तव्य आप यहां, यहां, यहां, और यहां देख सकते हैं।
जब कृषि, उपभोक्ता व पर्यावरण जैसे विभागों के मंत्री ही बीटी बैगन के पक्ष में इतनी जोरदार दलीलें दे रहे हों तो माना जाना चाहिए कि भारत में उसकी वाणिज्यिक खेती को मंजूरी अब औपचारिकता भर रह गयी है। कभी-कभी तो यह संदेह भी होने लगता है कि कहीं पहले ही पूरा मामला फिक्स तो नहीं कर लिया गया है।
गौरतलब है कि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की राष्ट्रीय खाद्य नियामक संस्था जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी पहले ही किसान संगठनों के कड़े विरोध के बावजूद बीटी बैगन को अंतिम मंजूरी दे चुकी है। कमेटी के कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया था। कमेटी के सदस्य और जाने-माने वैज्ञानिक पीएम भार्गव ने मॉलिक्यूलर प्रकृति का मुद्दा उठाया, लेकिन अन्य सदस्यों ने उसे खारिज कर दिया। अब यह मामला केन्द्र सरकार के पास है तथा सरकार के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की स्वीकृति के बाद बीटी बैगन के बीज को बाजार में उतारा जा सकेगा।
बीटी बैगन का विकास महाराष्ट्र हाईब्रिड सीड कंपनी (माहिको) ने किया है जो मोनसैंटो की पार्टनर है। बीटी शब्द का प्रयोग बैसिलस थ्युरिंगियेंसिस (Bacillus thuringiensis) के लिए किया जाता है। बैसिलस थ्युरिंगियेंसिस मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाया जानेवाला बैक्टीरिया है जो जहरीला प्रोटीन पैदा करता है। वैज्ञानिकों ने इस जहरीला प्रोटीन के लिए जिम्मेवार जीनों की पहचान की और उन्हें जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक के जरिए अलग कर फसलों की जीन संरचना में डालकर बीटी फसलें तैयार कीं। बीटी कपास, बीटी मक्का और बीटी बैगन जैसी फसलों के बीजों का निर्माण इसी तरीके से हुआ है। माहिको द्वारा तैयार बीटी बैगन में क्राई1एसी (cry1Ac) नामक बीटी जीन डाला गया है, जिसकी वजह से बननेवाले जहरीले प्रोटीन को खाकर कीड़े मर जाएंगे। हालांकि पर्यावरणवादियों का कहना है कि इस तरह की जीनों से तैयार जीएम फसलें मिट्टी, मानव स्वास्थ्य व वन्य प्राणियों के लिए नुकसानदेह हैं। उनका कहना है कि इनकी वजह से अन्य फसलें भी प्रदूषित हो जाएंगी, जिससे पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।
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बहुत अच्छी जानकारी दी आपने.
ReplyDeleteरामराम.
The question is what to eat and what not to eat!
ReplyDeleteबी टी के नुक्सान तो पता है . जो हम इस समय खा रहे है वह भी तो कम जहरीला नही है .
ReplyDeleteआशोक जी आप की बात से सहमत हुं, बहुत सुंदर लेख लिखा, एक नजर इधर भी बी टी बेंगन
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