कृषि से संबंधित एक बड़ी खबर यह है कि चीन ने अपने यहां स्थानीय तौर पर विकसित किए गए आनुवांशिक रूप से संवर्धित (Genetically Modified Rice) चावल को मंजूरी दे दी है। चीन के वैज्ञानिकों के हवाले से यह खबर देते हुए रायटर समाचार एजेंसी ने कहा है कि वहां के कृषि मंत्रालय की बायोसेफ्टी कमेटी ने आनुवांशिक रूप से संवर्धित कीट-प्रतिरोधी बीटी चावल को बायोसेफ्टी प्रमाणमत्र जारी कर दिए हैं और इसी के साथ उस देश में अगले दो से तीन सालों में इसकी बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक खेती का मार्ग प्रशस्त हो गया है। चूंकि चीन दुनिया में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है, इसलिए इस खबर का खासा महत्व है और पर्यावरण समर्थक संगठनों में इसको लेकर चिंता व्याप्त है।
गौरतलब है कि स्थानीय स्तर पर विकसित किए गए बीटी-63 (Bt-63) नामक कीट-प्रतिरोधी जीन संवर्धित चावल की श्रृंखला को मंजूरी अभी वहां के कृषि मंत्रालय की बायोसेफ्टी कमेटी ने दी है। इसका मतलब है कि चीन के कृषि मंत्रालय से अनुमोदन अभी बाकी है। लेकिन जिस तरह से जीएम फसलों की ओर चीन का झुकाव बढ़ रहा है, माना जा सकता है कि यह अनुमोदन भी देर-सबेर मिल ही जाएगा। माना जा रहा है कि पंजीकरण और प्रायोगिक उत्पादन जैसी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद ही वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होगा, लेकिन अनुमान जताया जा रहा है कि अगले दो-तीन सालों में ये औपचारिकताएं पूरी हो जाएंगी। चीन ने पिछले सप्ताह जीन संवर्धित फाइटेस (GM phytase) नामक जानवरों को खिलाए जानेवाले अनाज (Corn) को भी बायोसेफ्टी मंजूरी दी है।
इस बीच पर्यावरण समर्थक संगठन ग्रीनपीस ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि चीन में जीएम चावल को मंजूरी अभी पूर्ण नहीं है और यह उतना आसान भी नहीं है। संगठन ने कहा है कि दुनिया की बीस फीसदी से भी अधिक आबादी को खतरनाक जेनेटिक प्रयोग से बचाने के लिए चीन के कृषि मंत्रालय से उसके द्वारा अनुरोध किया जा रहा है। विदित हो कि हर साल करीब 59.5 मिलियन टन चावल उपजानेवाला चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक है। इसमें से अधिकांश चावल की घरेलु स्तर पर ही खपत हो जाती है, लेकिन कुछ निर्यात भी होता है।
पर्यावरण संगठनों का कहना है कि जीई फूड से चीन में स्वास्थ्य, पर्यावरण व खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से क्षति होगी तथा उसके निर्यात पर बुरा असर पड़ सकता है। ग्रीनपीस के चीन में मौजूद एक कार्यकर्ता के शब्दों में जीई चावल के वाणिज्यिकरण से चीन की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी, क्योंकि इस तरह के चावल का अधिकांश पेटेन्ट मोंसैंटो जैसी विदेशी कंपनियों के नियंत्रण में है।
फोटो ग्रीनपीस से सभार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
-
भूगर्भीय और भूतल जल के दिन-प्रतिदिन गहराते संकट के मूल में हमारी सरकार की एकांगी नीतियां मुख्य रूप से हैं. देश की आजादी के बाद बड़े बांधों,...
-
इस शीर्षक में तल्खी है, इस बात से हमें इंकार नहीं। लेकिन जीएम फसलों की वजह से क्षुब्ध किसानों को तसल्ली देने के लिए इससे बेहतर शब्दावली ...
-
म हान संत कवि तुलसीदास रचित हनुमान चालीसा दुनिया में सबसे अधिक पढ़ी जानेवाली साहित्यिक अथवा धार्मिक रचनाओं में है। इसमें हिन्दुओं के आरा...
-
जब देश के अन्य भागों में अपने किसान भाइयों की आत्महत्या की घटनाएं पढ़ता-सुनता हूं तो अक्सर सोचता हूं कि कौन-सी ताकत है जो बिहार व उत्त...
-
‘’एक सेब रोज खाएं, डॉक्टर को दूर भगाएं।’’ इस लोकप्रिय कहावत पर भरोसा करनेवाले लोगों के लिए अच्छी खबर है। आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने सेव...
-
कृषि का भारत के लिए जितना महत्व है, इससे संबंधित शिक्षा और शोध पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता। लेकिन मर कर जंगलों को फायदा पहुंचानेवाले सिका...
इस कदम के भारतीय परिप्रेक्ष्य के निहितार्थों को समझना पडेगा !
ReplyDeleteविनाश की और अग्रसर हो रहे हैं.
ReplyDeleteकाबिले गौर जानकारी दी है आपने.
ReplyDeleteरामराम.
अजी यह गोरे चाहते तो है कि इन का व्यापार बढे, यानि यह सब चीन मै, ओर भारत मै तो लोग खाये, लेकिन जब निर्यात की बात आती है तो..... कोई बात नही यह भी सेटिंग हो जायेगी.
ReplyDeleteआप ने बहुत अच्छी बात बतई अपनी इस पोस्ट मै.
धन्यवाद
सवाल है कि बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने को फसल कैसे हो। कोई न कोई उपाय करने होंगे न?
ReplyDelete