Saturday, July 12, 2008

धरती के रंग, किसान के संग

वर्षा ऋतु भारत के गांवों में सुख और दु:ख दोनों का संदेशा लाती है। कई गांव बाढ़ में बह जाते हैं, कई का सड़क संपर्क भंग हो जाता है। भारतीय गांवों में आदमी और मवेशी पर बीमारियों का प्रकोप बरसात में कुछ ज्‍यादा ही होता है। इन सबके बावजूद यदि किसानों को किसी ऋतु का सबसे अधिक इंतजार रहता है तो वह वर्षा ही है। यही वह मौसम है, जब धरती तो हरी-भरी हो ही जाती है, किसानों के मन में भी हरियाली छा जाती है। धरती पर चांदी से चमकते पानी का अनंत विस्‍तार, पौधों की हरी-हरी बाढ़, रंग-बिरंगे बादलों से पटा आकाश – यह सब इसी मौसम में देखने को मिलता है। किसानों के मन में नयी फसल बोने की उमंग धरती का अप्रतिम सौन्‍दर्य देख कई गुना बढ़ जाती है।
वर्षा ऋतु में धरती के इन रंगों को अपने कैमरे में संजोने की कोशिश की, तो सोचा खेती किसानी की व्‍यस्‍तता के बीच इस बार इन चित्रों से ही पोस्‍ट का काम चला लिया जाये। शायद ब्‍लॉगर मित्रों को पसंद आये, या हो सकता है न भी आये।






4 comments:

  1. वाह! चित्र देख वह फिल्म का गीत याद आ रहा है -
    हरी-भरी वसुन्धरा पे नीला नीला ये गगन...
    ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है।
    ये कौन चित्रकार है!

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  2. बाकी मित्रों का तो पता नहीं पर मुझे तो घर की याद आ गई... बहुत खुबसूरत चित्र हैं.

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  3. Kheton ke photo dekh kar bachpan ke din yaad aa gaye.

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  4. प्रकृति के इस सुन्दर रूप ने तो दिल मोह लिया..ज्ञानजी ने सही गीत की कल्पना की है..

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