पिछले एक दशक के दौरान भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों में सैकड़ों करोड़ रूपए मूल्य का 10 लाख टन से ज्यादा अनाज सड़ गया जो एक करोड़ से अधिक लोगों की एक साल तक पेट की आग बुझाने के लिए काफी था। यह स्थिति तब है जब संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में रेखांकित है कि भारत के 63 फीसदी बच्चे भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं।
अनाज को भंडारण के समय नुकसान से बचाने के लिए निगम द्वारा 245 करोड़ रूपए खर्च किए जाने के बावजूद यह स्थिति है। यह विडंबना है कि अनाज के सड़ जाने के बाद उन्हें निपटाने के लिए भी निगम को 2.59 करोड़ खर्च करने पड़े।
अनाजों के भंडारण से संबंधित ये सनसनीखेज तथ्य सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दिल्ली निवासी देवाशीष भट्टाचार्य के आवेदन पर सामने आए। श्री भट्टाचार्य के सवाल पर निगम ने उन्हें सूचित किया कि देश भर में अनाजों की खरीदारी व वितरण की जिम्मेदारी निभा रही सरकारी एजेंसी के भंडारों में पिछले एक दशक के दौरान 10 लाख टन अनाज सड़ गए। निगम की सूचना के अनुसार 1997 से 2007 के बीच 1.83 लाख टन गेहूं, 3.95 लाख टन चावल, 22 हजार टन धान और 110 टन मक्का सड़ गए। निगम ने बताया कि उत्तरी क्षेत्र के तहत आने वाले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश व दिल्ली में सात लाख टन अनाज सड़ गए। निगम ने 86.15 करोड़ रूपए अनाज को नुकसान से बचाने के लिए खर्च किया जबकि 60 लाख रूपए सड़े अनाज को निबटाने में गए।
भट्टाचार्य ने बताया कि एफसीआई ने अपने गोदामों में अनाजों के संरक्षण के लिए जितनी रकम खर्च की उसे देखते हुए यह नुकसान विशाल है। क्या यह राष्ट्रीय शर्म नहीं है। निगम के अनुसार पूर्व क्षेत्र-असम, नगालैंड, मणिपुर, उड़ीसा, बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल में 1.5 लाख टन अनाज सड़ा। निगम ने यहां अनाजों को सड़ने से बचाने के लिए 122 करोड़ रूपए खर्च किए जबकि सड़े अनाज को निबटाने के लिए 1.65 करोड़ रूपए खर्च किए गए।
दक्षिण क्षेत्र-आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में 25 करोड़ रूपए खर्च करने के बावजूद 43069.023 टन अनाज सड़ गए। सड़े अनाज को निपटाने के लिए 34867 रूपए खर्च किए गए। महाराष्ट्र व गुजरात में 73814 टन अनाज को नुकसान पहुंचा। एफसीआई ने अनाजों को सड़ने से बचाने के लिए 2.78 करोड़ रूपए खर्च किए। सड़े अनाज को ठिकाने लगाने के लिए 24 लाख रूपए खर्च किए गए। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 23323.57 टन अनाज सड़ गए। अनाजों को सड़ने से बचाने के लिए वहां साढ़े पांच करोड़ रूपए खर्च किए गए। यहां मामला दूसरे राज्यों के गोदामों से भिन्न नहीं है। एफसीआई को सड़े अनाज निबटाने के लिए वहां 10.64 लाख रूपए खर्च करने पड़े। भट्टाचार्य ने कहा कि एफसीआई के आंकड़ों में उलटफेर प्रतीत होता है।
(राष्ट्रीय सहारा से साभार)
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कुप्रबंधन और नौकरशाही की विफलता के ऐसे उदहारण दुर्भाग्य ही हैं अपने देश के !
ReplyDeleteअभिषेक भाई से सहमत.. वाकई ये देश का दुर्भाग्य है
ReplyDeleteनमस्कार। लिखते रहें शायद यह आवाज एक दिन लोगों को सोचने पर मजबूर कर दे और फिर सबकुछ अच्छा होने लगे।
ReplyDeleteदुर्भाग्यपूर्ण एवं अफसोसजनक.
ReplyDeleteAap sahi kah rahe hai. Ye sarkar kab cheteg.?
ReplyDeletekuprabandhan ka ek aur namuna....afsos to ye ki in maamlon par sarkar kabhi vichar tak nahi karti.
ReplyDeleteफूड कर्पोरेशन अकुशल प्रबन्धन की मिसाल-बेमिसाल है। ऐसा मैने अपने अनुभव से पाया है।
ReplyDeleteऔर जब देश में अनाज की किल्लत हो - यह और भी दुखद है।
अफसोसजनक देश का दुर्भाग्य है.
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