संसद में नोटों की गड्डी लहराते देख लोगों को जो पीड़ा हुई उसे समझा जा सकता है। हालांकि यदि हम कृषि ऋण माफी की नैतिकता पर विचार करें तो उसके सामने सांसदों की यह खरीद-फरोख्त कुछ भी नहीं। कृषि ऋण माफी के रूप में केन्द्र सरकार ने किसानों की ईमानदारी को करारा तमाचा मारा। ईमानदारी बरतनेवाले किसानों की जुबानी सराहना तक नहीं की गयी और विपरीत आचरण करनेवालों पर 71 हजार करोड़ रुपये लुटा दिये गये। जाहिर है, कर्ज माफी के नाम पर इस देश में कृषि से जुड़े करीब सत्तर करोड़ लोगों को बेईमान बनने का संदेश दिया गया।
बचपन से हम सुनते आये हैं कि ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी, ईमानदारी अच्छी नीति है। लेकिन किसानों की कर्ज माफी के नाम पर सरकार ने जो कुछ किया, यह धारणा एक झटके में निर्मूल हो गयी। नीतिवान लोग हमें सिखाते हैं कि जिसका कुछ लो उसे समय से लौटा दो। जिन किसानों ने यह आचरण अपने जीवन में उतारा, वे मुंह ताकते रह गये। इसके विपरीत आचरण करनेवाले मौज मना रहे हैं। जो कर्ज दबाकर रखा था वह माफ हो गया, अब नया कर्ज भी उन्हें ही मिल रहा है।
वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को गुमान है कि उन्होंने किसानों के हित में देश की अब तक की सबसे बड़ी कर्ज माफी योजना लागू करायी है। कहा जा रहा है कि देश के चार करोड़ छोटे व सीमांत किसानों को कर्जमुक्त कर दिया गया और बड़े किसानों को भी इस योजना का लाभ पहुंचा। मीडिया ने भी इन खबरों को इस तरह उछाला मानों किसानों को बहुत बड़ा तोहफा दिया गया। लेकिन सच्चाई यह है कि कर्ज माफी में छोटे, सीमांत, बड़े इन सभी किसानों का ध्यान रखा गया, ध्यान नहीं रखा गया तो ईमानदार किसानों का। ईमानदारी उनके लिये अभिशाप बन गयी। उनका दोष यही रहा कि उन्होंने बैंक से कर्ज लेकर उसे समय सीमा के अंदर जमा करते रहे। उन पर दोहरी मार पड़ी। करों के रूप में कर्ज माफी का बोझ भी उठाया और खुद इससे वंचित भी रहे।
फरवरी, 2008 में लोकसभा में वर्ष 2008-09 का आम बजट पेश करते हुए केन्द्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने कृषि ऋण माफी की जो योजना रखी, उसके दायरे में सिर्फ उन्हीं किसानों को रखा गया जिन्होंने 31 मार्च, 2007 से पहले कर्ज लिया था और 31 दिसंबर 2007 तक नहीं चुकाया था। अर्थात यदि किसी किसान ने (चाहे वह गरीब भूमिहीन बटाईदार किसान ही क्यों न हो) ईमानदारी पाली और पहले का कर्ज चुकाकर 31 मार्च, 2007 के बाद नया कर्ज लिया तो उसे एक पाई भी नहीं मिला। दूसरे शब्दों में हमारे वित्तमंत्री ने बजट पेश करते समय सिर्फ उन्हीं किसानों को इसका पात्र समझा जो उस समय तक डिफाल्टर घोषित हो चुके थे। वैसे कर्जदार जो डिफाल्टर नहीं रहे, उन्हें धेला भी नहीं मिला।
जाहिर है, केन्द्र सरकार से संदेश तो यही मिल रहा है कि इस देश में मेहनत और ईमानदारी की कोई कीमत नहीं? सत्तर करोड़ लोगों के बीच ईमानदारी का इतना घटिया मजाक करनेवाले लोग अगर कुछ सौ सांसदों के बीच नोटों की गड्डियों का लेन-देन करते पाये जायें तो इसमें अचरज की बात हमारे लिये तो नहीं ही है। अफसोस की बात है कि संसद में नोटो की गड्डी लहराते देख शर्म शर्म चिल्ला रहा मीडिया भी इस नजरिये से कर्ज माफी योजना पर कभी विचार नहीं किया। हमारी आंखें पथरा गयीं एक अदद ऐसी खबर की आस में जिसमें कहा गया हो कि सिर्फ डिफाल्टरों को मिला किसान कर्ज माफी योजना का लाभ। जब कि सच्चाई यही रही। किसान कर्ज माफी योजना की पात्रता के लिये सीमांत या छोटा किसान होना ही पर्याप्त नहीं रहा, डिफाल्टर होना जरूरी शर्त रही।
मौजूदा हालातों में एक बार फिर बाबा धूमिल याद आ रहे हैं-
'इस देश की मिट्टी में
अपने जांगर का सुख तलाशना
अन्धी लड़की की आंखों में
उससे सहवास का सुख तलाशना है'
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भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के महान आचार्य चाणक्य नें आज से लगभग ढाई हजार साल पहले लिखा था कि शासकीय कर्मी राजकोष का कितना धन हड़प जाते है, इसका पता लगाना उसी तरह कठिन है जैसे यह पता लगाना कि तालाब में मछली कितना पानी पी जाती है । आचार्य चाणक्य का यह आकलन आज भी सही है लेकिन एक सुधार के साथ । वह यह कि उनके समय में तालाब में मछलियाँ इतना ही पानी पीती होंगी कि उसके जल स्तर पर कोई असर नहीं पड़ता होगा, लेकिन अब तो आजादी के बाद हमारी प्रशासनिक एवं राजनैतिक मछलियों नें इतना पानी पी डाला है कि तालाब सूख गए है । आज के समय में केन्द्र सहित शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा, जिसे कामकाज चलाने के लिए कर्ज का सहारा न लेना पड़ रहा हो और शायद ही कोई ऐसी 'मछली' होगी जिसकी सम्पन्नता का अपना तालाब न हो ।
ReplyDeleteअफसोसजनक स्थितियाँ..
ReplyDeleteमैं पूरी तरह सहमत हूं। और धूमिल का उद्धरण तो बहुत सुन्दर है। बधाई।
ReplyDeleteकिसानो की कर्ज माफ़ी में हुई गलती और अनियमितता पर साईनाथ के कई आलेख पढ़े... ये नई बात आज पढ़ी... शुक्रिया.
ReplyDeleteaap ka kaam dilli me baithe patrakaaron se sau guna behtar hai,badhai aapko
ReplyDeleteसत्य कहने के लिए धन्यवाद. गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले तो सरकारी/बैंक क़र्ज़ के बारे में सोच भी नहीं पाते है. क़र्ज़-माफी सिर्फ़ बे-ईमान ज़मींदारों के लिए है. इससे न देश का कोई भला होने वाला है और न दरिद्र-नारायण का - उलटा खजाना मुफ्त में खाली होता है.
ReplyDeleteयह सब वोट की खातिर हो रहा है सर जी। आपने इस महत्वपूर्ण बिन्दु पर चर्चा की, पढ कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteसही विषय को सही तरीके से सटीक भाषा में प्रस्तुति।
ReplyDeleteमैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ। लिखते रहें। देश की इन हालातों पर रोना आता है।
बेशर्मी भी शर्मा जाये,इन की करतुतो से, बेहद अफ़्सोसजनक,
ReplyDeleteधन्यवाद, एक अच्छे लेख के लिये
किसानों की कर्ज़ माफ़ी...हाथी के दिखानेवाले दांत थे,खानेवाले तो विश्वासमत के दौरान दिखे। सरकार के ही नहीं, दूसरे दलों के भी।
ReplyDeleteaise to aaj pahali baar sonch rahi hun..naye najriye ke liye aapka dhanyawad
ReplyDeleteहद होती है बेशर्मी की
ReplyDeletebehtarin likha hai....waise ashok bhai sabse pahle apko is jabardast blog ke liye badhai...are aapne to pura sansar hi blog me dal diya hai. blog par kheti ki tasvir dekhkar laga jaise ki hum bhi apne gaon men aa gaye.....are jabardast....
ReplyDeletegramin pradhan desh men yah blog mile ka patthar sabit hoga. apne apne blog per graminon ka kleja nikal kar rakh diya hai. lage rahiye.
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