विश्व व्यापार को बेहतर बनाने के लिए जेनेवा में चल रही दोहा दौर की डब्ल्यूटीओ वार्ता बिना सहमति के समाप्त हो गयी। कृषि और गैर कृषि वस्तुओं पर सब्सिडी तथा शुल्कों में कमी कर बहुपक्षीय विश्व व्यापार प्रणाली को उदार बनाने के समझौते के लिए 21 से 26 जुलाई तक आयोजित यह बैठक 29 जुलाई तक चली, लेकिन किसानों की आजीविका से जुड़े मुद्दों पर मुख्यत: अमेरिका के अडि़यल रवैये के चलते अंतत: विफल रही। जेनेवा बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाले केन्द्रीय वाणिज्य एवं उघोग मंत्री कमलनाथ के बयान जिस तरह मीडिया में देखने को मिले, उससे लगता है कि केन्द्र सरकार किसानों की बहुत बड़ी हितैषी है। लेकिन सच्चाई खाने और दिखावे के दांत भिन्न-भिन्न वाली है।
जेनेवा बैठक में भारत की ओर से कमलनाथ का स्टैंड निश्चित रूप से सराहनीय रहा, लेकिन घरेलू मोर्चे पर केन्द्र सरकार की कृषि नीति विरोधाभासी रही है। जिस समय विश्व व्यापार संगठन बैठक में जेनेवा में केन्द्रीय वाणिज्य एवं उघोग मंत्री भारतीय किसानों के हितों की दुहाई दे रहे थे, नई दिल्ली में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 850 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये करने की सिफारिश को खारिज कर दिया। किस मुंह से यह सरकार किसानों की मददगार होने की बात कहती है? अमेरिका में किसानों की आबादी मात्र दो फीसदी है, फिर भी वहां उन्हें इतनी अधिक सब्सिडी दी जाती है कि भारत जैसे देशों को उसमें कटौती की मांग करनी पड़ती है। भारत में आबादी का दो तिहाई हिस्सा किसानों का ही है, फिर भी यहां की सरकार उन्हें उपज की वाजिब कीमत तक देने को तैयार नहीं होती। आसमान छू रही महंगाई की वजह से किसानों की कृषि लागत और जीवन निर्वाह का व्यय का काफी बढ़ गया है। ऐसे में उन्हें उपज की वाजिब कीमत भी नहीं मिलेगी तो आत्महत्या करने के अलावा और कौन-सा विकल्प रहेगा उनके पास?
न्यूनतम समर्थन मूल्य ही नहीं, कृषि उपज के व्यापार के मामले में भी केन्द्र सरकार का रवैया किसान विरोधी है। डब्ल्यूटीओ वार्ता में भारतीय किसानों के हितों के संरक्षण की ढपोरशंखी बातें करनेवाली सरकार व्यवहार में इसके विपरीत काम कर रही है। इस सरकार ने भारतीय किसानों पर बंदिशें थोपते हुए गेहूं, चावल व मक्का के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है। भारतीय किसानों की उपज के निर्यात पर प्रतिबंध से किसके हित का संरक्षण हो रहा है, भारतीय किसानों का अथवा विदेशी किसानों का?
देश के माननीय कर्णधारो, अमेरिका से अधिक तो आप ही भारतीय किसानों का गला दबा रहे हैं। यदि गैर कृषक आबादी को सस्ता अनाज मुहैया कराने के लिए चावल-गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, तो स्वीकार कर लीजिए डब्ल्यूटीओ वार्ता में अमेरिकी शर्तें। आपके ही कहे अनुसार भारत में मौजूदा कीमतों से भी सस्ता मिलेगा लोगों को अनाज। यह अलग बात है कि तब शायद आपको महंगी दरों पर घटिया गेहूं के आयात का सुअवसर न मिले। लेकिन आप तो दोनों में से कोई भी काम नहीं कर रहे – न किसानों को वाजिब कीमत दे रहे हैं, न ही गैर किसान आबादी को सस्ता खाद्य पदार्थ। घोटालेबाज व जमाखोर आपकी नीतियों की वजह से जरूर मालामाल हो रहे हैं।
खबर है कि केन्द्र सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगी पाबंदी की अब समीक्षा करने जा रही है। अब यदि सरकार यह पाबंदी हटा भी लेगी तो फिलहाल किसानों को कोई लाभ मिलने से रहा। जो भी लाभ होगा, व्यापारियों को होगा। किसान तो अपना धान, चावल कब का औने-पौने दामों पर बेच चुके हैं। अगली फसल चार-पांच माह बाद तैयार होगी।
केन्द्र सरकार द्वारा इस्पात के मूल्य को नियंत्रित करने की कोशिशों का विरोध घरेलू इस्पात उद्योग यह कह कर रहा है कि इससे औद्योगिक विकास प्रभावित होगा। तो क्या इसी तरह से घरेलू कृषि उपज की कीमतों को नियंत्रित करने से देश में कृषि के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ रहा? किसानों की आवाज उठानेवाली कोई मजबूत लॉबी नहीं है तो आप उन्हें भट्ठी में झोंक दीजिएगा?
केन्द्र सरकार की किसान विरोधी नीति के चलते इन दिनों बिहार के मक्का उत्पादक किसान त्राहि त्राहि कर रहे हैं। मक्का की बंपर उपज के बावजूद केन्द्र सरकार द्वारा गत जुलाई माह में उसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। प्रतिबंध के बाद बिहार में मक्के की कीमत 750 रुपये से घटकर 500 रुपये प्रति क्वींटल पर आ गयी है। बिहार के कोसी क्षेत्र के मक्का उत्पादक किसानों में इससे हाहाकार मचा हुआ है। मक्का उत्पादक किसानों की दुर्दशा देख सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कई राजनेताओं ने मक्का निर्यात पर लगी पाबंदी हटाने की मांग की है। लेकिन केन्द्र सरकार निर्यात पर लगी पाबंदी हटाने के बजाय बिहार से मक्का की खरीदारी पर विचार कर रही है। यदि मक्के की सरकारी खरीदारी होती भी है तो किसानों को मात्र 620 रुपये प्रति क्वींटल का ही न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा। मतलब मक्का उत्पादक किसानों के लिए हर हालत में इस साल खेती घाटे का सौदा ही होने जा रही है। यही है - कांग्रेस का हाथ, अन्नदाता के साथ?
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बहुत इम्प्रेसिव है आपकी यह लिंक्स के साथ प्रस्तुत पोस्ट।
ReplyDeleteकमल नाथ का मैं फैन नहीं हूं, पर पढ़ा है कि उन्होंने भारत का पक्ष अच्छा रखा।
जहां तक किसान की बात है; मेरा छोटा मामा (मुझसे उम्र में छोटा है) तल्खी से कहता है - किसान वो जीव है जिसे मंत्री से संत्री तक सब चूसते हैं। और सच में, चौधरी चरण सिंह की सरकार में भी किसान का हित नहीं सधा था!
अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है. रोचक रहा जानना.
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