केन्द्र की मनमोहन सिंह की सरकार किसानों को तबाह करने पर तुली हुई है। किसान और कृषि से संबंधित हाल में लिए गए तमाम फैसले इसी बात का संकेत दे रहे हैं। हो सकता है यह सरकार गांवों के बदले शहर बसाने के अपने घोषित इरादे को पूरा करने के लिए ऐसा कर रही हो। शायद उसकी यह सोच हो कि किसान खेती छोड़ देंगे तो गांव भी उजड़ जाएंगे।
केन्द्र सरकार द्वारा लिया गया सबसे ताजा किसान विरोधी फैसला गैर-बासमती चावल और मक्के के बीजों के निर्यात की अनुमति देना है। गौरतलब है कि सरकार ने चावल और मक्का के निर्यात पर पाबंदी लगा रखी थी। उन अनाजों के निर्यात पर पाबंदी अभी जारी रहेगी, अनुमति सिर्फ बीजों के निर्यात को मिली है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि बीज के इन पैकेटों पर साफ-साफ लिखा होगा कि ये मानव उपभोग के लायक नहीं हैं। बयान में कहा गया है कि पैकेट पर यह भी लिखा होगा कि इन बीजों में केमिकल मिला हुआ है, लिहाजा यह न तो मानव के उपभोग के काबिल हैं और न ही इनका इस्तेमाल चारे के रूप में किया जा सकता है।
लाख माथापच्ची करने पर भी इस निर्णय का औचित्य हमारी समझ में नहीं आया। आखिर किसके हित में यह फैसला लिया गया? प्रत्यक्ष तौर पर तो इस फैसले से दो को ही लाभ होता दिख रखा है- बीज उत्पादक कंपनियों को और विदेशी किसानों को। तो हम मान लें कि हमारी सरकार को अनाज उपजानेवाले अपने देश के किसानों से अधिक चिंता अनाजों की तिजारत करनेवाले कृषि निर्यातकों और विदेशी किसानों की है। कहीं इस फैसले द्वारा अनाज निर्यातकों को भ्रष्टाचार की पतली गली तो मुहैया नहीं करायी जा रही? कहीं ऐसा तो नहीं कि निर्यातित पैकेटों पर लिखा होगा 'केमिकल मिला बीज' और उनके अंदर भरा रहेगा 'खाने लायक अनाज'!
जहां तक भारत के किसानों की बात है तो यह फैसला उनके हित में तो नहीं ही है। इसके विपरीत इस तरह का निर्णय लेना खुद ही जान दे रहे उस समुदाय का गला घोंटने के समान है। आप स्वयं सोच कर देखें। चावल और मक्का के निर्यात पर पाबंदी के पक्ष में केन्द्र सरकार का तर्क है कि इससे महंगाई की ऊंची दर काबू में रहेगी। सरकार का कहना है कि इन अनाजों के निर्यात पर पाबंदी से देसी बाजार में इनकी आपूर्ति बनी रहेगी, लिहाजा कीमत में बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं होगी। क्या यही तर्क गैर-बासमती धान और मक्का के बीजों पर भी लागू नहीं होता? क्या उनके निर्यात की अनुमति से देसी बाजारों में उनकी आपूर्ति कम नहीं होगी और लिहाजा उनकी कीमतें नहीं बढ़ेंगी?
क्या विडंबना है? सरकार को किसानों के लिए सस्ता बीज मुहैया कराना चाहिए तो उलटे वह उसे और अधिक महंगा करने का उपाय कर रही है। बढ़ती महंगाई के दौर में किसानों के जीवन निर्वाह के खर्च और कृषि लागत में पहले ही काफी बढ़ोतरी हो चुकी है। बीज के मामले में तो किसानों का जमकर शोषण हो रहा है। कई कंपनियां उनसे बीज पर ढाई हजार फीसदी से भी अधिक मुनाफा वसूल कर रही है। क्या अभी भी सरकार का मन नहीं भरा?
अरे, माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन जी, कुछ तो रहम कीजिए देश के किसानों पर। आखिर कितना और कब तक गला दबाएंगे इस निरीह समुदाय का? जो खुद ही आत्महत्या कर रहा, उसका गला क्या दबाना? सही बात है, सरकार सरकार है, वह जो चाहे करे। लेकिन आपकी सरकार किसान हितैषी होने का दावा भी तो करती है। आप लोगों ने ही तो नारा दिया है- कांग्रेस का हाथ, अन्नदाता के साथ?
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मैं मनमोहन जी को व्यक्तिगत तो ब्लेम नहीं करूंगा। पर आयात-निर्यात के कई निर्णय कई लॉबियों के फेर में लिये जाते हैं। उनमें किसान का हित सर्वोपरि हो; या किसान का हित हो भी - यह जरूरी नहीं।
ReplyDeleteअसल में किसान एक पावरफुल वोट बैंक के रूप में काम नहीं करता। वह जातिगत-पार्टीगत फ्रेगमेण्टेशन में लिप्त है।
मैं किसानी के बारे में बहुत नहीं जानता। पर किसान की लाचारी खराब लगती है; बहुत।
ashok ji congress galat kahan kehti hai,uska hath annadataon ke sath hi hai.ab galat samajh rahe hai.annadata matlab kisan nahi vyapari hota hai,exporter hota hai,uska hath to hai congress ke sath han kissano ke mamle uska nara hai kissano ka gala aur congress ka hath.aapne kadua sach likha,halanki ab hum kheti se dur ho gaye hain lekin hain kissan pariwar ke unki durdasha chipi nahi hai.aapko bahut bahut badhai asli annadatao ka dard samjhane ke liye
ReplyDeleteपरिवार एवं मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना कृष्ण-कन्हैया से है !
आपने बहुत ही कडुआ सच लिखा है ! जब तक किसान संघठित नही होगा तब तक उसका कुछ नही होगा ! और ये हमारे माई-बाप (नेता) उसको दबा कर रक्खेंगे ! टिकैत का क्या हूवा ? आपको मालुम ही है !
मनमोहन जी ही क्या आज तक किसी भी सरकार ने किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य नहीं दिया बल्कि तरह-तरह के प्रत्यक्ष आैर अप्रत्यक्ष कर लगाकर अपने खजाने भरे हैं आैर चुनावी चंदा देने वाले पूंजीपतियों के हित में नीतियां बनाकर उनको लाभ पंहुचाया है।
ReplyDeleteजन्माष्टमी की बहुत बहुत वधाई
ReplyDeleteजन्माष्टमी की बधाई अशोक जी...
ReplyDeleteलोग कहते हैं की क्यों खेती छोड़कर शहरों की तरफ़ भाग रहे हैं! क्या करें... पेट पालने के लिए...
सरकार में बैठे लोग और निति निर्माता बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों से शोध करके जाते हैं... और रिपोर्ट देखते हैं, उन्हें जमीनी वास्तविकता का ज्ञान कम ही होता है !
jab sarkaar ko laga ki kaan seedhe seedhe is haath se nahi pakar sakte to dusre haath se ghuma ke pakarne ki koshish hai ye
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