Thursday, August 14, 2008

पुस्‍तक अंश : स्‍वतंत्रता दिवस पर विशेष

विख्‍यात इतिहासकार सुमित सरकार की पुस्‍तक 'आधुनिक भारत' का एक अंश

पंद्रह अगस्‍त

अंतत: भारतीय प्रायद्वीप को स्‍वतंत्रता मिल ही गयी और स्‍वतंत्रता-सेनानियों के सुनहरे सपनों की तुलना में अनेक लोगों को यह तुच्‍छ ही प्रतीत हुई होगी। कारण कि अनेक वर्षों तक भारत में मुसलमानों और पाकिस्‍तान में हिन्‍दुओं के लिए स्‍वतंत्रता का अर्थ रहा – अचानक भड़क उठनेवाली हिंसा और रोजगार तथा आर्थिक अवसरों की तंगी के बीच या अपनी पीढि़यों पुरानी जड़ों से उखड़कर शरणार्थियों के रेले में सम्मिलित हो जाने के बीच चयन करना। यह बहुआयामी मानव-त्रासदी बलराज साहनी की अंतिम फिल्‍म 'गरम हवा' में बड़े ही हृदयस्‍पर्शी ढंग से चित्रित हुई है।

एक अन्‍य स्‍तर पर जो पूर्णत: असंबद्ध नहीं है, वे आर्थिक एवं सामाजिक विषमताएं अभी भी बनी रहीं, जिन्‍होंने साम्राज्‍यवाद-विरोधी जन-आंदोलन को ठोस आधार प्रदान किया था क्‍योंकि शहरों और गांवों में विशेषाधिकार-संपन्‍न समूह राजनीतिक स्‍वंत्रता की प्राप्ति का संबंध उग्र सामाजिक परिवर्तनों से तोड़ने में सफल रहे थे। अंग्रेज तो चले गए थे किन्‍तु पीछे छोड़ गए थे अपनी नौकरशाही और पुलिस जिनमें स्‍वतंत्रता के बाद भी विशेष अंतर नहीं आया था और जो उतने ही (कभी-कभी तो और भी अधिक) दमनकारी हो सकते थे।

अपने जीवन के अंतिम महीनों में महात्‍मा गांधी के अकेलेपन और व्‍यथा के कारण केवल सांप्रदायिक दंगे ही नहीं थे। अपनी हत्‍या से कुछ ही पहले उन्‍होंने चेतावनी दी थी कि देश को अपने ''सात लाख गांवों के लिए सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी पानी अभी बाकी है'', ''कि कांग्रेस ने 'राटन बरो' बना लिए हैं जो भ्रष्‍टाचार की ओर जाते हैं, ये वे संस्‍थाएं हैं जो नाममात्र के लिए ही लोकप्रिय और जनतांत्रिक हैं।'' इस कारण उन्‍होंने सलाह दी थी कि राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस को भंग कर दिया जाना चाहिए और उसके स्‍थान पर एक लोकसेवक संघ की स्‍थापना की जानी चाहिए जिसमें सच्‍चे अर्थों में समर्पित, आत्‍मबलिदानी, रचनात्‍मक ग्राम-कार्य करनेवाले लोग हों।

फिर भी करोड़ों लोग जो समस्‍त भारतीय प्रायद्वीप में खुशियां मना रहे थे, अर्धरात्रि को भारत की 'नियति के साथ भेंट' पर नेहरू का भाषण सुनकर रोमांचित हो रहे थे और जिन्‍होंने उस समय बालक रहे व्‍यक्ति के लिए भी 15 अगस्‍त को एक अविस्‍मरणीय अनुभव बना दिया था, वे पूर्णरूपेण भ्रांति के शिकार नहीं थे। 1948-51 में कम्‍युनिस्‍टों ने अपनी कीमत पर ही जाना कि 'ये आजादी झूठी है' के नारे में दम नहीं था। भारत की स्‍वाधीनता उपनिवेशवाद के विघटन की एक ऐसी प्रक्रिया का आरंभ थी जिसे, कम से कम जहां तक राजनीतिक स्‍वाधीनता का प्रश्‍न है, रोकना कठिन सिद्ध हुआ।

('आधुनिक भारत' के पहले छात्र संस्‍करण 1992 के पृष्‍ठ 504-505 से साभार)

14 comments:

  1. बहुत आभार. स्वतंत्रता दिवस की आपको बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    ReplyDelete
  2. आप को आज़ादी की शुभकामनाएं .....

    ReplyDelete
  3. आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  4. स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को

    ReplyDelete
  5. अशोक भाई,
    वँदे मातरम्`
    अच्छा आलेख देने के लिये आभार !
    - लावण्या

    ReplyDelete
  6. शुभकामनाएं पूरे देश और दुनिया को
    उनको भी इनको भी आपको भी दोस्तों

    स्वतन्त्रता दिवस मुबारक हो

    achha prayas raha aapka

    ReplyDelete
  7. स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  8. स्वतंत्रता दिवस के इस पवन पर्व पर सभी ब्लॉगर मित्रो को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    ReplyDelete
  9. अच्छी पोस्ट और उसमें अच्छे लिंक! आप वास्तव में मेहनत से पोस्ट रचना करते हैं।
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  10. बहुर सार्थक प्रस्तुति,
    इसे धारावाहिक देना चाहिए.
    ============================
    आपको स्वतंत्रता दिवस की बधाई
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

    ReplyDelete
  11. सुमित सरकार की पुस्तक का अंश प्रकाशित कर आपने बहुत से पाठकों को एक अच्छी पुस्तक पढ़ने की प्रेरणा दी है। साधुवाद।

    ReplyDelete
  12. आपको धन्यवाद यह पुस्तक अंश प्रकाशित करने का।
    और स्वतंत्रता दिवस तथा राखी की शुभ कामनाएं .

    ReplyDelete
  13. दन्यवाद इस पोस्ट के लिए !

    ReplyDelete

अपना बहुमूल्‍य समय देने के लिए धन्‍यवाद। अपने विचारों से हमें जरूर अवगत कराएं, उनसे हमारी समझ बढ़ती है।