2-3 दिसंबर 1984 की काली रात को हुआ भोपाल गैस कांड एक ऐसा सबक है, जिसे हमें हमेशा याद रखना चाहिए। इसलिए नहीं कि यह विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है, बल्कि यह न भूलने के लिए कि विकास के पहिए पर मुनाफे की भूख हावी हुई तो विनाश के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं होगा। यह सबक यह न भूलने के लिए भी याद रखना जरूरी है कि भारत की सरकार इस लायक नहीं है कि देशवासी अपने जीवन और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उस पर भरोसा कर सकें। घटना की 25-वीं बरसी पर जब देश भर में उस भयानक मंजर को याद किया जा रहा है, हरेक चित्र और हरेक शब्द दिल दहलानेवाले हैं। उनमें से हम कुछेक को यहां सहेजने की कोशिश कर रहे हैं ताकि हमारी संवेदनाएं जिंदा रहें...
क्या हुआ था उस रात भोपाल में
25 साल पहले 2 और 3 दिसम्बर की रात। दिन भर की थकान के बाद भोपाल शहर सोया हुआ है। आधी रात के बाद शहर से 5 किलोमीटर दूर अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्लांट का स्टोरेज टैंक दबाव को नहीं झेल पाता और फट जाता है।
प्लांट से ज़हरीली गैस का रिसाव शुरू होता है। मिथाइल आइसोसायनाएट गैस फैक्ट्री से होते हुए 9 लाख की आबादी वाले भोपाल शहर पर अपना कहर बरपाना शुरू करती है। सैकडों लोग तो सीधे नींद के आगोश से मौत के आगोश में समा जाते हैं। लोग हड़बड़ा कर नींद से उठते हैं तो उन्हें सांस लेने में दिक्कत और आंखों में जलन महसूस होने लगती है।
पूरे शहर में हड़कंप मच जाता है लोग सुरक्षित स्थान और साफ़ हवा की तलाश में भागने लगते हैं। लेकिन जहरीली गैस के फैलने की रफ्तार ज्यादा तेज साबित होती है। इंसान ही नहीं बल्कि परिंदे और जानवर भी काल का ग्रास बन जाते हैं।
सुबह होने पर इस हादसे की भीषणता का एहसास होता है जब कई स्थानों पर लोगों की लाशें बिखरी नजर आती हैं। शहर के मुर्दाघर भर जाते हैं पर लाशों की संख्या बढ़ती चली जाती है। भोपाल के अस्पताल भी इतने बड़े पैमाने पर हुए इस हादसे से निपटने को तैयार नहीं दिखते।
गैस के रिसाव के कुछ ही घंटों के भीतर 3,500 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद के हफ़्तों में मृतकों का आंकड़ा बढ़ कर 15 हज़ार से ज्यादा हो गया। हालांकि कई ग़ैर सरकारी संगठन इस त्रासदी में मारे गए लोगों की संख्या 25 हजार से ज्यादा बताते हैं।
भोपाल गैस त्रासदी को अब तक की सबसे बुरी औद्योगिक दुर्घटनाओं में माना जाता है। माना जाता है कि 5 लाख से ज्यादा लोगों पर इस हादसे के स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभाव पड़े और हादसे के सालों बाद पैदा हुए बच्चे कई बीमारियों से ग्रस्त नज़र आते हैं। यूनियन कार्बाइड प्लांट से 30 से 40 टन के बीच जहरीली गैस का रिसाव हुआ था।
भोपाल गैस त्रासदी से सबसे ज्यादा प्रभावित ग़रीब परिवारों के लोग थे जो झुग्गियों में रहते थे। इस हादसे में जिंदा बचे लोग तो उस रात को शायद कभी नहीं भूल पाएंगे लेकिन हादसे के बाद पैदा हुई पीढ़ी भी उस रात को याद कर सिहर उठती है।
तस्वीर जो हादसे की प्रतीक बन गयी
विख्यात फोटोग्राफर रघु राय की खिंची यह तस्वीर आपके आंखों के सामने से जरूर गुजरी होगी। यह तस्वीर भोपाल गैस त्रासदी की एक तरह से प्रतीक बन गयी। भोले-से चेहरे और खुली आंखों वाले इस बच्चे की तस्वीर उन्होंने तब ली थी जब उसके शव पर मिट्टी डाली जा रही थी। यदि यह बच्च जिंदा होता तो आज 30 साल का सुंदर नौजवान होता। हादसे में इसी तरह अनगिनत मासूम जानें गयी थीं। यदि आपके अंदर साहस हो तो उस विभीषिका को बयां करनेवाली कुछ और तस्वीरें यहां यहां देख सकते हैं।
ऐश कर रहा कसूरवार, निर्दोष आज भी मर रहे
भोपाल की त्रासदी आज भी थमी नहीं है। उस समय सौभाग्य से शरीर में कम गैस जाने के कारण जो बचे रह गए थे, वे आज तिल-तिल कर मरने का दुर्भाग्य झेल रहे हैं। जहरीली गैस से उनके हृदय व फेफड़े क्षतिग्रस्त हो गए, जिसके लिए आज तक न तो यूनियन कार्बाइड ने दवा बतायी और न ही भारत सरकार ने शोध करके गैस पीडि़तों को राहत पहुंचाने के लिए कोई काम किया। इतनी बड़ी त्रासदी के कसूरवार को कोई सजा तक नहीं हुई। यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्रमुख वॉरेन एंडरसन को इस हादसे के तत्काल बाद गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन तुरंत जमानत भी दे दिया गया और उसके बाद ही एंडरसन ने देश छोड़ दिया और तब से वह कानून की पहुंच से दूर अमेरिका में ऐशो-आराम की जिंदगी गुजार रहे हैं। एंडरसन पर आरोप है कि उन्होंने ख़र्च में कटौती के लिए सुरक्षा मानकों के साथ समझौता किया। एंडरसन पर लोगों की मौत का ज़िम्मेदार होने का भी आरोप है। अब यूनियन कार्बाइड को एक दूसरी अमरीकी कम्पनी डाऊ केमिकल्स खरीद चुकी है और वह पूरे मामले से पल्ला झाड़ रही है।
किसी को तो सजा मिले, सो फरियादी ही चढ़ा फांसी
अंधेर नगरी में किसी को तो सजा काटनी है, सो पीडि़तों की लड़ाई लड़ रहा एक पीडि़त खुद चढ़ गया फांसी। भोपाल गैस त्रासदी का दंश झेल चुके और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले 34 वर्षीय सुनील कुमार की लाश भोपाल में उनके घर में पंखे से लटकी हुई मिली। उस समय उन्होंने अपना पसंदीदा टी-शर्ट पहना था, जिस पर लिखा था, ‘और भोपाल नहीं।’ सुनील ने जहां फांसी लगाई, वहां एक नोट भी मिला, जिसमें लिखा था, ‘मैं मानसिक बीमारी के कारण खु़दकुशी नहीं कर रहा हूं, बल्कि पूरे होशोहवास में ऐसा कर रहा हूं।‘
(सूचनाओं व चित्रों के स्रोत : बीबीसी हिन्दी, डॉयचवेले, ग्रीनपीस)
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एक त्रासदी की बाबत सजीव प्रस्तुति ।
ReplyDeletebhagwan kare aisa dobara kabhi naa ho
ReplyDeletehello... hapi blogging... have a nice day! just visiting here....
ReplyDeleteअब क्या कहे यह करतूत है हमारी सरकार मै बेठे नेताओ कि जिन के ईशारे पर दोषी आज तक आजाद है
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