Friday, November 28, 2008
चीनी लहसुन से देश को खतरा, सुप्रीम कोर्ट ने दिया जलाने का आदेश
विदेश से खाद्य पदार्थों के आयात के मामले में काफी सतर्कता बरती जानी चाहिए। हल्की सी चूक भी देश की कृषि और देशवासियों की सेहत के लिए गंभीर रूप से नुकसानदेह हो सकती है। चीन से आयातित लहसुन के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक ताजा फैसले ने इस तथ्य को बल प्रदान किया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में चीन से आयात किए गए फफूंद लगे लहसुन के 56 टन की खेप को लोगों और खेती के लिए खतरनाक बताते हुए उसे तत्काल जलाने का आदेश दिया है। यह लहसुन वर्ष 2005 के आरंभ में भारत लाया गया था और अभी मुंबई में जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह के निकट एक गोदाम में रखा है।
सीमा शुल्क अधिकारियों ने इसे फफूंदग्रस्त पाए जाने के बाद इसके आयात की अनुमति वापस ले ली थी। इसके बाद इसे मंगानेवाली कंपनी ने मुंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जहां उसे जीत हासिल हुई। मुंबई उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि बाजार में उतारने से पहले सभी 56 टन लहसुन को धुएं का इस्तेमाल कर दोषमुक्त किया जाए। उच्च न्यायालय के इस निर्णय से असंतुष्ट केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में इसे चुनौती दी, जिसने इस लहसुन को नुकसानदेह करार देते हुए जल्द से जल्द जलाने का आदेश दिया।
केन्द्र सरकार के अधिकारियों का तर्क था कि इस प्रक्रिया के चलते आयातित लहसुन में मौजूद फफूंद के पूरे देश में फैलने का खतरा है, जो अब तक यहां नदारद हैं। यदि ये फफूंद देश में फैल गए तो भविष्य में यहां की खेती को तगड़ा नुकसान पहुंचेगा।
अधिकारियों के मुताबिक इस लहसुन में ऐसे खतरनाक फफूंद हैं, जो इसे जल्द ही कूड़े में बदल देते हैं। यदि सतर्कता न बरती गयी तो इसके भारत समेत अन्य देशों में भी फैलने का खतरा है। यदि ऐसा हो गया तो कृषि विशेषज्ञों के लिए इस विपदा पर नियंत्रण कर पाना काफी मुश्किल होगा।
लहसुन को चीन से भारत भेजते समय माना गया था कि मिथाइल ब्रोमाइड के जरिए इसे दोषमुक्त कर लिया जाएगा। लेकिन जानकारों की राय में इस तरीके से केवल कीड़े-मकोड़ों को ही नष्ट किया जा सकता है। फफूंद को खत्म करना इसके जरिए संभव नहीं है। इसे खत्म करने के लिए तो फफूंदनाशी का इस्तेमाल करना पड़ता है, और ऐसा करने पर लहसुन इस्तेमाल लायक नहीं रह जाता।
इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि चीन में लहसुन की खेती काफी होती है। वहां की सरकार किसानों को इसकी खेती के लिए पैसे देती है और बिक्री में समस्या होने पर मदद भी करती है। चीनी लहसुन पहले से ही भारतीय किसानों के लिए परेशानी का सबब रहा है।
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क्या कहें... होना तो बहुत कुछ चाहिए कहाँ होता है?
ReplyDeleteis jaankaari ke liye ek badhaa saa thanx
ReplyDeleteपांडे जी बहुत बढिया जानकारी दी आपने ! धन्यवाद !
ReplyDeleteपांडे जी भारत को कचरे का डिब्बा बना दिया है हमारे व्यापरियो ओर नेताओ ने.
ReplyDeleteअच्छी ख़बर है. आयात नीति में - विशेषकर कृषि से सम्बंधित आयात में - बहुत ही सजग रहने की ज़रूरत है. खाद्यान्न, फल सब्जी आदि के उत्पादन की हमारी हजारों वर्ष पुरानी परम्परा है. हमारा देश के खेत, खेती और खेतिहर को सुरक्षित रखने के समुचित प्रयास होने चाहिए.
ReplyDeleteमुझे याद है कि कुछ दशक पहले मालवा में मन्दसौर के किसान लहसुन की खेती और उसके निर्यात से मालामाल हुये थे। अब न जाने क्या हो गया कि चीन से लहसुन मंगाना पड़ रहा है। नीतियों में कुछ गड़बड़ लगती है।
ReplyDeleteपांडे जी, ये जो चीन है ना, सस्ते माल पूरी दुनिया में भेज रहा है. इसके सामानों की क्वालिटी बिलकुल खराब होती है. इसने भारतियों की तो हालत खराब कर दी है.
ReplyDeleteनवभारत टाईम्स में यह खबर पढा था तब से सोच रहा था कि हो न हो आप अपने ब्लॉग पर शायद इसके बारे में चर्चा जरूर करेंगे और हुआ वही।
ReplyDeleteजानकारी के लिये धन्यवाद।
इस फैसले के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक न जाने पर क्या होता ? विश्व व्यापार संगठन के फाइटो सैनिटरी मेजर्स सिर्फ़ भारत जैसे देशों के माल रोकने के लिए हैं ?
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है आपने अशोक जी ..
ReplyDeleteएक नजर यहाँ भी
ReplyDeleteओह सही निर्णय -आगे भी सावधान रहना जरूरी है
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