Sunday, November 30, 2008
अमृता प्रीतम की कविता : राजनीति
सुना है राजनीति एक क्लासिक फिल्म है
हीरो : बहुमुखी प्रतिभा का मालिक
रोज अपना नाम बदलता
हीरोइन : हकूमत की कुर्सी वही रहती है
ऐक्स्ट्रा : राजसभा और लोकसभा के मैम्बर
फाइनेंसर : दिहाड़ी के मजदूर,
कामगर और खेतिहर
(फाइनेंस करते नहीं, करवाए जाते हैं)
संसद : इनडोर शूटिंग का स्थान
अखबार : आउटडोर शूटिंग के साधन
यह फिल्म मैंने देखी नहीं
सिर्फ सुनी है
क्योंकि सैन्सर का कहना है-
’नॉट फॉर अडल्स।’
(फोटो बीबीसी हिन्दी से साभार)
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यह फिल्म मैंने देखी नहीं
ReplyDeleteसिर्फ सुनी है
क्योंकि सैन्सर का कहना है-
’नॉट फॉर अडल्स।’
जबरदस्त रचना का चुनाव.. पांडे जी !
रामराम !
क्योंकि सैन्सर का कहना है-
ReplyDelete’नॉट फॉर अडल्स।’
"well said.."
regards
दुखद है की ये कविता आज भी प्रसांगिक है
ReplyDelete@ डा. अनुराग - यह आज भी प्रासंगिक है, क्यूंकि अच्छे कलम के धनी अक्सर कालजयी लिखते हैं।
ReplyDeleteअमृता जी यह कविता मुझे भी बहुत पसंद है
ReplyDeleteइस हालात में भी ऐसी ही राजनीति हो रही है इस बात से दुःख होता है :(
ReplyDeleteयह कविता आज की सचाई है, पांडॆ जी आप का धन्यवाद
ReplyDeleteप्रासंगिक दुखद इस अर्थ में कि आज भी हमारी राजनीति ड्रामा ही है, कुछ बदला नहीं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विश्लेषण है।
ReplyDeleteसटीक कविता जो भारत में शायद ही कभी पुरानी पड़े...
ReplyDeleteनीरज
पहले तो आपके शब्दों के लिये सहस्त्रों धन्यवाद...और अमृता प्रीतम की इस अद्भुत रचना की प्रस्तुती के लिये फिर से धन्यवाद
ReplyDeleteशुक्रिया बंधुवर अशोक जी अमृता जी को पढ़वाने के लिये
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