की-पैड की एक क्लीक पर मौजूद होगा आपकी जिंदगी का नक्शा। आपके डॉक्टर को एक मिनट में पता चल जाएगा आपका मर्ज, और पल भर में वो आपको बता देंगे कि भविष्य में आपको क्या बीमारी हो सकती है। जो बीमारी आपको बीस साल बाद होने वाली है उसके लिए अभी से तैयार होगी दवा। जी नहीं ये कोई चमत्कार नहीं, ये विज्ञान है। भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जिन्होनें मानव जीनोम को डीकोड कर लिया है। और अब वो दिन दूर नहीं जब जीनोम का नक्शा आपकी बीमारी के जंजाल को कम कर देगा।
शरीर का सारा राज जीन में छुपा है। जीन के भंडार को जीनोम कहते हैं। जैसे पानी का एक अणु हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को मिलाकर बनता है। उसका फॉर्मूला होता है एचटूओ। ठीक वैसे ही हमारा जीनोम 31 लाख अलग अलग फॉर्मूलों से बना है। सोचिए आपके शरीर में एक साथ 31 लाख अलग अलग फॉर्मूले। इन्हीं फॉर्मूलों में छुपा है सारा राज।
दुनिया के कई विकसित देशो ने ये राज समझा। लेकिन अब भारत भी छठां ऐसा देश बन चुका है जिसके पास है पूरे इंसानी जीनोम का नक्शा। यानि पूरे 31 लाख फॉर्मूले की जानकारी।
दरअसल वैज्ञानिकों ने अपना प्रयोग शुरू किया झारखंड के 52 साल के एक शख्स पर। वक्त बीतता रहा और इस शख्स के शरीर के सारे राज खुलते गए। जैसे ही सारे राज खुले एक दुखद सच सामने आया। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस इंसान के जीनोम को डीकोड करने पर ये पता चला कि इसे कैंसर होने का खतरा है।
वैज्ञानिकों ने इस इंसान का भविष्य बता दिया। ये बता दिया कि आने वाले दिनों में इस शख्स को कैंसर होने वाला है। यकीन मानिए ये कोई चमत्कार नहीं था। सबकुछ वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित था। इस शख्स के जीनोम ऐसी भविष्यवाणी कर रहे थे। साफ है किसी भी इंसान के जीनोम को डिकोड करके उसे ये बताया जा सकता है कि आने वाले दिनों में वो किस तरह की बीमारी का शिकार होगा। सोचिए जब मर्ज पहले से ही पता हो तो इलाज कितना आसान हो जाएगा। पहले से ही उस खास शख्स के लिए दवाई भी तैयार करके रखी जा सकती है।
दरअसल मानव जीनोम प्रोजेक्ट चिकित्सा विज्ञान में क्रांति ला सकता है। अगर हर नागरिक के जीन्स की मैपिंग कर ली गई तो डॉक्टरों के पास अपने मरीज़ों का पूरा डेटाबेस होगा। फोन करने के बाद आप डॉक्टर के पास पहुंचें उससे पहले ही डॉक्टर आपकी मर्ज की पहचान कर चुका होगा।
मालूम हो कि भारतीय वैज्ञानिकों ने ये करिश्मा सिर्फ साढ़े 13 लाख की खर्च पर 9 हफ्तों में कर दिखाया है। जबकि पहला ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट पूरा करने में 6 देशों को हज़ारों करोड़ों रुपए खर्च करने पड़े थे और प्रोजेक्ट पूरा होने में 13 साल का वक्त लगा था। वैसे भारतीय वैज्ञानिकों ने पिछले साल पूरे देश का जीन प्रोफाइल तैयार करने का प्रोजेक्ट भी पूरा कर लिया है। ये प्रोफाइल भी हैरान करने वाली है। अगर आप कश्मीर के रहने वाले है तो आपको बाकी देशवासियों के मुकाबले एचआईवी एड्स होने का खतरा कम है।
जीन का कमाल ये है कि उसने उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के लोगों को मलेरिया से लड़ने की क्षमता दे दी है। यानि उनका शरीर इस बीमारी से बेहतर तरीके से लड़ सकता है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने न सिर्फ एक इंसान के जीनोम का पूरा खाका तैयार कर लिया बल्कि उन्होंने पूरे देश का जीन प्रोफाइल भी तैयार कर लिया है। जानते हैं इससे फाय़दा क्या होगा। हम आसानी से ये जान लेगें कि आखिर किस इलाके के लोगों पर कौन सी बीमारी से कितना खतरा है। कौन सी बीमारी उन्हें जल्द हो सकती है। जाहिर है अलग अलग इलाकों के लोगों के लिए एक ही दवाई कारगर नहीं हो सकती है। हो सकता है जो दवाई जम्मू कश्मीर के लोगों पर असर कर रही हो वो दवाई राजस्थान के लोगों पर बेअसर साबित हो। वैज्ञानिकों के मुताबिक वो अब ये भी जानते हैं कि अस्थमा की एक दवा राजस्थान के लोगों पर कम असर करती है। लेकिन तमिलनाडू के लोगों पर इसका खासा असर होता है।
देश भर का जीन मैप तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों ने देश को भाषा के आधार पर चार भागों में बांटा। नीला- यानी यूरोपीय भारतीय जिन्हे आर्य भी कहते हैं। भूरा- यानी द्रवि़ड़, हरा- यानी आस्ट्रेलेशियाई और पीला- यानी तिब्बती बर्मन। इस आधार पर शोध के लिए देश भर के अलग अलग 55 जनसंख्या समुदायों को चुना गया। वैज्ञानिकों ने सभी जनसंख्याओं की जीनों को पढ़ा, परखा और उनके राज खोल कर रख दिए।
वैज्ञानिकों के मुताबिक जेनेटिक मैप का इस्तेमाल सरकारी योजनाओं को असरदार तरीके से लागू करने के लिए भी किया जा सकता है। सरकार के पास पहले से ये जानकारी होगी कि किन योजनाओं का फायदा किन इलाकों के लोगों को होगा। विज्ञान के चमत्कार को अभिशाप बनते देर नहीं लगती। यही वजह है कि जीनोम प्रोजेक्ट पर कई सवाल खड़े होते रहे हैं। सवाल ये कि कहीं इंसान भगवान बनने की कोशिश तो नहीं कर रहा। क्या प्रकृति के साथ छेड़छाड़ मानवता के लिए खतरा तो पैदा नहीं कर रही। जेनेटिक मैपिंग के तमाम फायदों के बावजूद जेनेटिक हैकिंग और जेनेटिक क्राइम के खतरों को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
क्रेग वेंटर जो कि सेलेरा जीनोमिक्स कंपनी के मालिक हैं। इससे पहले वो अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑप हेल्थ के वैज्ञानिक रह चुके हैं। 1998 में क्रेग वेंटर ने अपने प्राइवेट लैब में जीन सीक्वेंसिंग शुरू की। वो हर हाल में सरकारी संस्थाओं से पहले मानव जीनोम का राज़ जानना चाहता था।
प्रोजेक्ट पूरा होते ही क्रेग वेंटर ने मानव जीनोम की प्रापर्टीज को पटेंट करवाने के लिए आवेदन दिया। इसका मतलब ये था कि क्रेग मानव जीनोम पर एकाधिकार हासिल करना चाहता था। इसको लेकर अमेरिका में बवाल मच गया। और महीनों के हंगामें के बाद आखिरकार तत्कालिक अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को संसद में ये बयान देना पड़ा कि मानव जीनोम को पेटेंट नहीं करवाया जा सकता।
कई बार ये सवाल खड़े हो चुके हैं कि जेनेटिक इंजीनियरिंग प्रकृति के साथ छेड़छाड़ है और इसकी इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए। सवाल ये है कि विज्ञान के नाम पर कहीं हम भगवान बनने की कोशिश तो नहीं कर रहे। जेनेटिक मैपिंग का इस्तेमाल डिज़ाईनर बेबी पैदा करने के लिए भी किया जा सकता है। यानी हम ऐसे बच्चे पैदा करने की कोशिश में जुट जाएं जिसमें कोई कमी न हो। ये लालच खतरनाक प्रतिस्पर्धा को जन्म दे सकता है। यही वजह है कि भारत में भी पहले जेनेटिक मैपिंग की खबर ने धार्मिक नेताओं के बीच बहस छेड़ दी है।
वहीं कई विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि 21 वीं सदी विज्ञान के साथ साथ हाईटेक क्राइम की भी सदी है। ऐसे में किसी भी टेक्नॉलजी के आतंकवादियों तक पहुंचने में देर नहीं लगती। इसलिए हमें ह्यूमन जीनोम के मामले में बेहद सतर्क रहना चाहिए। अगर इस विज्ञान का तोड़ आतंकवादियों ने निकाल लिया तो पूरी मानवता के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।
(आलेख आईबीएन खबर और ग्राफिक्स जोश 18 से साभार)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
-
भाषा का न सांप्रदायिक आधार होता है, न ही वह शास्त्रीयता के बंधन को मानती है। अपने इस सहज रूप में उसकी संप्रेषणयीता और सौन्दर्य को देखना हो...
-
इस शीर्षक में तल्खी है, इस बात से हमें इंकार नहीं। लेकिन जीएम फसलों की वजह से क्षुब्ध किसानों को तसल्ली देने के लिए इससे बेहतर शब्दावली ...
-
भूगर्भीय और भूतल जल के दिन-प्रतिदिन गहराते संकट के मूल में हमारी सरकार की एकांगी नीतियां मुख्य रूप से हैं. देश की आजादी के बाद बड़े बांधों,...
-
जब देश के अन्य भागों में अपने किसान भाइयों की आत्महत्या की घटनाएं पढ़ता-सुनता हूं तो अक्सर सोचता हूं कि कौन-सी ताकत है जो बिहार व उत्त...
-
कृषि विज्ञान के क्षेत्र में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसे खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से हरित क्रांति के बाद सबसे अहम मान...
हाईटेक क्राईम के डर से नये अविष्कार रोके नहीं जा सकते..सुखद खबर है. आभार जानकारी के लिए.
ReplyDeleteकितना भी कोड डिकोड करले मौत का इलाज़ नही खोज पायेगें .
ReplyDeleteजानकारी के लिए आभार ! वैसे बिना छेड़छाड़ के नयी चीजें भी तो नहीं निकल सकती ?
ReplyDeleteps- pooree paanch posts अभी भी दिख रही हैं !
बढिया जानकारी.
ReplyDeleteचाहे भागीरथी को धरती पर लाना हो चाहे चाँद पर पहुंचना हो ज्ञान पिपासा और प्रकृति पर विजय पाने का प्रयास तो मानव की पहचान है.
ReplyDeleteकहाँ हैं आप बड़े दिनों से आपकी पोस्ट नही आई ..सब खैरियत तो है ?
ReplyDeleteकहाँ हैं आप बड़े दिनों से आपकी पोस्ट नही आई ..सब खैरियत तो है ?
ReplyDelete