लंबे समय बाद ब्लॉगजगत में लौट रहा हूं। थोड़ा असहज महसूस हो रहा है, लेकिन घर लौटने पर किसे खुशी नहीं होती। बहरहाल, सबसे पहले मैं उन सभी साथियों के प्रति आभार व अभिवादन व्यक्त करना चाहूंगा, जिन्होंने मेरी अनुपस्थिति में भी मुझे याद रखा।
लवली कुमारी जी ने मेरी पिछली पोस्ट में टिप्पणी कर खैरियत पूछी थी। पिछले खरीफ सीजन में सूखे की वजह से कुछ परेशानियां थीं, जिनका असर मेरी जमीनी खेती-बाड़ी पर अभी भी है। लेकिन मैं ठीक हूं और अब इस स्थिति में हूं कि आप सभी से अपने विचारों व भावनाओं को साझा करने के लिए कुछ समय निकाल सकूं।
अनुराग शर्मा जी ने ताऊ की मुंडेश्वरी मंदिर वाली पहेली में टिप्पणी की है, ‘कमाल है ताऊ. पहेली कैमूर की और विजेताओं में अशोक पाण्डेय जी (खेतीबारी वाले) का नाम भी नहीं! कमाल है!’ भाई, मुझे इस पहेली का उस समय पता ही नहीं चल पाया, वरना विजेता बनने का यह मौका तो समीर भाई से पहले ही मैं झटक लेता:) वैसे मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि पहेली के जरिए कैमूर की धरती पर मौजूद इस प्राचीनतम हिन्दू मंदिर की चर्चा हुई। चर्चाकारों व विजेताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद और बधाई। मैं स्वयं इस बात के लिए प्रयत्नशील रहा हूं कि बिहार से बाहर के लोग भी इस अनमोल धरोहर के बारे में जानें। मुंडेश्वरी मंदिर से संबंधित मेरे तीन आलेख नेट पर मौजूद हैं, दो मेरे ब्लॉग में और एक साप्ताहिक अखबार ‘चौथी दुनिया’ में।
आपको यह जानकर संतोष होगा कि ब्लॉगिंग से दूर रहने के बावजूद मैं इंटरनेट से दूर नहीं था। नेट पर मैं तकरीबन हर रोज आता था, लेकिन जरूरी काम निपटाने तक ही टिक पाता था। मैंने कुछ डायरीनुमा ब्लॉग बना रखे हैं, जिनमें मैं विविध समाचारपत्रों की साइटों पर प्रकाशित काम लायक खबरों की कतरनों का संग्रह करता हूं। यह काम भी मैंने कमोबेश जारी रखा।
ब्लॉगिंग से दूर रहने की वजह से मुझे क्षति भी हुई। ‘खेती-बाड़ी’ का गूगल पेजरैंक 3 से 2 हो गया और ब्लॉग एग्रीगेटरों की सक्रियता क्रमांक में भी यह काफी पीछे खिसक गया। मैं ट्विटर के निर्देश के मुताबिक अपने खाते को अपडेट नहीं कर पाया, और अब अपने ट्विटर अकाउंट तक पहुंच नहीं पा रहा हूं। ब्लॉगजगत में इस बीच कई नए साथी जुड़े होंगे, कई नई जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ होगा, मैं उन सबसे दूर रहा। इस क्षति की पूरी भरपाई तो संभव नहीं, लेकिन उम्मीद है कि आंशिक भरपाई शीघ्र कर लूंगा।
इतने दिनों बाद लौटने पर ब्लॉगजगत बिलकुल बदला-बदला नजर आ रहा है। ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत का रूप-रंग तो बदला दिख ही रहा है, साथी ब्लॉगरों के चिट्ठों की साज-सज्जा भी पहले से अलग और आकर्षक नजर आ रही है। एक नजर उन सब पर डालनी है, इसलिए अभी के लिए इतना ही। तब तक के लिए राम-राम।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
-
नि कट भविष्य में आचार-विचार के पुराने मानदंडों से काम नहीं चलनेवाला। आनेवाले वर्षों में शाकाहार-मांसाहार के बीच की रेखा भी उतनी स्पष्ट न...
-
2-3 दिसंबर 1984 की काली रात को हुआ भोपाल गैस कांड एक ऐसा सबक है, जिसे हमें हमेशा याद रखना चाहिए। इसलिए नहीं कि यह विश्व की सबसे बड़ी औद्य...
-
यदि आपकी पर्यटन व तीर्थाटन में रुचि है तो आपको कैमूर पहाड़ पर मौजूद मुंडेश्वरी धाम की यात्रा एक बार अवश्य करनी चाहिए। पहाड़ की चढ़ाई, जंगल...
-
स्वाद वाली चीजों से सड़कों पर दौड़नेवाला वाहन तैयार किया जाए, यह सुनने में विचित्र लगता है। शायद इसीलिए आलू-गाजर से रेस कार बनाए जाने की खब...
-
जब देश के अन्य भागों में अपने किसान भाइयों की आत्महत्या की घटनाएं पढ़ता-सुनता हूं तो अक्सर सोचता हूं कि कौन-सी ताकत है जो बिहार व उत्त...
-
अब समय आ गया है कि हम ब्लॉगर डैशबोर्ड की जगह सीधे गूगल डैशबोर्ड पर जाकर ब्लागरी या अन्य संबंधित काम करें। जी हां, गूगल ने नित नए उत्पाद ...
-
आज से करीब साल भर पहले जब खेती-बाड़ी ब्लॉग शुरू किया गया, भारत में अंतरजाल पर किसान पाठक नहीं के बराबर थे। अभी भी गिने-चुने ही हैं। लेकिन ...
-
आप भले एयरकंडीशंड घरों में रहते हों, लेकिन गर्मियों में खस की टट्टियों की याद जरूर आती होगी। इस बात को अधिक से अधिक लोगों को जानने की जरूरत ...
nice
ReplyDeleteपुनर्वापसी का स्वागत है .. नियमित बने रहने के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteअरे, यहाँ आँख आपके के इन्तजार में सूज कर डबल हो गई और हमारा कौनो ख्याल ही नहीं.
ReplyDeleteहम सोच रहे थे कि समीर भाई कि अंखियां इतनी बड़ी-बड़ी क्यों लग रही हैं :)
ReplyDeleteएक सप्ताह कम 4 महीनों का विराम ।
ReplyDeleteआशा है आप नई ऊर्जा के साथ पुन: लग जाएँगे। सूखारोधी खरीफ की फसलों पर वृहदाकार लेख छापिए।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअन्तराल की गतिविधियों का अनुभव जरूर साझा करें यदि संभव हो सके...!
ReplyDeleteआभार..!
चलिए .... अब दुबारा स्वागत ...
ReplyDeleteमुझे भी अंदेसा था की आप किसी परेशानी में होंगे.
...चलो "खेती-बाडी" का समय आ गया है!!!!
ReplyDeleteआपके इंतजार में हमने तो कैमूर से पहेली पूछी थी कि शायद आपको याद आये. अब आप आगये तो बहुत खुशी हो रही है.
ReplyDeleteरामराम.
...चलो "खेती-बाडी" का समय आ गया है!!!!
ReplyDeleteपुनः स्वागत !
ReplyDeleteआपसे पहली मुलाकात है ।
ReplyDeleteआपका स्वागत करना अजीब सा लग रहा है।
फिर भी वापसी है , इसलिए जुर्रत कर रहे हैं।
अब किसान भी हाई टेक हो गए हैं , बड़ी ख़ुशी की बात है।
इसलिए एक उम्मीद कायम है।
नमस्कार जी बहुत बहुत स्वागत, चलिये अब तो सब ठीक हो गया होगा, बहुत अच्छा लगा आज आप को यहां देख कर, धन्यवाद
ReplyDeleteस्वागत है । पढ़ने की उत्कण्ठा रहेगी ।
ReplyDeleteस्वागत!
ReplyDeleteस्वागत है।
ReplyDeleteस्वागत !!!
ReplyDelete