भारत जैसे जनसंख्याबहुल व कृषिप्रधान देश के लिये विकास के जो अनुकरणीय प्रतिमान हो सकते हैं, उनमें सुलभ इंटरनेशनल और सुधा डेयरी के नाम प्रमुखता से लिये जा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की सर्वसमावेशी विकास से संबंधित एक रिपोर्ट में मानव प्रगति के साथ संपत्ति-सृजन में सुलभ इंटरनेशनल की भूमिका को खासा महत्व दिया गया है। सुधा डेयरी की सफलता की कहानी भी समाचार माध्यमों की सूर्खियां बनती रही है। खास बात यह है कि इन दोनों का संबंध उसी बिहार प्रदेश से है, जिसके नाम से ही कई लोग मुंह बनाने लगते हैं। खेती-बाड़ी में हम पेश कर रहे हैं उन दोनों संस्थाओं से संबंधित दो खबरें :
सर्वसमावेशी विकास से दूर हो सकती है गरीबी
सर्वसमावेशी विकास (इंक्लूसिव ग्रोथ) से संपत्ति का सृजन हो सकता है और इससे निजी उद्यमों के कारोबारी मॉडल में गरीबों को जोड़कर सामाजिक परिवर्तन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। यूएनडीपी की 2006 में शुरू किए गए 'बढ़ते सर्वसमावेशी बाजार पहल' के तहत यह अध्ययन किया गया है। इस रिपोर्ट में विकसित और विकासशील देशों के उन 50 केस स्टडी को शामिल किया गया है जिनमें मानव प्रगति और संपत्ति के सृजन के लिए प्रभावी सर्वसमावेशी कारोबारी मॉडल अपनाया गया।
इसमें भारत से सुलभ इंटरनैशनल के केस स्टडी को शामिल किया गया है जिसने एक ऐसा मॉडल बनाया है जिसमें आमदनी भी होती है और सामाजिक समस्याओं का भी समाधान होता है। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के भारतीय अनुसंधान केंद्र के द्वारा लिखित रिपोर्ट में बताया गया है कि किस प्रकार बिंदेश्वरी पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल के माध्यम से मैला ढोने वाले भंगियों को मुक्ति दिलाई।
सुलभ ने विभिन्न तरह के बजट और जगह के हिसाब से कुल 26 तरह के टॉयलट का विकास किया है और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पदार्थों की मदद से टॉयलट बनाने के लिए 19,000 राजगीरों को प्रशिक्षण दिया गया है। इस अभियान से 60,000 लोग भंगी जीवन छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके हैं।
रिपोर्ट में उन रास्तों को रेखांकित किया गया है जिससे न केवल निजी क्षेत्र, बल्कि सरकारें, समुदाय और गैर सरकारी संगठन गरीबी और भूख को दूर करने और पर्यावरण सुरक्षा के साथ सामाजिक बराबरी को हासिल करने के सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य को पाने में योगदान कर सकते हैं। रिपोर्ट में एक कारोबारी रणनीति भी बताई गई है जिससे गरीबों के साथ सफल कारोबार के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
(इकनॉमिक टाइम्स से साभार)
सुधा डेयरी से निकली जीवन की धारा
पटना से 25 किलोमीटर दूर इटकी के काथाटोली गांव का सुमन कुमार अब जिंदगी अपनी शर्तों पर जी रहा है। आज उसके पास आम जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त धन और साधन हैं।
बिहार की सहकारी दुग्ध योजना सुधा डेयरी ने उसकी किस्मत को बदल दी है। एक समय था, जब वह इलाके के दूध माफिया को दूध बेचने को मजबूर था, लेकिन आज वह सारा दूध सुधा डेयरी को देता है और उसे उसकी सही कीमत मिलती है। सुधा डेयरी की स्थापना 1983 को को-ऑपरेटिव सोसाइटी के तहत की गई थी। सुधा डेयरी दूध और इसके उत्पादों से करोड़ों का व्यापार करती है।
बिहार में सुधा डेयरी ने सफलता की जो कहानी लिखी है, वह अन्य क्षेत्रों के लिए प्रेरणा भी है और मिसाल भी। इस डेयरी के बिहार और आसपास के राज्यों के 84 शहरों में 6,000 से ज्यादा आउटलेट हैं। सुधा डेयरी में प्रतिदिन 6 लाख लीटर दूध का संग्रहण होता है। लगभग 5 लाख से ज्यादा दूधवाले सुधा डेयरी से जुड़े हुए हैं। इसकी सफलता ने ऐसे प्रतिमान गढ़े हैं कि अब निजी क्षेत्र के बैंकों ने भी इन ग्वालों को जरूरत पड़ने पर ऋण मुहैया कराने की पेशकश की है। सुधा डेयरी ने श्वेत क्रांति की जो कहानी बिहार में लिखी है, उससे आज हजारों किसान और ग्वाले लाभान्वित हो रहे हैं।
सुधा डेयरी के प्रबंध निदेशक सुधीर कुमार सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सुधा डेयरी दो नए प्लांट खोलने जा रही है। इनमें 26 एकड़ में फैला बिहारशरीफ प्लांट प्रमुख है। उन्होंने बताया कि बिहार में छह दुग्ध यूनियन हैं, जो पटना, सिमुल (मुजफ्फरपुर), समस्तीपुर, भोजपुर, बरौनी और भोजपुर में स्थित हैं। उन्होंने कहा कि सुधा डेयरी से 5 लाख से ज्यादा दुग्ध उत्पादकों को फायदा हो रहा है। डेयरी संगठन ने मवेशियों के स्वास्थ्य बीमा की भी व्यवस्था की है। इस संगठन से जुड़े किसानों को टीकाकरण की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है।
उन्होंने कहा कि यूनिसेफ की मदद से सुधा डेयरी ने गांवों में कम कीमत वाले शौचालय बनाने की योजना भी चला रही है। उन्होंने कहा कि हालांकि राज्य में राज डेयरी और अमूल डेयरी का भी छोटा-मोटा बाजार है, लेकिन अगर डेयरी उद्योग की बात की जाए तो सुधा डेयरी ही लोग जानते हैं। पशु चिकित्सक संजय कुमार झा ने क हते हैं कि निश्चित तौर पर सुधा डेयरी ने बिहार में श्वेत क्रांति की दिशा बदल दी है। बिहार में कृषि और पशुपालन एक प्रमुख व्यवसाय है, लेकिन सटीक रणनीति के अभाव में यहां दुग्ध उत्पादन की स्थिति अच्छी नहीं है।
इस दिशा में सुधा डेयरी एक उम्मीद की रोशनी बनकर आई है। को-ऑपरेटिव सोसाइटी के अंतर्गत काफी कम लाभ लेकर लोगों को सेवाएं उपलब्ध करवाकर सुधा डेयरी ने व्यापार और प्रबंधन का एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। उन्होंने कहा कि ऐसे किसान, जो को-ऑपरेटिव दुग्ध सोसाइटी के सदस्य हैं, वे ही निजी बैंकों द्वारा दिए जा रहे ऋण और अन्य पैकेजों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह से सुधा ने किसानों और ग्वालों को एक बेहतर जिंदगी जीने का रास्ता दिखाया है।
(बिजनेस स्टैंडर्ड से साभार)
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सुधा डेयरी की यह खबर दिल्ली डेटलाइनसे है। और बहुत संभव है इसमें सुधा डेरी का मन्तव्य ही हो। जरूरी है कि निष्पक्ष रूप से दूघ देने वालों से वाजिब कीमत, समय पर भुगतान आधि के मामलों पर राय ले ली जाये।
ReplyDeleteमुझे लगता नहीं कि प्रेस रिपोर्टर ने मेहनत की है। उसे प्रेस रिलीज में पकापकाया माल मिला है जो परोस दिया है।
हम प्रेस रिलीज देने में यही करते थे!
आपके आलेख से वहाँ की बातोँ का पता लगा - धन्यवाद !
ReplyDeletein dono ke baare mein to hamein jaankaari thi par ye alekh accha laga... bindeshwari pathak ki kahani unhi ki jubaan se sun chuka hoon... shulabh ke liye unka sangharsh bahut prernadayak hai.
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