आपने महसूस किया होगा कि पिछले कुछ दिनों से चीनी के लिये आपको अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। ऐसा तब है जब कि धान व गेहूं की तरह चीनी के भी रिकार्ड उत्पादन की संभावनाएं हैं। ऐसा भी नहीं कि आपके अधिक कीमत देने से गन्ना उत्पादक किसानों को उनके उपज की बेहतर कीमत मिल रही है। इसके विपरीत वे तो उचित कीमत नहीं मिलने की वजह से इसकी खेती से विमुख हो रहे हैं। किसान गन्ना की खेती छोड़ देंगे तो उनका जो नफा नुकसान होगा सो होगा, भविष्य में चीनी की कीमतें भी आम उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हो जायेंगी। आखिर कौन है इन सबके लिये दोषी? पढिये राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित एजेंसी की यह खबर और खुद फैसला कीजिए :
चालू सीजन में चीनी के रिकार्ड उत्पादन की संभावनाओं के बावजूद खुले बाजार का कोटा उम्मीदों से कम जारी किए जाने से पिछले माह चीनी कीमतों में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। कृषि मंत्रालय के हाल में ही जारी किए गए अनुमान के मुताबिक अक्टूबर 2007 से सितम्बर 2008 तक के चीनी के सीजन में इसका उत्पादन 350 लाख टन तक पहुंच सकता है।
कारोबारियों के अनुसार बीते सप्ताहांत में थोक बाजारों में चीनी एस के दाम 1710-1800 रूपए, चीनी एम के दाम 1710-1750 रूपए और मिल डिलीवरी के दाम 1500-1600 रूपए प्रति क्विंटल तक चढ़ गए जबकि एक माह पूर्व चीनी एस 1540-1580 रूपए, चीनी एम 1550-1600 रूपए और मिल डिलीवरी 1340-1465 रूपए प्रति क्विंटल के भाव पर खरीदी बेची जा रही थी। कारोबारियों का कहना है कि बाजार में चीनी की आवक कम हो गई है जबकि मांग पहले के स्तर पर टिकी हुई है। इस वर्ष की शुरूआत में थोक बाजार में चीनी की कीमतें 1440 रूपए प्रति क्विंटल थी।
जानकारों का मानना है कि गन्ने का रकबा घटने से भी चीनी की कीमतों को समर्थन मिला है। सरकार के इस चालू वर्ष के फसल उत्पादन के चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार गन्ने की बुआई का रकबा घट रहा है और इसमें पिछले वर्ष के मुकाबले अभी तक 4.21 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की चुकी है। इस बीच सरकार ने जुलाई से सितम्बर की तिमाही की अवधि के लिए अपेक्षा से कम कोटा जारी किया है। सरकार ने इस अवधि के लिए 30 लाख टन चीनी खुले बाजार के लिए जारी है।
कारोबारियों का कहना है कि सरकार द्वारा लगभग 44 लाख टन चीनी का कोटा जारी करने की संभावना थी लेकिन कोटा कम जारी होने से बाजार में चीनी के दाम चढ़ने शुरू हो गए हैं। कुछ समय पहले तक जहां चीनी मिलें अपना माल बेचने के लिए आमादा थी वहीं बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने आपूर्ति रोक दी है और बाजार के वर्तमान भावों पर माल बेचने के लिए तैयार नहीं है। इससे बाजार में कृत्रिम कमी पैदा कर दाम बढ़ा दिए गए हैं।
उधर किसानों ने पिछले साल के गन्ने का भुगतान नहीं होने के कारण इस वर्ष इसकी अपेक्षाकृत कम बुआई की है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार किसान गन्ने के रकबे पर तिलहन की खेती कर रहे हैं। पिछले कई वर्षो से चीनी के अतिरेक उत्पादन का लाभ किसानों का नहीं मिल सका और उनके गन्ने की कीमत सही समय पर नहीं मिल पाई। अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन के अनुसार वैश्विक स्तर पर चीनी के उत्पादन में वृद्धि होगी। चालू वर्ष में एक करोड़ 11 लाख टन अधिक चीनी का उत्पादन होगा जिसका असर इसके दामों पर पडे़गा।
भारत विश्व में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के साथ-साथ सबसे बड़ा उपभोक्ता देश भी है। जानकारों का कहना है कि यदि देश में चीनी का उत्पादन इसी तरह से जारी रहा तो शीघ्र ही भारत सर्वाधिक उत्पादन करने वाले देश ब्राजील को पीछे छोड़ देगा।
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इस समय कीमतें केवल बाजार के सप्लाई-डिमाण्ड तर्क पर तय नहीं हो रहीं। आसन्न चुनाव के विभिन्न फैक्टर्स का उनमें समावेष हो गया है। किसी पार्टी को नीचा दिखाना या चुनाव की फण्डिंग के लिये धन संग्रह कीमतों पर प्रभाव डाल रहे हैं।
ReplyDeleteसमय गड़बड़ है जी!
tabhi kai baar soch mein pad jaate hain ki jin cheezon ki aawak khoob ho rahi hai fir bhi daam kyo badhe hue hain....achchi jankaari di aapne.
ReplyDeleteइतने अच्छे आंकलन और जानकारी के लिए धन्यवाद, अशोक जी.
ReplyDeleteहम्म... अच्छी जानकारी है... लेकिन शायद कहीं न कहीं चुनाव का भी प्रभाव हो...
ReplyDeletebahut badhiya jaankari sir..
ReplyDeleteअशोक जी आपका ब्लाग विषय की विशिष्टता के कारण मुझे हमेशा भाता है. आपका नजरिया भी खूब है. अपने विषय के प्रति आपकी प्रतिबद्धता अनुकरणीय है.
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteसम्मान्य..., अति महत्वपूर्ण जानकारी मिली आपके लेख से .... हार्दिक आभार.... अगले लेख की प्रतीक्षा में....
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