Thursday, June 25, 2009

35 हजार साल पहले भी थी संगीत की परंपरा, तब की बांसुरी मिली !

पुरा पाषाणकालीन मानव द्वारा खेती और पशुपालन आरंभ करने के साक्ष्‍य भले न मिले हों, लेकिन उनके कलाप्रेम के प्रमाण मिलते रहे हैं। उनके बनाए चित्रों के नमूने दुनिया भर में गुफाओं व शैलाश्रयों में मिले हैं। हाल ही में दक्षिण जर्मनी में एक ऐसी महत्‍वपूर्ण खोज हुई है, जिससे उस युग के मानव के संगीत से जुड़ाव की जानकारी मिलती है।

जर्मनी में खोजकर्ताओं ने लगभग 35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी खोज निकाली है और कहा जा रहा है कि यह दुनिया का अब तक प्राप्‍त प्राचीनतम संगीत-यंत्र है। प्रस्‍तर उपकरणों से गिद्ध की हड्डी को तराश कर बनायी गयी इस बांसुरी के टुकड़े वर्ष 2008 में दक्षिणी जर्मनी में होल फेल्स की पुरापाषाणकालीन गुफ़ाओं में मिले थे। जर्मनी के तूबिंजेन विश्वविद्यालय के पुरातत्व विज्ञानी निकोलस कोनार्ड ने उन टुकड़ों को असेंबल कर उस पर शोध किया। उनके नेतृत्‍व में उस प्रागैतिहासिक बांसुरी पर हुए शोध के नतीजे हाल ही में नेचर जर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित हुए हैं। श्री कोनार्ड के मुताबिक बांसुरी करीब बीस सेंटीमीटर लंबी है और इसमें पांच छेद बनाए गए हैं। कोनार्ड कहते हैं, "स्पष्ट है कि उस समय भी समाज में संगीत का कितना महत्व था।" वहां इस बांसुरी के अलावा हाथी दांत के बने दो बांसुरियों के अवशेष भी मिले हैं। अब तक इस इलाक़े से आठ बांसुरियां मिली हैं। शोध के मुता‍बिक हड्डी से निर्मित यह बांसुरी उस समय का है जब आधुनिक मानव जाति का यूरोप में बसना शुरु हुआ था।

इस संदर्भ में उल्‍लेखनीय है कि दुनिया भर में पुरातात्विक खोजों में पुरा पाषाण युग (Palaeolithic Age) के मानव के जो औजार मिले हैं, वे सामान्‍यत: पत्‍थर, हांथी दांत, हड्डी या सीपियों के बने हैं। पक्षी के हड्डी से बनी यह बांसुरी उस युग के मानव में सर्जनात्‍मक क्षमता और सामुदायिक जीवन की भावना के हो रहे विकास की भी परिचायक है।



(चित्र व खबर के स्रोत : बीबीसी हिन्‍दी, uk.news.yahoo.com तथा नेशनल ज्‍योग्राफिक न्‍यूज)

14 comments:

  1. जितनी भी खोजें हो चुकी हैं या हो रहीं हैं वो सब तो बहुत पहले से ही भारतीय सभ्यता में पहले से ही था। हवाई जहाज हमारे लिये कोई नई चीज नहीं है, इसे तो रावण भी उपयोग करता था।

    तेज नजर खबर पर रखने के लिये आपको बधाई।

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  2. वाह क्या खबर लायें हैं ढूंढ के !

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  3. रोचक जानकारी। लेकिन छिद्रों की दूरी और हड्डी का आकार देखते हुए शंका होती है। क्या इसे बजा कर देखा गया है?

    वैसे संगीत के प्रमाण अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। मैंने कहीं पढ़ा था कि सिन्धु घाटी से मिली प्रसिद्ध 'पशुपति' मुद्रा वास्तव में संगीत के सुरों और महाध्वनि 'प्रणव' को व्यक्त करती है। लेखक ने मुद्रा पर बनी पशु आकृतियों को उन पशुओं की आवाजों और उनको व्यक्त करते मूल स्वरों से जोड़ा था तो केन्द्रीय सींग धारी पुरुष को प्रणव से ।

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  4. बेहतरीन खबर लाये हो ठकुर, गब्बर खुश हुआ!!

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  5. गब्बर के साथ साथ ये सांभा भी खुश हुआ..

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  6. भाई ये गब्बर और सांबा कॊ ही खुश करेंगे या हमारा भी नम्बर लगेगा?:)

    रामराम.

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  7. ताउ, मैं यह सोच रहा था कि गब्‍बर और सांभा बांसूरी से खुश होने लगे तो अब गोली-बंदूक की तो पूछ ही नहीं रहेगी :)

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  8. ३५ हजार साल ! रोचक !

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  9. बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने,ओर यहां संगीत का भी लोगो को बहुत चाव है.हो सकता है.
    लेकिन हमारे यहां तो बहुत बर्फ़ गिरती है, फ़िर यह हाथी की हडियां कहा से आ गई,क्योकि हाथी गर्म देशो मे पाये जाते है, ओर जर्मन लोगो ने दुसरे विशव युद्ध से पहले तक काले आदमी भी नही दे्खे थे, यह बाते जब यहां हम बुजुर्गो मे बेठते है तो पता चलती है, जेसे केला भी इन्होने दुसरे विशव युद्ध के बाद ही देखा था

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  10. वाह जी वाह.. तो ये बात है..

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  11. अशोक जी आभार आपका इस जानकारी के लिये।यंहा छत्तीसगढ मे भी सिरपुर मे पुराअवशेषों का मिलना जारी है।पचराही एक नई साईट मिली है।उधर जाना हो नही पा रहा है,जाते ही उसकी जानकारी अवश्य शेयर करूंगा।

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  12. Koi es khabar ko Talibanio tak pahuchae jo sangeet ke dusman hain.

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  13. बहुत सुन्दर।
    उस समय कितने मानव रहे होंगे धरा पर? एक आध करोड़? या कम?

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