आप यह बात जानते होंगे कि भारत का पहला जीन संवर्धित खाद्य पदार्थ बीटी बैगन सरकार की सर्वोच्च प्रौद्योगिकी नियामक संस्था जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (GEAC) की स्वीकृति पाने के अंतिम चरण में है। उम्मीद है कि वर्ष 2009 के अंत तक वाणिज्यिक उत्पादन के लिए इसके बीज बाजार में आ जाएंगे। लेकिन क्या आप यह भी जानते हैं कि बीटी का मतलब क्या है ?
बीटी मतलब बैसिलस थ्युरिंगियेंसिस (Bacillus thuringiensis)। जी हां, यह मिट्टी में पाया जानेवाला वही बैक्टीरिया है जिसके जीन को मोंसैंटो के जीएम मक्का मोन 810 में मिलाया गया है, जिसकी खेती जर्मनी में प्रतिबंधित कर दी गयी।
कहने का तात्पर्य है कि बीटी बैगन में भी उसी तरह का जीन डाला गया है, जिसकी वजह से मोंसैंटो के जीन संवर्धित बीटी मक्का मोन 810 की खेती पर जर्मनी, फ्रांस सहित छह यूरोपीय देशों में रोक लगी हुई है। रोक संबंधी पूरी खबर आप हमारे पूर्व के लेख में देख सकते हैं। बैसिलस थ्युरिंगियेंसिस बैक्टीरिया का जीन मक्का में एक ऐसा जहरीला प्रोटीन पैदा करता है, जिससे मक्के को नुकसान पहुंचानेवाली कॉर्नबोरर तितली का लार्वा मर जाता है। बीटी बैगन में इस जीन के मिलावट के पीछे भी पौधे में नुकसानदेह कीटों को मारने की क्षमता विकसित करने की ही सोच है। संभव है इस जीन प्रोद्यौगिकी की मदद से कीटनाशकों पर होनेवाला किसानों का व्यय बचे तथा उपज में वृद्धि हो। लेकिन मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर इसका कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा, इसका समूचा आकलन अभी शेष है।
मोंसैंटो कंपनी द्वारा तैयार किए गए जीन परिवर्तित (gnentically engineered) मक्के की किस्मों के बारे में पर्यावरणवादियों का कहना है कि ये पर्यावरण, मिट्टी, मानव स्वास्थ्य व वन्य प्राणियों के लिए नुकसानदेह हैं। उनका कहना है कि इनकी वजह से अन्य फसलें भी प्रदूषित हो जाएंगी, जिससे पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि चूहों पर किए गए परीक्षणों में इस मक्का के खाने से उनकी रक्त-सरंचना में परिवर्तन, जनन क्षमता में ह्रास और लीवर व किडनी जैसे आंतरिक अंगों को क्षति पहुंचने की बात सामने आयी है। कहा जा रहा है कि खुद जर्मन कृषि मंत्रालय के सामने ऐसे कई वैज्ञानिक अध्ययन हैं, जो कहते है कि इस मक्के की खेती से तितलियों और गुबरैलों को ही नहीं, मिट्टी और पानी में रहने वाले कुछ दूसरे जीवधारियों को भी ख़तरा है।
गौर करने की बात है कि बीटी मक्का की खेती यूरोप में खाने के लिए नहीं, जानवरों को खिलाने के लिए होती है। लेकिन बीटी बैगन तो भारत में हमारे आप के जैसे इंसान खाएंगे। जब पशु चारा के रूप में जीएम फूड की खेती का इतना खतरा है तो आदमी के खाद्य पदार्थ के रूप में इसके उत्पादन का क्या दुष्प्रभाव होगा आप खुद ही आंक लीजिए।
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ReplyDeleteपांडेजी यह बात पक्की है कि कुछ लोगों की करणी फ़ल पुरी इन्सानियत भोगेगी. अब जब सब कुछ मोंसेंटो जैसी कंपनियों के हाथ मे है तो जो उनको जचेगा वही खिला खिला कर मारेंगी..मरने के पहले इन्सान का बीमार होना भी जरुरी है तो इस बीच उनकी दवाए भी अच्छी बिकेंगी..बहुत चतुर,चालाक और शातिर लोग हैं ये मल्टीनेशनल्स.
ReplyDeleteरामराम.
ज़ोरदार काम कर रहें है आप. इंसान पिछले कुछ समय से जीन संरचना में दखलंदाजी कर रहा है, जो फौरी व्यावसायिक फायदा भले दिला दे अंततः अस्तित्व के लिए ही खतरा हो सकता है.ऐसे और आलेखों का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteI will appreciate if you could find and cite any scientific reference, or study that shows that BT is toxic for animals and humans. Please do not base your assumption based on assumptions.
ReplyDeleteBt. Corn in America, and 100% soybean and corn in North and South America has been a successful implementation of technology and these countries are reaping the benefit of technology. The good part of GMO is that it will reduce pesticide consumption and will bring more eco-friendly and sustainable solution.
पराजीनी फसलों पर आप अच्छी जागरूकता उत्पना कर रहे हैं -शुक्रिया!
ReplyDeleteआप के लेख जनमानस में पराजीनी फसलों के बारे में जागरूकता फैलाने का सार्थक प्रयास हैं.
ReplyDeleteअगर बीटी बैंगन इतना नुक्सान इन्सान को पहुंचा सकता है तो अवश्य ही इसे बाज़ार में आने से रोका जाना चाहिये.
थोड़े दिन पहले अवधिया जी ने भी इस बारे में चेतावनी दी थी.
ReplyDeleteबहुत चिंतनीय विषय है.. इस तरह के उत्पादन को इंसान के उपयोग के लिए मान्यता नहीं मिलनी चाहिए..
ReplyDeleteचिंता का विषय है यह तो ..आम जनता इस के बारे में कैसे जान सकती है ?
ReplyDeleteजनता तो वही खायेगी जो बाज़ार में मिलेगा. ये निर्दोषों की हत्या करने जैसा नहीं है?
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद ...
ReplyDeleteबड़ा कन्फ्यूजन है। यह मानव स्वास्थ्य से खिलवाड़ तो गलत है, पर जीनेटिक रिसर्च का मैं विरोध नहीं करूंगा।
ReplyDeleteआँखे खोलने वाला लेख अशोक जी। स्वप्नदर्शी जी की टिप्पणी मैने देखी। मै उन्हे निजी तौर पर जानता हूँ। कुछ दिनो पहले मैने ज्ञान दा के ब्लाग पर जी. विश्वनाथ जी से पूछा था कि इस देश मे ब्रेन ड्रेन को कैसे रोका जाये? भारत के होनहार बच्चे विदेशो मे पढते है और फिर वही की भाषा बोलते है। स्वप्नदर्शी जी अमेरिका से पढकर आयी है। जितना समय उन्होने वहाँ बिताया उतना वह भरतीय किसानो के साथ बिताती तो उनकी बात कुछ काम की होती है। किसानो को छोडकर सभी किसानी पर फैसला सुनाने तत्पर है। यही इस देश की समस्या है।
ReplyDeleteआप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteमैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
अब तो इस जीन को निकाल फेंकने की आवश्यकता आन पडी है।
ReplyDelete-----------
मॉं की गरिमा का सवाल है
प्रकाश का रहस्य खोजने वाला वैज्ञानिक