महान संत कवि तुलसीदास रचित हनुमान चालीसा दुनिया में सबसे अधिक पढ़ी जानेवाली साहित्यिक अथवा धार्मिक रचनाओं में है। इसमें हिन्दुओं के आराध्यदेव श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान के गुणों एंव कार्यों का चालीस चौपाइयों में वर्णन है। इसमें श्री हनुमान की भावपूर्ण स्तुति तो है ही, श्रीराम के भी व्यक्तित्व को सरल शब्दों में उकेरा गया है।
हिन्दू धर्म के अनुयायियों में यह रचना इतनी लोकप्रिय है कि सामान्यत: उन्हें यह कंठस्थ होती है। असंख्य लोग हर दिन इसका पाठ करते हैं। अनगिनत मंदिरों की दीवारों पर पूरी की पूरी रचना संगमरमर पर उत्कीर्ण मिलेगी। खासकर उत्तर भारत के ग्रामीण जीवन में तो यह काव्यात्मक कृति गहराई तक रची-बसी है। जिन्होंने कभी कोई अक्षर नहीं पहचाना, उन्हें भी इसकी चौपाइयां याद होती हैं। जनमानस में इसे भय व क्लेश मिटानेवाला माना जाता है। इसीलिए परंपरागत हिन्दू परिवारों में जहां कहीं संकट उत्पन्न हुआ, लोग सहज भाव से इस कर्णप्रिय रचना का पाठ आरंभ कर देते हैं।
यह रचना इंटरनेट पर भी उपलब्ध है। इसे विकिपीडिया, कविताकोश, विकिसोर्स और वेबदुनिया पर पढ़ा जा सकता है। विकिसोर्स पर इसके मूल पाठ के साथ उसका अंगरेजी लिप्यांतर व अनुवाद भी दिया गया है।
हनुमान चालीसा आम लोगों में ही नहीं, संगीत बिरादरी में भी काफी लोकप्रिय है। हिन्दी के अनेक गायक-गायिकाओं ने इसे अपने-अपने अंदाज में गाया है। हर कलाकार के गायन की खूबियां हैं। हर गायक को सुनने का अलग आनंद है। इनमें से कुछ की गायकी यूट्यूब पर मौजूद है, जिसे संबंधित लिंक पर जाकर सुना जा सकता है : एमएस सुब्बुलक्ष्मी, हरिओम शरण, लता मंगेशकर, रवीन्द्र जैन, अनूप जलोटा, उदित नारायण, अलका याग्निक, जसपिन्दर नरुला, पुराना संस्करण।
Tuesday, October 12, 2010
Wednesday, September 22, 2010
इस जीएम आलू में होगा साठ फीसदी ज्यादा प्रोटीन
उत्तरप्रदेश के एक गांव में आलू चुनते ग्रामीण (फोटो रायटर से साभार) |
इस खोज को अंजाम देनेवाले नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट जीनोम रिसर्च की शोध टीम की प्रमुख शुभ्रा चक्रवर्ती का कहना है कि विकासशील और विकसित देशों में आलू मुख्य भोजन में शुमार है और इस खोज से काफी अधिक संख्या में लोगों को फायदा होगा। इससे आलू से बने पकवानों को स्वाद और सेहत दोनों के लिए फायदेमंद बनाया जा सकेगा। इसके अलावा वह इस खोज को जैव इंजीनियरिंग के लिए भी फायदेमंद मानती हैं। उनका कहना है कि इससे अगली पीढ़ी की उन्नत प्रजातियों को खोजने के लिए वैज्ञानिक प्रेरित होंगे।
विज्ञान पत्रिका "प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ सांइस" में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आलू की अन्य किस्मों के बेहतरीन गुणों से भरपूर इस किस्म को लोग हाथों-हाथ लेंगे। रिपोर्ट के अनुसार इस प्रजाति में संवर्धित गुणसूत्रों वाली आलू की सबसे प्रचलित प्रजाति अमरनाथ के गुणसूत्रों को भी मिलाया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार दो साल तक चले इस शोध में आलू की सात किस्मों में संवर्धित गुणसूत्र वाले जीन "अमरंथ एल्बुमिन 1 (AmA1)" को मिलाने के बाद नयी प्रजाति को तैयार किया गया है। प्रयोग में पाया गया कि इस जीन के मिश्रण से सातों किस्मों में प्रोटीन की मात्रा 35 से 60 प्रतिशत तक बढ़ गयी। इसके अलावा इसकी पैदावार भी अन्य किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेएर 15 से 20 प्रतिशत तक ज्यादा है।
इसके उपयोग से होनेवाले नुकसान के परीक्षण में भी यह प्रजाति पास हो गयी। चूहों और खरगोशों पर किए गए परीक्षण में पाया गया कि इसके खाने से एलर्जी या किसी अन्य तरह का जहरीला असर नहीं हुआ है। रिपोर्ट में इस किस्म को हर लिहाज से फायदेमंद बताते हुए व्यापक पैमाने पर इसे पसंद किए जाने का विश्वास व्यक्त किया गया है। हालांकि अभी इसे उपयोग के लिए बाजार में उतारे जाने से पहले पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी से हरी झंडी मिलना बाकी है।
मूल खबर को हिन्दी में यहां और अंगरेजी में यहां पढ़ा जा सकता है।
तब गुड़ गोबर नहीं, गोबर सोना हो जाएगा!
‘गुड़ गोबर होना’ तो सुना जाता है, लेकिन गोबर सोना हो जाए तो फिर क्या कहना। और सच्ची बात तो यह है कि दुनिया में कुछ लगनशील लोग गोबर को सोना बनाने के बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं। सोने में सुहागे वाली बात है कि उन लोगों में मशहूर आईटी कंपनी एचपी भी शामिल है।
अमेरिका के एरिजोना प्रांत के फीनिक्स नगर में इस साल मई माह में टिकाऊ ऊर्जा पर हुए अमेरिकन सोसाइटी ऑफ मेकेनिकल इंजीनियर्स के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एचपी ने एक शोधपत्र के जरिए दर्शाया कि गाय के गोबर से डेटा सेंटर चलाए जा सकते हैं। इस शोध के मुताबिक दस हजार गायों वाले डेयरी फार्म से हर साल करीब दो लाख मीट्रिक टन गोबर का खाद तैयार होता है। इस क्रम में एक मेगावाट बिजली का उत्पादन हो सकता है। इससे मझोले आकार वाले एक डेटा सेंटर की ऊर्जा संबंधी जरूरतें तो पूरी होंगी ही, अतिरिक्त ऊर्जा से खुद डेयरी फार्म का काम भी चल जाएगा।
शोध से जाहिर है कि डेयरी फार्म और डेटा सेंटर एक-दूसरे के बहुत अच्छे पूरक साबित हो सकते हैं। जब गोबर सड़कर खाद बनता है तो बड़ी मात्रा में मीथेन नामक ग्रीनहाउस गैस निकलता है, जो पर्यावरण के लिए कार्बन डाई आक्साईड से भी अधिक नुकसानदेह होता है। उधर आधुनिक डेटा सेंटरों को काफी मात्रा में ऊर्जा की जरूरत होती है। यदि डेयरी फार्म के मीथेन गैस से ऊर्जा तैयार की जाए, तो पर्यावरण सुरक्षित रहेगा ही, डेटा सेंटर केलिए टिकाऊ ऊर्जा भी उपलब्ध हो जाएगी।
वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत के रूप में गोबर का उपयोग नयी बात नहीं है। हमारे गांवों में कहीं-कहीं छोटे गोबर गैस संयत्र मिल जाएंगे, जिनसे खेतों के लिए खाद मिल जाता है और घर का अंधेरा दूर करने के लिए बिजली। लेकिन एक सुस्पष्ट नीति के तहत इसे बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। जब एचपी गोबर से डेटा सेंटर चलाने की पहल कर सकती है, तो हम इससे गांवों का अंधेरा दूर करने के बारे में क्यों नहीं सोच सकते। यदि ऐसा हो, तो गोबर सोना ही बन जाएगा। तब हमारे यहां अधिक दूध होगा, अधिक जैविक खाद होंगे, अधिक बिजली होगी, और हम ओजोन परत को भी कम नुकसान पहुंचाएंगे।
अमेरिका के एरिजोना प्रांत के फीनिक्स नगर में इस साल मई माह में टिकाऊ ऊर्जा पर हुए अमेरिकन सोसाइटी ऑफ मेकेनिकल इंजीनियर्स के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एचपी ने एक शोधपत्र के जरिए दर्शाया कि गाय के गोबर से डेटा सेंटर चलाए जा सकते हैं। इस शोध के मुताबिक दस हजार गायों वाले डेयरी फार्म से हर साल करीब दो लाख मीट्रिक टन गोबर का खाद तैयार होता है। इस क्रम में एक मेगावाट बिजली का उत्पादन हो सकता है। इससे मझोले आकार वाले एक डेटा सेंटर की ऊर्जा संबंधी जरूरतें तो पूरी होंगी ही, अतिरिक्त ऊर्जा से खुद डेयरी फार्म का काम भी चल जाएगा।
शोध से जाहिर है कि डेयरी फार्म और डेटा सेंटर एक-दूसरे के बहुत अच्छे पूरक साबित हो सकते हैं। जब गोबर सड़कर खाद बनता है तो बड़ी मात्रा में मीथेन नामक ग्रीनहाउस गैस निकलता है, जो पर्यावरण के लिए कार्बन डाई आक्साईड से भी अधिक नुकसानदेह होता है। उधर आधुनिक डेटा सेंटरों को काफी मात्रा में ऊर्जा की जरूरत होती है। यदि डेयरी फार्म के मीथेन गैस से ऊर्जा तैयार की जाए, तो पर्यावरण सुरक्षित रहेगा ही, डेटा सेंटर केलिए टिकाऊ ऊर्जा भी उपलब्ध हो जाएगी।
वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत के रूप में गोबर का उपयोग नयी बात नहीं है। हमारे गांवों में कहीं-कहीं छोटे गोबर गैस संयत्र मिल जाएंगे, जिनसे खेतों के लिए खाद मिल जाता है और घर का अंधेरा दूर करने के लिए बिजली। लेकिन एक सुस्पष्ट नीति के तहत इसे बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। जब एचपी गोबर से डेटा सेंटर चलाने की पहल कर सकती है, तो हम इससे गांवों का अंधेरा दूर करने के बारे में क्यों नहीं सोच सकते। यदि ऐसा हो, तो गोबर सोना ही बन जाएगा। तब हमारे यहां अधिक दूध होगा, अधिक जैविक खाद होंगे, अधिक बिजली होगी, और हम ओजोन परत को भी कम नुकसान पहुंचाएंगे।
Sunday, September 19, 2010
बतियाने से बढ़ता है यह पौधा
सोशल नेटवर्किंग के बढ़ते हुए दायरे में अब पौधे भी आ गए हैं। ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के बाईसवर्षीय छात्र बशकिम इसाइ ने ब्रिसबेन स्थित क्वींसलैंड स्टेट लाइब्रेरी में कुछ पौधों को फेसबुक से जोड़ दिया है। इन पौधों को मीट ईटर नाम दिया गया है। साथ में यह तकनीकी व्यवस्था की गयी है कि प्रशंसकों के संदेश से इनका भरण-पोषण होता रहे। इसके लिए खाद और पानी की दो नलियां पौधों के गमलों से जोड़ दी गयी हैं। फेसबुक पर जब भी कोई इन पौधों का दोस्त बनता है अथवा इनके वाल पर मैसेज पोस्ट करता है, बीप की हल्की आवाज के साथ खाद-पानी नलियों के जरिए अपने आप गमले तक पहुंच जाता है।
हालांकि ऑनलाइन दोस्तों का ज्यादा प्यार इन पौधों के लिए नुकसानदेह भी हुआ। दोस्तों ने इतना अधिक खाद-पानी दे दिया कि दो बार पौधे मर गए। अब पौधों की ऐसी किस्में लगायी गयी हैं जो ज्यादा पानी सह सकें। अब पानी के स्तर को नियंत्रित रखने की स्वचालित व्यवस्था भी की गयी है।
मीट ईटर के दोस्त भोजन-पानी दिए जाने का नजारा भी ऑनलाइन देख सकते हैं। इसके लिए गमलों पर कैमरा लगाया गया है, जिसके जरिए लाइव फुटेज देखे जा सकते हैं।
करीब तीन माह के हो चुके इन पौधों के दुनिया भर में अब तक आठ हजार से भी अधिक दोस्त बन चुके हैं। इस परियोजना को इस साल के अंत तक जारी रखने की इसाइ की योजना है।
यदि आप भी इन पौधों के दोस्त बनना चाहते हैं तो यहां जाएं : http://www.facebook.com/meeteater
हालांकि ऑनलाइन दोस्तों का ज्यादा प्यार इन पौधों के लिए नुकसानदेह भी हुआ। दोस्तों ने इतना अधिक खाद-पानी दे दिया कि दो बार पौधे मर गए। अब पौधों की ऐसी किस्में लगायी गयी हैं जो ज्यादा पानी सह सकें। अब पानी के स्तर को नियंत्रित रखने की स्वचालित व्यवस्था भी की गयी है।
मीट ईटर के दोस्त भोजन-पानी दिए जाने का नजारा भी ऑनलाइन देख सकते हैं। इसके लिए गमलों पर कैमरा लगाया गया है, जिसके जरिए लाइव फुटेज देखे जा सकते हैं।
करीब तीन माह के हो चुके इन पौधों के दुनिया भर में अब तक आठ हजार से भी अधिक दोस्त बन चुके हैं। इस परियोजना को इस साल के अंत तक जारी रखने की इसाइ की योजना है।
यदि आप भी इन पौधों के दोस्त बनना चाहते हैं तो यहां जाएं : http://www.facebook.com/meeteater
Friday, August 27, 2010
अब बढ़ जाएगी गेहूं की पैदावार...खाने को मिलेगी अधिक रोटी
कृषि विज्ञान के क्षेत्र में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसे खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से हरित क्रांति के बाद सबसे अहम माना जा रहा है। ब्रिटेन के लिवरपूल व ब्रिस्टल विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने नॉरविच के जॉन इन्स सेंटर की मदद से गेहूं के जीनोम के जेनेटिक सीक्वेंस को पूरी तरह से डीकोड कर लेने में कामयाबी हासिल की है। सदियों से गेहूं दुनिया भर में मानव का मुख्य आहार रहा है। लेकिन जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी के चलते जरूरतों के हिसाब से इसकी उपलब्धता चिंता का विषय बनी हुई थी। वैज्ञानिकों का दावा है कि ताजा उपलब्धि से सूखे और बीमारियों से लड़नेवाले और अधिक उपज देनेवाले प्रभेदों का विकास करने में मदद मिलेगी, जिससे अनाज का उत्पादन काफी बढ़ जाएगा। जाहिर है, तब दुनिया में अधिक लोगों को अधिक मात्रा में खाने के लिए रोटी उपलब्ध होगी।
गौरतलब है कि चावल और मक्का के जीनोम पहले ही डीकोड किए जा चुके हैं। लेकिन जटिल और बड़ी संरचना की वजह से गेहूं के जीनोम को डीकोड करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था। गेहूं का जीनोम अब तक डीकोड किया गया सबसे बड़ा जीनोम है। यह आकार में मानव जीनोम से भी पांचगुना बड़ा है। हालांकि जैसा कि इस शोध के अगुआ रहे लिवरपूल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नील हॉल बताते हैं कि जहां मानव जीनोम का सीक्वेंस तैयार करने में पंद्रह साल लगे थे, डीएनए प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के चलते गेहूं का जेनेटिक सीक्वेंस महज एक साल में तैयार कर लिया गया।
पूरी खबर बीबीसी, द हिन्दू या नवभारत टाइम्स में पढ़ी जा सकती है। फोटो द हिन्दू से साभार।
गौरतलब है कि चावल और मक्का के जीनोम पहले ही डीकोड किए जा चुके हैं। लेकिन जटिल और बड़ी संरचना की वजह से गेहूं के जीनोम को डीकोड करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था। गेहूं का जीनोम अब तक डीकोड किया गया सबसे बड़ा जीनोम है। यह आकार में मानव जीनोम से भी पांचगुना बड़ा है। हालांकि जैसा कि इस शोध के अगुआ रहे लिवरपूल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नील हॉल बताते हैं कि जहां मानव जीनोम का सीक्वेंस तैयार करने में पंद्रह साल लगे थे, डीएनए प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के चलते गेहूं का जेनेटिक सीक्वेंस महज एक साल में तैयार कर लिया गया।
पूरी खबर बीबीसी, द हिन्दू या नवभारत टाइम्स में पढ़ी जा सकती है। फोटो द हिन्दू से साभार।
Tuesday, August 24, 2010
आप जानते हैं कि 15 अगस्त को फ्रांसीसियों ने क्या किया ?
15 अगस्त। हमारी आजादी का दिन।
इस दिन सुबह में आपने भी झंडे लहराए होंगे और जश्न मनाया होगा। लेकिन आप जानते हैं कि इस साल फ्रांसीसियों ने इस दिन क्या किया ? जवाब जानने के लिए यहां क्लिक करें।
बहरहाल अब जबकि जीन संवर्धित फसलों को मंजूरी की प्रक्रिया आसान करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा संसद के समक्ष विधेयक पेश करने की तैयारी चल रही है, अग्रलिखित सवाल अब भी कायम है : आप खेत और पेट की गुलामी को तैयार तो हैं?
जवाब आपको तलाशना ही होगा। अन्यथा एक दिन हम और आप दुनिया के सामने खुद एक पेचीदा सवाल बनकर रह जाएंगे।
इस दिन सुबह में आपने भी झंडे लहराए होंगे और जश्न मनाया होगा। लेकिन आप जानते हैं कि इस साल फ्रांसीसियों ने इस दिन क्या किया ? जवाब जानने के लिए यहां क्लिक करें।
बहरहाल अब जबकि जीन संवर्धित फसलों को मंजूरी की प्रक्रिया आसान करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा संसद के समक्ष विधेयक पेश करने की तैयारी चल रही है, अग्रलिखित सवाल अब भी कायम है : आप खेत और पेट की गुलामी को तैयार तो हैं?
जवाब आपको तलाशना ही होगा। अन्यथा एक दिन हम और आप दुनिया के सामने खुद एक पेचीदा सवाल बनकर रह जाएंगे।
Saturday, April 3, 2010
लोकसभाध्यक्ष की सांसद निधि की सड़क का यह हाल हो तो जनता क्या करे?
लोकसभाध्यक्ष। यानी वह शख्सियत जो देश का भाग्य व भविष्य निर्धारित करनेवाले सदन की सबसे ऊंची कुर्सी पर विराजमान है। लेकिन जब उसी की सांसद निधि से निर्मित सड़क का यह हाल है तो अन्य का क्या होगा यह आसानी से समझा जा सकता है। जी हां, मैं लोकसभाध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार की सांसद निधि से निर्मित एक सड़क की बात कर रहा हूं। यह कंक्रीट सड़क इतनी मजबूत बनी कि बनने के बाद पानी डालने से ही इसका सीमेंट उखड़ने लगा। उस वक्त मैंने उसका फोटो ले लिया था, जिसे यहां आप स्वयं देख सकते हैं।
इस सड़क का निर्माण श्रीमती मीरा कुमार के संसदीय निर्वाचनक्षेत्र सासाराम के अंतर्गत आनेवाले कैमूर जिला के कुदरा प्रखंड के सकरी ग्राम के वार्ड संख्या 10 में किया गया है। हालांकि यहां पर कोई सूचनापट नहीं लगाया गया है, लेकिन गांववालों का कहना है कि यह सड़क श्रीमती कुमार की सांसद निधि से ही बनी है। गांववालों को यह बात उनकी पार्टी के प्रखंड अध्यक्ष ने बतायी है और उन कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष की देखरेख में ही यह सड़क बनी है। बीते जाड़े में निर्मित सड़क का अब क्या हाल हो चुका है, वह नीचे के चित्र में देखा जा सकता है।
इस सड़क की कुछ अन्य खूबियां संक्षेप में निम्नवत हैं :
1. कंक्रीट सड़क बनाने से पहले मिट्टी को समतल कर उस पर ईंट बिछायी जाती है। लेकिन पूरी सड़क बनाने में एक भी साबूत ईंट का इस्तेमाल नहीं किया गया। मिट्टी को बिना समतल किए हुए, ईंट के टुकड़े मात्र डाल दिए गए और उसी के ऊपर कंक्रीट की ढलाई कर दी गयी।
2. ढलाई में सीमेंट बहुत कम मात्रा में और घटिया किस्म का दिया गया। सड़क की मोटाई भी काफी कम रखी गयी।
3. सड़क का प्राक्कलन बनाने से लेकर उसके निर्माण तक कभी भी वास्तविक अभिकर्ता या विभागीय अभियंता कार्यस्थल पर नहीं आए, पूरा काम बिचौलियों के जरिए कराया गया।
4. सड़क के निर्माण के दौरान घोर अपारदर्शिता बरती गयी। बनने से लेकर आज तक कार्यस्थल पर प्राक्कलन अथवा निर्माण एजेंसी की जानकारी देनेवाला कोई सूचनापट नहीं लगाया गया, जबकि यह जरूरी होता है। इस स्थिति में गांव के ग्रामीण न तो प्राक्कलन के बारे में जान पाए, न ही प्राक्कलित राशि, निर्माण एजेंसी या वास्तविक ठेकेदार के बारे में जानकारी हो पायी।
5. सड़क के नीचे से गुजरनेवाली नाली को बनाने से सड़क का काम करा रहे बिचौलियों ने पल्ला झाड़ लिया। उसके लिए मुहल्लेवालों से श्रम व पैसे की मांग की गयी। श्रम तो मुहल्ले के बच्चों ने किया ही (नीचे चित्र देखें), ईंट, पटिया आदि के रूप में मुहल्लेवासियों ने निर्माण सामग्री भी दी। इसके बावजूद बिना ह्यूम पाइप दिए जैसे-तैसे टुकड़ी ईंट से जोड़कर नाली बनायी गयी, जिसके चलते अब नाली में जलजमाव की समस्या से लोग जूझ रहे हैं।
6. लोकसभाध्यक्ष संबंधित प्रखंड में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से निर्मित सड़क का उद्घाटन करने आयीं (उस वक्त का चित्र नीचे देखें), लेकिन अपनी ही सांसद निधि से निर्मित सड़क के बगल से गुजरने के बावजूद उसकी खोज-ख्ाबर लेना संभवत: जरूरी नहीं समझा।
देश और प्रदेश के विविध मसले जनता द्वारा निर्वाचित सांसद लोकसभाध्यक्ष के समक्ष सदन में रखते हैं। लेकिन जब लोकसभाध्यक्ष की सांसद निधि से निर्मित सड़क ही इस कदर धांधली की शिकार हो तो जनता कहां जाए, क्या करे?
इस सड़क का निर्माण श्रीमती मीरा कुमार के संसदीय निर्वाचनक्षेत्र सासाराम के अंतर्गत आनेवाले कैमूर जिला के कुदरा प्रखंड के सकरी ग्राम के वार्ड संख्या 10 में किया गया है। हालांकि यहां पर कोई सूचनापट नहीं लगाया गया है, लेकिन गांववालों का कहना है कि यह सड़क श्रीमती कुमार की सांसद निधि से ही बनी है। गांववालों को यह बात उनकी पार्टी के प्रखंड अध्यक्ष ने बतायी है और उन कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष की देखरेख में ही यह सड़क बनी है। बीते जाड़े में निर्मित सड़क का अब क्या हाल हो चुका है, वह नीचे के चित्र में देखा जा सकता है।
इस सड़क की कुछ अन्य खूबियां संक्षेप में निम्नवत हैं :
1. कंक्रीट सड़क बनाने से पहले मिट्टी को समतल कर उस पर ईंट बिछायी जाती है। लेकिन पूरी सड़क बनाने में एक भी साबूत ईंट का इस्तेमाल नहीं किया गया। मिट्टी को बिना समतल किए हुए, ईंट के टुकड़े मात्र डाल दिए गए और उसी के ऊपर कंक्रीट की ढलाई कर दी गयी।
2. ढलाई में सीमेंट बहुत कम मात्रा में और घटिया किस्म का दिया गया। सड़क की मोटाई भी काफी कम रखी गयी।
3. सड़क का प्राक्कलन बनाने से लेकर उसके निर्माण तक कभी भी वास्तविक अभिकर्ता या विभागीय अभियंता कार्यस्थल पर नहीं आए, पूरा काम बिचौलियों के जरिए कराया गया।
4. सड़क के निर्माण के दौरान घोर अपारदर्शिता बरती गयी। बनने से लेकर आज तक कार्यस्थल पर प्राक्कलन अथवा निर्माण एजेंसी की जानकारी देनेवाला कोई सूचनापट नहीं लगाया गया, जबकि यह जरूरी होता है। इस स्थिति में गांव के ग्रामीण न तो प्राक्कलन के बारे में जान पाए, न ही प्राक्कलित राशि, निर्माण एजेंसी या वास्तविक ठेकेदार के बारे में जानकारी हो पायी।
5. सड़क के नीचे से गुजरनेवाली नाली को बनाने से सड़क का काम करा रहे बिचौलियों ने पल्ला झाड़ लिया। उसके लिए मुहल्लेवालों से श्रम व पैसे की मांग की गयी। श्रम तो मुहल्ले के बच्चों ने किया ही (नीचे चित्र देखें), ईंट, पटिया आदि के रूप में मुहल्लेवासियों ने निर्माण सामग्री भी दी। इसके बावजूद बिना ह्यूम पाइप दिए जैसे-तैसे टुकड़ी ईंट से जोड़कर नाली बनायी गयी, जिसके चलते अब नाली में जलजमाव की समस्या से लोग जूझ रहे हैं।
6. लोकसभाध्यक्ष संबंधित प्रखंड में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से निर्मित सड़क का उद्घाटन करने आयीं (उस वक्त का चित्र नीचे देखें), लेकिन अपनी ही सांसद निधि से निर्मित सड़क के बगल से गुजरने के बावजूद उसकी खोज-ख्ाबर लेना संभवत: जरूरी नहीं समझा।
देश और प्रदेश के विविध मसले जनता द्वारा निर्वाचित सांसद लोकसभाध्यक्ष के समक्ष सदन में रखते हैं। लेकिन जब लोकसभाध्यक्ष की सांसद निधि से निर्मित सड़क ही इस कदर धांधली की शिकार हो तो जनता कहां जाए, क्या करे?
Friday, April 2, 2010
उन सब का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे याद रखा।
लंबे समय बाद ब्लॉगजगत में लौट रहा हूं। थोड़ा असहज महसूस हो रहा है, लेकिन घर लौटने पर किसे खुशी नहीं होती। बहरहाल, सबसे पहले मैं उन सभी साथियों के प्रति आभार व अभिवादन व्यक्त करना चाहूंगा, जिन्होंने मेरी अनुपस्थिति में भी मुझे याद रखा।
लवली कुमारी जी ने मेरी पिछली पोस्ट में टिप्पणी कर खैरियत पूछी थी। पिछले खरीफ सीजन में सूखे की वजह से कुछ परेशानियां थीं, जिनका असर मेरी जमीनी खेती-बाड़ी पर अभी भी है। लेकिन मैं ठीक हूं और अब इस स्थिति में हूं कि आप सभी से अपने विचारों व भावनाओं को साझा करने के लिए कुछ समय निकाल सकूं।
अनुराग शर्मा जी ने ताऊ की मुंडेश्वरी मंदिर वाली पहेली में टिप्पणी की है, ‘कमाल है ताऊ. पहेली कैमूर की और विजेताओं में अशोक पाण्डेय जी (खेतीबारी वाले) का नाम भी नहीं! कमाल है!’ भाई, मुझे इस पहेली का उस समय पता ही नहीं चल पाया, वरना विजेता बनने का यह मौका तो समीर भाई से पहले ही मैं झटक लेता:) वैसे मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि पहेली के जरिए कैमूर की धरती पर मौजूद इस प्राचीनतम हिन्दू मंदिर की चर्चा हुई। चर्चाकारों व विजेताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद और बधाई। मैं स्वयं इस बात के लिए प्रयत्नशील रहा हूं कि बिहार से बाहर के लोग भी इस अनमोल धरोहर के बारे में जानें। मुंडेश्वरी मंदिर से संबंधित मेरे तीन आलेख नेट पर मौजूद हैं, दो मेरे ब्लॉग में और एक साप्ताहिक अखबार ‘चौथी दुनिया’ में।
आपको यह जानकर संतोष होगा कि ब्लॉगिंग से दूर रहने के बावजूद मैं इंटरनेट से दूर नहीं था। नेट पर मैं तकरीबन हर रोज आता था, लेकिन जरूरी काम निपटाने तक ही टिक पाता था। मैंने कुछ डायरीनुमा ब्लॉग बना रखे हैं, जिनमें मैं विविध समाचारपत्रों की साइटों पर प्रकाशित काम लायक खबरों की कतरनों का संग्रह करता हूं। यह काम भी मैंने कमोबेश जारी रखा।
ब्लॉगिंग से दूर रहने की वजह से मुझे क्षति भी हुई। ‘खेती-बाड़ी’ का गूगल पेजरैंक 3 से 2 हो गया और ब्लॉग एग्रीगेटरों की सक्रियता क्रमांक में भी यह काफी पीछे खिसक गया। मैं ट्विटर के निर्देश के मुताबिक अपने खाते को अपडेट नहीं कर पाया, और अब अपने ट्विटर अकाउंट तक पहुंच नहीं पा रहा हूं। ब्लॉगजगत में इस बीच कई नए साथी जुड़े होंगे, कई नई जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ होगा, मैं उन सबसे दूर रहा। इस क्षति की पूरी भरपाई तो संभव नहीं, लेकिन उम्मीद है कि आंशिक भरपाई शीघ्र कर लूंगा।
इतने दिनों बाद लौटने पर ब्लॉगजगत बिलकुल बदला-बदला नजर आ रहा है। ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत का रूप-रंग तो बदला दिख ही रहा है, साथी ब्लॉगरों के चिट्ठों की साज-सज्जा भी पहले से अलग और आकर्षक नजर आ रही है। एक नजर उन सब पर डालनी है, इसलिए अभी के लिए इतना ही। तब तक के लिए राम-राम।
लवली कुमारी जी ने मेरी पिछली पोस्ट में टिप्पणी कर खैरियत पूछी थी। पिछले खरीफ सीजन में सूखे की वजह से कुछ परेशानियां थीं, जिनका असर मेरी जमीनी खेती-बाड़ी पर अभी भी है। लेकिन मैं ठीक हूं और अब इस स्थिति में हूं कि आप सभी से अपने विचारों व भावनाओं को साझा करने के लिए कुछ समय निकाल सकूं।
अनुराग शर्मा जी ने ताऊ की मुंडेश्वरी मंदिर वाली पहेली में टिप्पणी की है, ‘कमाल है ताऊ. पहेली कैमूर की और विजेताओं में अशोक पाण्डेय जी (खेतीबारी वाले) का नाम भी नहीं! कमाल है!’ भाई, मुझे इस पहेली का उस समय पता ही नहीं चल पाया, वरना विजेता बनने का यह मौका तो समीर भाई से पहले ही मैं झटक लेता:) वैसे मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि पहेली के जरिए कैमूर की धरती पर मौजूद इस प्राचीनतम हिन्दू मंदिर की चर्चा हुई। चर्चाकारों व विजेताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद और बधाई। मैं स्वयं इस बात के लिए प्रयत्नशील रहा हूं कि बिहार से बाहर के लोग भी इस अनमोल धरोहर के बारे में जानें। मुंडेश्वरी मंदिर से संबंधित मेरे तीन आलेख नेट पर मौजूद हैं, दो मेरे ब्लॉग में और एक साप्ताहिक अखबार ‘चौथी दुनिया’ में।
आपको यह जानकर संतोष होगा कि ब्लॉगिंग से दूर रहने के बावजूद मैं इंटरनेट से दूर नहीं था। नेट पर मैं तकरीबन हर रोज आता था, लेकिन जरूरी काम निपटाने तक ही टिक पाता था। मैंने कुछ डायरीनुमा ब्लॉग बना रखे हैं, जिनमें मैं विविध समाचारपत्रों की साइटों पर प्रकाशित काम लायक खबरों की कतरनों का संग्रह करता हूं। यह काम भी मैंने कमोबेश जारी रखा।
ब्लॉगिंग से दूर रहने की वजह से मुझे क्षति भी हुई। ‘खेती-बाड़ी’ का गूगल पेजरैंक 3 से 2 हो गया और ब्लॉग एग्रीगेटरों की सक्रियता क्रमांक में भी यह काफी पीछे खिसक गया। मैं ट्विटर के निर्देश के मुताबिक अपने खाते को अपडेट नहीं कर पाया, और अब अपने ट्विटर अकाउंट तक पहुंच नहीं पा रहा हूं। ब्लॉगजगत में इस बीच कई नए साथी जुड़े होंगे, कई नई जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ होगा, मैं उन सबसे दूर रहा। इस क्षति की पूरी भरपाई तो संभव नहीं, लेकिन उम्मीद है कि आंशिक भरपाई शीघ्र कर लूंगा।
इतने दिनों बाद लौटने पर ब्लॉगजगत बिलकुल बदला-बदला नजर आ रहा है। ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत का रूप-रंग तो बदला दिख ही रहा है, साथी ब्लॉगरों के चिट्ठों की साज-सज्जा भी पहले से अलग और आकर्षक नजर आ रही है। एक नजर उन सब पर डालनी है, इसलिए अभी के लिए इतना ही। तब तक के लिए राम-राम।
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