प्राचीन भारत के महान खगोलविद व गणितज्ञ आर्यभट के बारे में काफी कुछ कहा जाता है और लिखा जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि उनके बारे में प्रामाणिक तौर पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। उनके व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक जीवन के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती। हम यह भी नहीं जानते कि वे कहां के रहनेवाले थे और उनका जन्म किस जगह पर हुआ था। यहां प्रस्तुत उनकी प्रतिमा का फोटो विकिपीडिया से उद्धृत है। यह प्रतिमा पुणे में है, लेकिन चूंकि आर्यभट की वेश-भूषा के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, इसलिए यह प्रतिरूप कलाकार की परिकल्पना की ही उत्पत्ति है।
आर्यभट के बारे में हमारी जानकारी का एकमात्र आधार उनकी अमर कृति आर्यभटीय है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ज्योतिष पर प्राचीन भारत की सर्वाधिक वैज्ञानिक पुस्तक है। आर्यभटीय आर्यभट का एकमात्र उपलब्ध ग्रंथ है। उन्होंने अन्य ग्रंथों की रचना भी की होगी, पर वे वर्तमान में नहीं मिलते। आर्यभटीय के एक श्लोक में आर्यभट जानकारी देते हैं कि उन्होंने इस पुस्तक की रचना कुसुमपुर में की है और उस समय उनकी आयु 23 साल की थी। वे लिखते हैं : ‘’कलियुग के 3600 वर्ष बीत चुके हैं और मेरी आयु 23 साल की है, जबकि मैं यह ग्रंथ लिख रहा हूं।‘’
भारतीय ज्योतिष की परंपरा के अनुसार कलियुग का आरंभ ईसा पूर्व 3101 में हुआ था। इस हिसाब से 499 ईस्वी में आर्यभटीय की रचना हुई। अत: आर्यभट का जन्म 476 में होने की बात कही जाती है।
बिहार की मौजूदा राजधानी पटना को प्राचीनकाल में पाटलीपुत्र, पुष्पपुर और कुसुमपुर भी कहा जाता था। इसी आधार पर माना जाता है कि आर्यभट का कुसुमपुर आधुनिक पटना ही है। लेकिन इस मत से सभी सहमत नहीं हैं। आर्यभट के ग्रंथ का दक्षिण भारत में अधिक प्रचार रहा है और मलयालम लिपि में इस ग्रंथ की हस्तलिखित प्रतियां मिली हैं। इस आधार पर आर्यभट के कर्नाटक या केरल का निवासी होने की संभावना भी जताई जाती है।
प्राचीन भारत के खगोलविदों में आर्यभट के विचार सर्वाधिक वैज्ञानिक व क्रांतिकारी थे। प्राचीन काल में पृथ्वी को स्थिर माना जाता था। किंतु आर्यभट ने कहा कि पृथ्वी गोल है और यह अपने अक्ष पर घूमती है, यानी इसकी दैनंदिन गति है। इस सत्य वचन को कहनेवाले आर्यभट भारत के एकमात्र ज्योतिषी थे। हालांकि आर्यभट ने यह नहीं कहा था कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।
आर्यभट ग्रहणों के असली कारण जानते थे। उन्होंने स्पष्ट तौर पर लिखा है, ‘’ चंद्र जब सूर्य को ढक लेता है और इसकी छाया पृथ्वी पर पड़ती है तो सूर्यग्रहण होता है। इसी प्रकार पृथ्वी की छाया जब चंद्र को ढक लेती है तो चंद्रग्रहण होता है।‘’
वस्तुत: आर्यभट ने भारत में गणित-ज्योतिष के अध्ययन की एक स्वस्थ परंपरा को जन्म दिया था। उनकी रचना आर्यभटीय भारतीय विज्ञान की ऐसी महान कृति है जो यह साबित करती है कि उस समय हमारा देश गणित-ज्योतिष के क्षेत्र में किसी भी अन्य देश से पीछे नहीं था। आर्यभट ने आधुनिक त्रिकोणमिति और बीजगणित की कई विधियों की खोज की थी। इस महान खगोलशास्त्री के नाम पर ही भारत द्वारा प्रक्षेपित पहले कृत्रिम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया था। 360 किलो का यह उपग्रह अप्रैल 1975 में छोड़ा गया था।
ध्यान रखने की बात है कि भारत में आर्यभट नाम के एक दूसरे ज्योतिषी भी हुए हैं, परंतु वे पहले आर्यभट जैसे प्रसिद्ध नहीं हैं। दूसरे आर्यभट का काल ईसा की दसवीं सदी माना जाता है तथा आर्यसिद्धांत नामक उनका एक ग्रंथ भी मिलता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
प्रा चीन यूनान के शासक सिकंदर (Alexander) को विश्व विजेता कहा जाता है। लेकिन क्या आप सिकंदर के गुरु को जानते हैं? सिकंदर के गुरु अरस्तु (Ari...
-
भाषा का न सांप्रदायिक आधार होता है, न ही वह शास्त्रीयता के बंधन को मानती है। अपने इस सहज रूप में उसकी संप्रेषणयीता और सौन्दर्य को देखना हो...
-
हमारे गांवों में एक कहावत है, 'जिसकी खेती, उसकी मति।' हालांकि हमारे कृषि वैज्ञानिक व पदाधिकारी शायद ऐसा नहीं सोचते। किसान कोई गलत कृ...
-
आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
-
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान कि...
दूसरे आर्यभट्ट के संबंध में हमें जानकारी नहीं थी ।
ReplyDelete२३ वर्ष की आयु में इतनी उत्कृष्ट रचना के लिये आभार ।
उपरोक्त टिप्पणी के बहुत से शब्द न जाने कैसे सिलेक्ट होकर डिलीट हो गये । अब तो यह टिप्पणी हास्यास्पद हो गयी है । माफ करें ।
ReplyDeleteआशा है आप मेरी संवेदना समझ रहे होंगे ।
२३ वर्ष की अवस्था में इतने महान ग्रन्थ की रचना करना वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं !
ReplyDeleteआपके परिश्रम की भी हम कद्र करते हैं जो आपने इस पोस्ट को आयोजित करने में किया होगा .
आर्यभट्ट वास्तव में महान गणितज्ञ थे जिन्हों ने भारतीय गणित और खगोल विज्ञान को नई दिशा दी।
ReplyDeleteभारत में इतने महान लोग थे पर जानकारियाँ उनके बारे पूरी नहीं मिलती हैं ! टुकड़े टुकड़े संजोते हैं | बहुत खूब जानाकरी दी आपने | वैज्ञानिक तो भारत में प्राचीन काल में ही जन्म चुके थे !!
ReplyDeleteआपका यह लेख बहुत ज्ञानवर्धक है!
ReplyDelete---
ग़ज़लों के खिलते गुलाब
mujhe to aaj ye pata chala hai ki aryabhat bhi do the.. aapka dhayanwad
ReplyDeleteभारतीय खगोल विज्ञान के आधार स्तम्भ।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही सटीक जानकारी दी है आपने.
ReplyDeleteरामराम.
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
ReplyDeletegood information given we are not known about this
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा.. बहुत ही सटीक जानकारी for more updated news please Visit Hindi Newspaper
ReplyDelete