कनाडा के यानिक कुस्सॉन का 17 सालों से अपने पिता से संपर्क टूटा हुआ था। उन्हें नहीं पता था कि उनके पिता कहां हैं और क्या कर रहे हैं। एक दिन उनके घर में इंटरनेट आया। उन्होंने गूगल सर्च बॉक्स में अपने पिता का नाम लिखा, और फिर चमत्कार हो गया। गूगल सर्च के जरिए उन्होंने अपने बिछड़े हुए पिता को पा लिया।
तब से आज तक कुस्सॉन अपने पिता के संपर्क में हैं, और वह दिन आज भी उनकी स्मृति में ताजा है। दरअसल दुनिया में ऐसे अनगिनत लोग होंगे जिनके जीवन पर गूगल सर्च ने इसी तरह अमिट छाप छोड़ी होगी। हो सकता है उन शख्सों में आप भी हों जिनके जीवन पर गूगल ने काफी असर डाला हो।
यदि ऐसा है तो देर किस बात की। इस लिंक पर जाकर गूगल के ग्रुप प्रोडक्ट मैनेजर जैक मेंजेल की पोस्ट पढि़ए और उनके बताए ठिकाने पर लिख भेजिए अपनी कहानी। जी हां, आपकी कहानी का इंतजार हो रहा है।
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वाह !! अच्छी जानकारी भरा आलेख .. लिंक पर जाती हूं।
ReplyDeleteमुझे अपने कई मित्र इण्टरनेट सर्च के द्वारा दो-तीन दशक के बाद मिले। यह खोजना वाकई सनसनी पैदा कर देता है।
ReplyDeleteहां ये तो एक चमत्कार जैसा ही है. जय हो गूगल बाबा की.
ReplyDeleteरामराम.
बसुधैव कुटुम्बकम !
ReplyDelete'गूगल क्रांति' आने वाले समय में पढाया जाएगा .
ReplyDeleteजय गुगल बाबा की...
ReplyDeleteगूगल ने खोज को बहुत आसान कर दिया है....
ReplyDeleteइसीलिये तो भारत अच्छा है कि लोग पिता को बिना कम्प्यूटर के ढूंढ पा रहे हैं
ReplyDeletegoogle baba ji jay ho..
ReplyDeletehamne bhi kuchh mitron ko salon baad google baba ki help se dhundha hai...
गूगल सर्च की महत्ता को स्वीकारते हुए अनुपम अग्रवाल की टिप्पणि को दुहराना चाहूंगा -
ReplyDeleteइसीलिये तो भारत अच्छा है कि लोग पिता को बिना कम्प्यूटर के ढूंढ पा रहे हैं.
वाह अशोक जी,
ReplyDeleteयह तो बहुत अच्छी जानकारी दी आपने। आभार।
गूगल सर्च आज इन्सान को पलक झपकते ही तरह-तरह की जानकारियां उपलब्ध करा रहा है, इसमे तनिक भी संदेह नहीं पर आपकी जानकारी ने तो एक मिसाल कायम कर दी.
ReplyDeleteआभार किन्तु माननीय अनुपम अग्रवाल जी की टिप्पणी भी काफी दमदार है कि ........
"इसीलिये तो भारत अच्छा है कि लोग पिता को बिना कम्प्यूटर के ढूंढ पा रहे हैं"
चन्द्र मोहन गुप्त
अरे वाहवा.... अशोक जी, क्या जरनकारी दी है भाई... चमत्कारिक.. वाह
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