आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करते आयी हैं। बिहार व उत्तरप्रदेश के गांवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्य साबित होती हैं।
घाघ और भड्डरी के जीवन के बारे में प्रामाणिक तौर पर बहुत ज्ञात नहीं है। उनके द्वारा रचित साहित्य का ज्ञान भी ग्रामीणों ने किसी पुस्तक में पढ़ कर नहीं बल्कि परंपरा से अर्जित किया है। कहावतों में बहुत जगह 'कहै घाघ सुनु भड्डरी', 'कहै घाघ सुन घाघिनी' जैसे उल्लेख आए हैं। इस आधार पर आम तौर पर माना जाता है कि भड्डरी घाघ कवि की पत्नी थीं। हालांकि अनेक लोग घाघ व भड्डरी को पति-पत्नी न मानकर एक ही व्यक्ति अथवा दो भिन्न-भिन्न व्यक्ति मानते हैं।
घाघ और भड्डरी की कहावतें नामक पुस्तक में देवनारायण द्विवेदी लिखते हैं, ''कुछ लोगों का मत है कि घाघ का जन्म संवत् 1753 में कानपुर जिले में हुआ था। मिश्रबंधु ने इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण माना है, पर यह बात केवल कल्पना-प्रसूत है। यह कब तक जीवित रहे, इसका ठीक-ठाक पता नहीं चलता।''
यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं महाकवि घाघ की कुछ कहावतें व उनका अर्थ :
सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।
अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
अर्थात् यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
अर्थात् यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा में तपन रहे और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
अर्थात् उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।
अर्थात् पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है।
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।
अर्थात् जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
दरअसल कृषक कवि घाघ ने अपने अनुभवों से जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे किसी भी मायने में आधुनिक मौसम विज्ञान की निष्पत्तियों से कम उपयोगी नहीं हैं।
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धन्य हैं.. और धान्य भी...:)
ReplyDeleteघाघ की कहावतों से मौसम के बारे में लगाया गया अनुमान शायद ज्याद सही होता है।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया.. अशोक जी बहुत बहुत धन्यवाद इस पोस्ट के लिए.. बहुत जानकारी उपलब्ध करवाई कविता ने.
ReplyDeleteअशोक पाण्डेय जी, बहुत बहुत धन्यवाद, एक अच्छी जान कारी के लिये, जर्मन मे भी किसान लोग मोसम का पहले से ही अनुमान लग लेते हे, जिस पर सभी यकीन भी करते हे, मोसम विभाग कई बार गलत भी हो जाता हे,
ReplyDeleteइनकी कहावतें सिर्फ वाग्विलास नहीं हैं, सदियों के खेतिहर समाज के अनुभव का निचोड़ हैं. मैं चाहता हूँ कि आप हफ्ते में एक बार द्विवेदीजी की किताब से ही सही; घाघ-भड्डरी की कहावतें अवश्य छापें. भला होगा. धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह! घाघ की कहावतों को पढ़कर आनन्द आ गया.आभार इस प्रस्तुति के लिए.
ReplyDeleteek to mujhe bhi yaad hai:
ReplyDelete'raat mein baddar din nibaddar'
bahe parwaiyya jhabbar-jhabbar'
ghaagh kahe kuchh honi hoi
kuwaan khod ke dhobi dhoi ! :-)
sir apne ulta likha hai , din me baddar rat nibadar hota h
Deleteअशोक जी, धन्यवाद. बहुत अच्छे कथन हैं घाघ जी के.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जानकारी। घाघ को पढ़ना बहुत ही अच्छा लगता है।
ReplyDeleteबहुत खूब ! घाघ जी मौसम का अनुमान जीव जंतु के चाल ढाल से सहज और सटीक लगाया है . और राज्य की बात नही जानता पर बिहार के किसान आज भी घाघ के निदेशानुसार खेती करते हैं मौसम का अनुमान लगाते हैं.
ReplyDeleteमहान बिभूति को खेती के बहाने याद करने के लिए आपका आभार !
बहुत ही उम्दा और रोचक जानकारी.
ReplyDeleteसच अभी तक एकदम अनभिज्ञ था.
पढ़ कर अच्छा लगा.
वाह - बड़े दिनों से ढूंढ रहा था - और लगायें - साभार - मनीष
ReplyDeleteपुनश्च - मैंने इसमे एक का ये वाला रूप पढा था - "शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय / कहे घाघ सुन भड्डरी, बिन बरसे नहिं जाय/"
बहुत सुन्दर और विचारोत्तेजक कविता है। पढ़वाने के लिए आभार।
ReplyDeleteवाकई..
ReplyDeleteगजब प्रस्तुति !!!
अपनी जड़ों से कटते समाज के लिये.....
आपको बधाई.
मेरे बाबा पण्डित महादेव प्रसाद पाण्डेय, लगभग नित्य घाघ-भड्डरी के कवित्त के माध्यम से मौसम की भविष्यवाणी करते थे।
ReplyDeleteऔर मेट्रॉलॉजिकल विभाग भी उससे बेहतर न बता सकता होगा!
बाबा गये तो साथ में वह विधा भी गयी!
मेरी समझ से घाघ से बडा कृषि वैज्ञानिक आज तक दूसरा नहीं हुआ। उन्होंने अपनी कहावतों के द्वारा जो जानकारी उपलबध करायी है, वह अतुलनीय है।
ReplyDeleteअशोक जी नमस्कार,
ReplyDeleteआपका ई-मेल नही मिला तो यही बात कर रही हूँ, मूझे जेट्रोफा पर कूछ जानकारी चाहिये, मैने आपके चिट्ठे कि चर्चा पापा जी से की थी, तो उन्होने कहा कि जेट्रोफा के बारे मे जानकारी लेने कि इच्छा व्यक्त की, आप मूझे अपना ईमेल पता बता दिजियेगा.. मेरा ईमेल पता है avgroup at gamail dot com.
शुक्रिया
कुछ ऐसा ही मैंने नानी से भी सुना था .
ReplyDeleteसच है !!इस ज्ञान बगैर किस्सी पूर्वाग्रह के विज्ञान के साथ जोड़ने की जरूरत है , बकिया तो हम ब्लोग्गेर्स कर ही लेंगे!!
ReplyDeletePravin ji se aapki is post ka link mila. Kafi badhiya laga yeh lekh. Ghagh-Bhaddari se judi vaigyanik jaankari sajhi karne ka pryas main bhi kar raha hun. Sujhavon sahit swagat.
ReplyDeleteghagh ki mausam aur khetibadi ke bare men sateek bhavishyvani atyant adbhut hai.
ReplyDeleteमहा कवि घाघ का जन्म गाजीपुर में हुआ था, ऐ्रसा मेरे काका ने कहा था. उन्होने ने कहा था कि घाघ बार-बार सपने में आते है और वो कविताएं सुनाते है. उनकी हजारों कविताएं मैं भूल चुका हूं लेकिन एक कविता मैं लिखता हूं. "दिन में बद्दर रात निबद्दर, बहै पुरवइया झब्बर झब्बर. घाघ कहें कुछ होनी होई, कुँआं के पानी धोबी धोई" पूरा इलाका मेरे काका को विशेषग्य मानता था.
ReplyDelete"पुरुवा पर जब पछुआ डोले, हंस के नार पुरुष से बोले. कहे घाघ यह समय बिचार, ई बरसी ऊ करी भतार" साभार अदनान
ReplyDeleteसुथना पहन के हर जोते, पउला पहन निरावे. कहें घांघ ये तीनों भकुआ, सिर बोझा ले गावें
ReplyDeleteवैसे तो मैने पर्यावरण पर बहुत काम किया है लिकिन घाघ पर करना ऐसा लगता है कि मैं अपने दिल की प्रतिध्वनि सुन रहा हूं (इसमें मेरे कानों की जरूरत नहीं है). इस अच्छे काम के लिए इस ब्लाग के चलानों वालों को मेरी पूरी उम्र लग जाए.
ReplyDeleteShat shat dhanyawad. Kavi ghaagh ki kavitaayen hindi sahity ki dharohar hain. For Future generations these are the links to get connected with their culture.
ReplyDeleteBahut Bahut Dhanyavaad aapka ki aapne ye sajha kiya.......
ReplyDeleteveryfantastics ideas
ReplyDeleteइस विषय पर बेहतरीन हिंदी पोस्ट (Hindi Articles) है आपकी. हार्दिक साधुवाद...
ReplyDeleteऐसे ही अन्य विषयों, जैसे 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (International Day of Yoga)' पर मेरे लेख देखिए...
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट, खाने की रुचि के बारे में...
इन्हीं विषयों पर यह ब्लॉग चटकारा (Chatkara) भी देखें.
घाघ की कहावतों से पूर्व में भी मौसम के व्यवहार को बताती हैं। कुछ भी हो उनका अनुसंधान बहुत ही अच्छा है। घाघ की रचनाओं की कोई प्रति कहीं प्राप्त नहीं हुई है लेकिन श्रुति द्वारा ही घाघ गाँव में बहुत प्रसिद्द हैं। अच्छा लगा कि नेट पर बहुत लोग इस तरह जुड़े हैं।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा और रोचक जानकारी.
ReplyDeleteसच अभी तक एकदम अनभिज्ञ था.
कब तक किसान ऐसे ही परेशान होते रहेंगे।
Uttar Pradesh latest breaking News in hindi
किसानों के ऊपर मेने एक जगह और पड़ा है आप सभी यह भी जरूर देखे
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हमारे अतीत को बचाने की इस मुहिम मैं आप सब का धन्यवाद
ReplyDeleteGhagh and Bhaddri are ingrained in rural folk lote of my generation. Hereafter I dont know.
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ReplyDeleteGhagh Bhaddri lok jiwan ke pran hai.
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ReplyDeleteBut yll kishao ke bare me bs carchaye hoti hen bs bolne ke kishan he koi unke liye kuch krta he nahi
Nice post sir
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Y Agriculture in Hindoosthan is doomed,and so is Hindoosthan Dindoosthan ! Part 4
ReplyDeleteSolution
In essence,the Hindoo farmer is a VC,with no risk mitigation options, and so, should get free power,free water and nil interest and subsidised seeds and fertilisers.In addition, the hindoo farmer is a fool,who is treated as the last and dispensable residual,variable in the politico-economic calculus.Hence,the fool has to bear the brunt of all the disasters of the Brahmin-Bania vermin and the netas and baboos - in terms of no power,no water,no subsidy,no hike in agri-prices and cheating by the traders and money lenders.
On principles of ontology,the Brahmin-Bania vermin have played with the time and life of the farmers.Time,the cosmological constant, is a creation of Allah and manifested by his providence. Hence,those who play with time - should be killed,per se,as it is a form of blasphemy in an assumed human form.
Hindoosthan has to be divided into agri-economic zones with production quotas for each state allocated to each village - and the entire agri infra integrated with the said agri-economic zone.
Better still,Hindoosthan can be partitioned based on the agrizones, which is as inevitable,as the urine discharged by the Chaiwala PM of Hindoosthan.
Once Kashmir is partitioned, and the waters of Kabul basin and Kashmir flow into Pakistan - DindoooHindoo agri and Hindoo agri exports are doomed, in any case.
Allah evaporates the water of the seas,dams and rivers and blows them to Pakistan - where it precipitates.Allah is not blowing enough. Hence,Allah will give them Kashmir- as a restitution.
1 way to make Pakistan a superpower,is to convert water into animal proteins and export the protein to the GCC.Any crop has 70% water and the rest is carbon and meat requires gazillions of water, and the animal eats the carbon of the crop - AT THE SITE OF THE FARM.It is a simple model used from the time of the Prophet - and then Pakistan and Turkey and the Mongols can start the Ghazwa-e-hind, to end that Prophecy.Even now, Pakistan exports 90% of its water into the Arabian Sea - with no USD inflows.dindooohindoo
सुन्दर पंक्तिया
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