
ये पंक्तियां 'हिन्दुस्तान' अखबार के 3 जून के अंक में प्रकाशित 'महंगाई के लिए तैयार रहे जनता : मनमोहन' शीर्षक खबर से उद्धृत हैं। खबर से ही पता चलता है कि प्रधानमंत्री उस समय उद्योग और वाणिज्य संगठन 'एसोचैम' के सालाना सम्मेलन को संबोधित करते हुए बता रहे थे कि देश को अब महंगी कीमतों पर पेट्रोल और डीजल खरीदने के लिए तैयार रहना चाहिए। वे बता रहे थे कि पेट्रोल के दाम में संभावित वृद्धि के बाद आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ सकते हैं, जिसके चलते महंगाई की दर और भी अधिक बढ़ सकती हैं।
जाहिर है देश के उद्योग व वाणिज्य जगत की खासमखास हस्तियां इस बात से काफी खुश हैं कि देश आर्थिक प्रगति के लंबे डग भर रहा है। वे लोग इतने खुश हैं कि महंगाई बढ़ने की बात हो रही है, तब भी ताली बजा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यही प्रतिक्रिया देश की उस बहुसंख्यक आबादी की भी होगी जो अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है? इस तरह का असुंतिलित विकास उचित नहीं है। मुट्ठी भर लोग लगातार अमीर होते जायें - इतना अधिक कि महंगाई बढ़ने की बात पर भी ताली बजायें - और अधिकांश लोग कष्ट भोगते रहें, यह कैसी अंधेरनगरी है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पुस्तकों में बच्चों को सीख देने के लिए 'गांधी जी का जन्तर' शीर्षक से राष्ट्रपिता के कुछ उपदेश दिये जाते रहे हैं। उसे मैं यहां पेश कर रहा हूं। हमें लगता है इस जंतर की जरूरत बच्चों से ज्यादा बडों को है। खासकर रात-दिन गांधी के नाम का माला जपने वाले लोग इसकी कसौटी पर अपने विचारों को परखते तो देश का बहुत भला होता।
निश्चय ही, अगर हमारे सभी कार्य गांधी जी के टचस्टोन पर कसे जायें तो बहुत कुछ बदल जाये दुनियां।
ReplyDeleteसच्ची बात है. वैसे इस जंतर की जरूरत सबको है. जो गाँधी जी का नाम नहीं जपते उन्हें भी.
ReplyDeleteइस तरह का असुंतिलित विकास उचित नहीं है। मुट्ठी भर लोग लगातार अमीर होते जायें - इतना अधिक कि महंगाई बढ़ने की बात पर भी ताली बजायें - और अधिकांश लोग कष्ट भोगते रहें, यह कैसी अंधेरनगरी है।"
ReplyDeleteमैं आपके विश्लेषण एवं प्रस्तावना का अनुमोदन करता हूँ.
अशोक जी,
ReplyDeleteएक किसान को ब्लागिंग करते पाकर अपार हर्ष हो रहा है। दूसरे आपके विचार बहुत सधे हुए लग रहे हैं। मजा आ गया आपके बारे में जानकर!!