हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो जलवायु परिवर्तन को पश्चिमी दुनिया द्वारा खड़ा किया गया हौवा मानते हैं। लेकिन मैं इसे अपने घर की चौखट पर महसूस कर रहा हूं। मेरे खेत, मेरा गांव, मेरा परिवेश सब इसके भुक्तभोगी और गवाह हैं। जून के महीने में इतनी गर्मी मैंने पहले कभी महसूस नहीं की। दिन के दस बजे ही धूप में नंगे पैर चलने पर तलवे जलने लगे हैं। देर शाम तक लू चल रही है। ताल, तलैये सब सूख गए हैं, कहीं पानी नहीं। पिछले करीब आठ महीने से अभी तक एक बार भी हमारे इलाके में धरती तर होने भर बारिश नहीं हुई है। अब और कैसी होगी ग्लोबल वार्मिंग ? जलवायु परिवर्तन इसे नहीं तो किसे कहेंगे ? ग्लोबल वार्मिंग को दूर की कौड़ी समझनेवाले लोगों को अब समझ लेना चाहिए कि यह हमारी देहरी पर कदम रख चुका है।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ग्लोबल वार्मिंग या भूमंडलीय उष्मीकरण धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी को कहते हैं, जिसके फलस्वरूप जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। ऐसा धरती के वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का घनत्व बढ़ने, ओजोन परत में छेद होने और वन व वृक्षों की कटाई की वजह से हो रहा है।
वायुमंडल में मौजूद कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड आदि जैसी ग्रीनहाउस गैसें धरती से परावर्तित होकर लौटनेवाली सूर्य की किरणों को रोक कर धरती का तापमान बढ़ाती हैं। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली उत्पादन संयंत्रों, उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध गैसीय उत्सर्जन के चलते वायुमंडल में कार्बन डायआक्साइड में वृद्धि हो रही है। पेड़-पौधे कार्बन डाइआक्साइड को अवशोषित करते हैं, लेकिन उनकी कटाई की वजह से समस्या गंभीर होती जा रही है। इसके अलावा जैसा कि वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती के ऊपर बने ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें (ultra violet rays) सीधे धरती पर पहुंच कर उसे लगातार गर्म बना रही हैं। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकती है। यह सीएफसी की वजह से नष्ट हो रही है जिसका इस्तेमाल रेफ्रीजरेटर , अग्निशामक यंत्र इत्यादि में होता है।
बताया जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से धरती पर मौजूद बर्फ और ग्लेशियर के पिघलने से समुद्री जल स्तर बढ़ जाएगा, जिससे तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन की वजह से रेगिस्तान का विस्तार भी बढ़ेगा। हालांकि इसका सबसे त्वरित और तात्कालिक कुपरिणाम बढ़ते हुए तापमान के कारण महामारी, सूखा, बाढ़, दावानल, पेयजल संकट जैसी विपदाओं के रूप में सामने आनेवाला है। ज्यादा गर्म तापमान वाले विश्व में मलेरिया, यलो फीवर जैसी बीमारियां तेजी से फैलेगी, साथ ही कई नयी संक्रामक बीमारियां भी पैदा होंगी। बढ़ते तापमान के कारण हमारे उपजाऊ इलाके कृषि या पशुचारण के योग्य नही रहेंगे, इससे दुनिया की आहार आपूर्ति को खतरा हो सकता है।
भारत में तो जलवायु परिवर्तन की विभीषिका शुरू भी हो गयी है और मुझे इस बात में तनिक भी संदेह नहीं कि इसकी सबसे अधिक पीड़ा हम भारतीय ही भोगने जा रहे हैं। एक अरब से अधिक की आबादी वाले जिस देश में अधिकांश लोगों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान आज भी समस्या है, आग उगलती धरती के स्वाभाविक शिकार वही लोग होंगे। हमारी दृढ़ मान्यता है कि प्रकृति अपना न्याय जरूरी करती है। भारतवासियों को बगानों, वृक्षों व ताल-तलैयों को नष्ट करने की कीमत धरती की आग में जलकर चुकानी होगी। मानसून में विलंब होने भर से पेयजल और सिंचाई के लिए यहां किस तरह हाहाकार मच गया है, यह गौर करने की बात है।
यदि आपको अब भी अपनी चौखट पर जलवायु परिवर्तन की आहट सुनाई नहीं देती तो अपने वातानुकूलित घर से बाहर निकलें और नंगे पांव चार कदम शुष्क धरती पर चलें, या फिर इन खबरों का संदेश समझें :
>> मुंबई की झीलों में सप्लाई के लिए सिर्फ महीने भर का पानी, पेयजल आपूर्ति में 20 फीसदी कटौती की गयी
>> छत्तीसगढ़ सरकार ने गर्मी व पेयजल संकट से स्कूलों की छुट्टियां बढ़ायीं
>> इंदौर में बारिश के लिए जिंदा इंसान की शवयात्रा निकाली
>> वर्षा के लिए नागपुर में मेढ़कों का विवाह
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
प्रा चीन यूनान के शासक सिकंदर (Alexander) को विश्व विजेता कहा जाता है। लेकिन क्या आप सिकंदर के गुरु को जानते हैं? सिकंदर के गुरु अरस्तु (Ari...
-
भाषा का न सांप्रदायिक आधार होता है, न ही वह शास्त्रीयता के बंधन को मानती है। अपने इस सहज रूप में उसकी संप्रेषणयीता और सौन्दर्य को देखना हो...
-
हमारे गांवों में एक कहावत है, 'जिसकी खेती, उसकी मति।' हालांकि हमारे कृषि वैज्ञानिक व पदाधिकारी शायद ऐसा नहीं सोचते। किसान कोई गलत कृ...
-
आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
-
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान कि...
-
11 अप्रैल को हिन्दी के प्रख्यात कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की पुण्यतिथि थी। उस दिन चाहता था कि उनकी स्मृति से जुड़ी कुछ बातें खेती-...
सच कह रहे हैं आप !
ReplyDeletesahee kh rhe hai bhai .
ReplyDeleteआप ठीक कह रहे हैं। पर्यावरण से संबंधित एक कार्यशाला में किसी वक्ता ने कहा था कि - यदि प्रकृति को हम बैलेन्स नहीं रहने देंगे तो प्रकृति हमें बैलेन्स कर देगी।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आप ठीक कह रहे हैं!!!!!
ReplyDeleteसही कह रहे हैं आप. करनी का फ़ल भुगतना ही है.
ReplyDeleteरामराम.
-इंदौर में बारिश के लिए जिंदा इंसान की शवयात्रा निकाली
ReplyDelete>> वर्षा के लिए नागपुर में मेढ़कों का विवाह
-ashcharyjanak!
-Global warming ka jo asar tezi se dharati par ho raha hai wah wakayee chintajanak hai.
सचमुच चिँताजनक :-(
ReplyDelete- लावण्या
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप्।स्वयं मुख्यमंत्री ने इस मामले मे पहल कर सोलह जून से छूट्टियां बढाकर एक जुलाई तक़ कर दी है।यंहा सामान्य्तयाः दस जून के आसपास मानसून आ जाता था आज तक़ मानसून तो दूर उसके पहले की बारिश का भी अता-पता नही है।पारा 43 डिग्री के पार ही चल रहा है जो कहर बरपा रहा है।लू के थपेडे सुबह से देर रात झुलसा रहे हैं,ये पृकृति का प्रकोप नही है तो और क्या है?हम तो महसूस कर रहे है आपकी बात की गहराई को।
ReplyDeleteइसे तो हर आदमी हर पल हर क्षण महसूस कर रहा है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
लेकिन अभी भी समय है, हम अपने बरसात के पानी को जमा कर सकते है, अपने तलाबो, झीलो ओर पोखोरो को ज्यादा गहरा करे,अपनी नदियो के पानी को साफ़ रखे,हरियाली को ज्यादा से ज्यादा नष्ट होने से बचाये, बेकार ,बेकार मे आराम परस्त ना बने यानि कारो का इस्तेमाल जरुरत के हिसाब से करे,
ReplyDeleteलेकिन किसी को नही सुध, चलिये सब भुगतेगे.
धन्यवाद
हमें सबक लेना होगा
ReplyDeleteसंभल जाने की जरुरत है.
ReplyDeleteअशोक, इस बारे में सतत लिखने कहने की जरूरत है। सब - "आप सही कह रहे हैं" कह जाते हैं पर सीरियस नहीं हैं पर्यावरण के खतरों के बारे में।
ReplyDeleteएक किसान होने के नाते मैं महसूस कर रहा हूँ इस बेरहम मौसम के रुख को . आज भी गावं में चर्चा है की धान लगाये जाए या नहीं . वेड तैयार है आसमान की तरफ देख देख कर मायूस से हो चले है किसान
ReplyDeleteवैदिक काल में अनावृष्टि से त्रस्त हो 'नरमेध' यज्ञ तक करने का वर्णन मिलता है। कहीं वह symbolic तो नहीं, पानी के अभाव में महाजनहानि का ?
ReplyDeleteसभ्यता यह संकट पहले भी झेल चुकी है। लेकिन जैसा ज्ञान जी ने कहा, इस पर निरंतर मंथन कर अपनी और संतति की conditioning करनी होगी। तभी हम आते हुए संकट को दूर तक टाल पाएँगे और उससे सामना होने पर समायोजित हो पाएँगे।
सच कह रहे हैं आप. अपने स्तर पर जो हो सके उसे करने की जरुरत है !
ReplyDeleteएक महत्वपूर्ण सामायिक आलेख. आप से हम पूर्णरूपेण सहमत हैं.हम अभी भोपाल में हैं. यह झीलों कि नगरी कहलाती थी. अब यहाँ कि बड़ी झील तेजी से सूखती जा रही है. पिचले दो वर्षों से वर्षा अपर्याप्त रही है. अब तक बारिश का कोई अता पता भी नहीं है. पीने के पानी के लिए हत्याएं भी हो रही हैं. इतनी गर्मी वह भी लगातार हमने जीवन में कभी महसूस नहीं की थी
ReplyDeleteबिलकुल सच ..बुरे हाल हैं !
ReplyDeleteThe real and more dangerous problem is that
ReplyDeletemejoirty indian people do not know about global warming or do not understand how to control it.
Sahi kaha aapne, iske liye ham sab ko jagrook hona hoga, tabhi isse bach payenge.
ReplyDeleteInformation about periwinkle flower , Ashoka tree facts