लोग समझते हैं कि सरकार किसानों को राहत पहुंचा रही है, और माल चला जाता है कुछ लोगों की जेब में। आप के द्वारा दिया गया जो टैक्स देश के विकास व खुशहाली पर खर्च होना चाहिए, वह घोटालों की भेंट चढ़ जाता है। आतंकवादियों व अपराधियों से भी निष्ठुर हैं ये घोटालेबाज। आत्महत्या कर रहे विदर्भ के किसानों का निवाला छिनने में भी इनकी आत्मा नहीं डोली। प्रस्तुत है करोड़ों रुपये का गाय भैंस घोटाला शीर्षक से बिजनेस स्टैंडर्ड में मुंबई डेटलाइन से प्रकाशित यह खबर :
देश में किसानों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा तो कर दी है लेकिन यह राहत पैकेज किसानों के पेट की आग न बुझाकर नेताओं और उनके चेलों की जेब में समा गया।
यह बात सूचना अधिकार के द्वारा मांगी गई जानकारी के जरिए प्रकाश में आई है। सरकारी खजाने से किसानों के लिए दिए गए 4825 करोड़ रुपए में से किसानों को मिली सिर्फ दो फीसदी रकम, बाकी की रकम बैंक, नेताओं और सरकारी बाबुओं की तिकड़ी डकार गयी।
देश में सबसे ज्यादा विदर्भ के अन्नदातों ने गरीबी और तंगहाली से परेशान होकर मौत को गले लगाना बेहतर समझा। देश-विदेश में भूख से मरने की खबरों से शर्मसार होकर महाराष्ट्र और केन्द्र सरकार ने विदर्भ के किसानों को विशेष राहत पैकेज दिया।
विदर्भ में किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने दिसंबर 2005 में 1075 करोड़ रुपए का राहत देने की घोषणा की। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जुलाई 2006 में अपने विदर्भ दौरे के दौरान इस क्षेत्र के अन्नदाताओं के विकास के लिए 3750 करोड़ रुपये देने की बात कही।
सरकारी खजाने से दिए गए पैसों के लिए योजना के तहत किसानों के बीच दुग्ध कारोबार को बढ़ावा दिया जाना था। इस पैकेज के मूल उद्देश्य किसानों को दुग्ध व्यसाय से जोड़ने के तहत 4 करोड़ 95 लाख 35 हजार रुपये जानवारों की खरीददारी में खर्च किए गए। इन पशुओं के लिए चारे और अन्य पोशक तत्वों में 63 लाख 64 हजार रुपये और गाय-भैसों पर 35 लाख 35 हजार रुपये खर्च कर दिए गए।
इसके अलावा, यवतमाल जिला दुध उत्पादक सहकारी संस्था के माध्यम से 53 लाख रुपये खर्च करने का बजट बनाया गया, जिसमें से 40.95 लाख रुपये खर्च भी कर दिए गए और 14.05 लाख रुपये खर्च किये जाने वाले है।
पहली नजर में देखने या कहें कि एसी दफ्तरों में बैठ कर इस योजना को देखने पर किसानों का लाभ ही लाभ दिखाई दे रहा है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हैं, क्योंकि सूचना अधिकार के तहत मिली लाभांवित किसानों की सूची बोगस है।
विदर्भ किसानों के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष करने वाले किशोर तिवारी कहते हैं कि हमारे नेताओं को शर्म नहीं आती है कि वे भूखे किसानों के पेट की रोटी खुद खा रहे है। इस खुलासे के बाद महाराष्ट्र सरकार जांच करने की बात कह कर मामला टालने में लग गयी है,क्योंकि महाराष्ट्र और केन्द्र की सत्ता में बैठी कांग्रेस और एनसीपी दोनों के नेता इसमें शामिल है।
किसानों के संघटन का नेतृत्व कर रहे किशोर तिवारी ने इन नेताओं के ऊपर आपराधिक मुकदमा चलाए जाने की मांग करते हुए कहा कि आजाद भारत का यह सबसे शर्मसार कर देने वाला गाय-भैंस घोटला है। उनके अनुसार सरकारी खजाने से किसानों के लिए राहत पैकेज के नाम से निकाली गयी राशि में से सिर्फ दो फीसदी की रकम किसानों तक पहुंची है, बाकि की राशि बैंकों, नेताओं और सरकारी अधिकारियों की तिजोरियों में जमा हो गयी है।
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आश्चर्य, कोई आश्चर्य नहीं हुआ। इम्प्लीमेण्टेशन मशीनरी को उत्तरोत्तर भ्रष्ट और पंगु बना दिया गया है!
ReplyDeleteअशोक जी यह तंत्र इतना भ्रष्ट हो चुका है की कोई कितना ही कुछ कहे या करे इन्होने
ReplyDeleteइस कार्य को भले ही राहत, सहायता, उन्मूलन आदि नाम दे रखे हों ! पर वास्तव में यह
सरकारी रकम डकारू योजना है ! और ये सब इस श्राद्ध को खाने वाले कौवे है ! बल्कि कौवे
कहना कौवे का भी अपमान ही होगा ! और मजे की बात की कोई इनका कुछ नही कर
सकता ! क्योंकि यहाँ तो खेत ही बागड़ खा रही है ! आपको बहुत शुभकामनाएं 1
इनकी आत्मा मर चुकी है ! सबको अपनी फ़िक्र है!
ReplyDeleteकिसान से ज्यादा पिडीत आज भी कोई नही है !
जो थोड़ी बहुत सम्पन्नता है वो भी गिने चुने
किसानो पर ही है ! और यह भी सच है की कोई
भला आदमी इमानदारी से करना भी चाहे तो
अन्दर के मगरमच्छ इनको कराने नही देते !
बड़ी लाचारी है !
लात लगाने, और इन डकारू लोगों का घर जलाने की कोई योजना आप लोग नहीं बनायेंगे? ऐसे ही चलता रहेगा.. कबतक चलेगा?
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा है ! धन्यवाद आपको !
ReplyDeleteइस तंत्र को मनमानी से कोई नही रोक सकता अशोक जी !
ReplyDeleteफ़िर भी आवाज उठाना जरुरी है ! धन्यवाद !
हमारे देश में करप्शन की सारी हदें पार हो चुकी हैं..मज़हब, क्षेत्र और भाषा के नाम पर तुच्छ राजनीति करने वाले .हमारे नेताओं को किसानों की तकलीफें नज़र नहीं आतीं...
ReplyDeleteअशोक जी, यह जानकारी प्रस्तुत करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
ReplyDeleteलाश में से कफ़न भी चुराने वालों के बारे में जानकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ. राम जाने कब हमारा ईमान जागेगा?
यह सब जान कर दुःख होता है ..असली मदद कभी उन तक नही पहुँच पाती जिनको इसकी जरूरत है .नेता लोगों की अब बात करना ही बेकार लगता है ..कोई अच्छा सोचता होगा क्या ? मुश्किल है यह जानना
ReplyDeleteअब ऐसी खबरें नहीं चौंकाती....ज्ञानजी की एक पोस्ट में इतिहास पठन पर चर्चा चल रही थी...उसी के आलोक में कहूँगा कि - ईतिहास हमें चौंकने से बचाता है....अब तक एसे घोटालों का जो इतिहास रहा है...वह हमसे यही कह रहा है...चौंको मत....अभी और न जाने कैसे-कैसे घोटाले आएंगे।
ReplyDeleteअद्भुत..!!!!
ReplyDeleteसरकार को १० बटा १०...!!!!
जै बोलो भई जै बोलो....
बहुत सही लिखा-यही हालात हैं.
ReplyDeleteकुछ भी सम्भव है... लोग कुछ भी पचा सकते हैं !
ReplyDeleteबहुत उचित लिखा हे, लेकिन आश्चर्य तब होता हे जब कोई नेता कोई घोटाला ना करे, लेकिन इन कमीनो को यह नही पता कि ऎसा पेसा तीन पीढीयो से आगे नही बढता ओर अपने साथ बहुत सी तबाहियां ले कर आता हे, जेसे बाड का पानी ...
ReplyDeleteधन्यवाद
is baat se purntah sahmat hu kee ghotalebaaj aatankiyon se jyada kharab hai
ReplyDeleteसादर नमस्कार!
ReplyDeleteकृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी अमूल्य टिप्पणी हेतु प्रतीक्षारत है।
कितनी दुखद घटना से पर्दा उठाया है आपने अशोक जी ~ ये ग़्होटालेबाजोँ का कोई ईमान धरम नहीँ शोषित किसानोँ के प्रति सच्ची सहानुभूति रहते हुए भी विवशता हो रही है, क्या किया जा सकता है ? है कोई उपाय ?
ReplyDelete-लावण्या
एक चुटकुला है। एक भारतीय मंत्री विदेश यात्रा पर जाता है तो विदेशी मंत्री अपनी शान बघारने के लिए कहता है...मंत्री जी खिड़की के बाहर देख रहे हैं...मंत्री जी ने कहा हां वहां एक पुल है...तो विदेशी मंत्री ने कहा इस पुल को बनाने में खर्च हुई रकम का आधा तो मेरे खाते में आ गया है। वही विदेशी मंत्री भारत आया....भारतीय मंत्री ने खिड़की के बाहर का दृश्य विदेशी मंत्री को दिखाया और कहा खिड़की के बाहर वो पुल देख रहे हैं...विदेशी मंत्री ने कहा-कहां..मुझे तो कुछ दिखाई ही नहीं देता। भारतीय मंत्री ने कहा- दिखेगा कैसे...वो तो बना ही नहीं...उसके मद में आया सारा पैसा मेरी जेब में है।
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