लोकसभाध्यक्ष। यानी वह शख्सियत जो देश का भाग्य व भविष्य निर्धारित करनेवाले सदन की सबसे ऊंची कुर्सी पर विराजमान है। लेकिन जब उसी की सांसद निधि से निर्मित सड़क का यह हाल है तो अन्य का क्या होगा यह आसानी से समझा जा सकता है। जी हां, मैं लोकसभाध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार की सांसद निधि से निर्मित एक सड़क की बात कर रहा हूं। यह कंक्रीट सड़क इतनी मजबूत बनी कि बनने के बाद पानी डालने से ही इसका सीमेंट उखड़ने लगा। उस वक्त मैंने उसका फोटो ले लिया था, जिसे यहां आप स्वयं देख सकते हैं।
इस सड़क का निर्माण श्रीमती मीरा कुमार के संसदीय निर्वाचनक्षेत्र सासाराम के अंतर्गत आनेवाले कैमूर जिला के कुदरा प्रखंड के सकरी ग्राम के वार्ड संख्या 10 में किया गया है। हालांकि यहां पर कोई सूचनापट नहीं लगाया गया है, लेकिन गांववालों का कहना है कि यह सड़क श्रीमती कुमार की सांसद निधि से ही बनी है। गांववालों को यह बात उनकी पार्टी के प्रखंड अध्यक्ष ने बतायी है और उन कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष की देखरेख में ही यह सड़क बनी है। बीते जाड़े में निर्मित सड़क का अब क्या हाल हो चुका है, वह नीचे के चित्र में देखा जा सकता है।
इस सड़क की कुछ अन्य खूबियां संक्षेप में निम्नवत हैं :
1. कंक्रीट सड़क बनाने से पहले मिट्टी को समतल कर उस पर ईंट बिछायी जाती है। लेकिन पूरी सड़क बनाने में एक भी साबूत ईंट का इस्तेमाल नहीं किया गया। मिट्टी को बिना समतल किए हुए, ईंट के टुकड़े मात्र डाल दिए गए और उसी के ऊपर कंक्रीट की ढलाई कर दी गयी।
2. ढलाई में सीमेंट बहुत कम मात्रा में और घटिया किस्म का दिया गया। सड़क की मोटाई भी काफी कम रखी गयी।
3. सड़क का प्राक्कलन बनाने से लेकर उसके निर्माण तक कभी भी वास्तविक अभिकर्ता या विभागीय अभियंता कार्यस्थल पर नहीं आए, पूरा काम बिचौलियों के जरिए कराया गया।
4. सड़क के निर्माण के दौरान घोर अपारदर्शिता बरती गयी। बनने से लेकर आज तक कार्यस्थल पर प्राक्कलन अथवा निर्माण एजेंसी की जानकारी देनेवाला कोई सूचनापट नहीं लगाया गया, जबकि यह जरूरी होता है। इस स्थिति में गांव के ग्रामीण न तो प्राक्कलन के बारे में जान पाए, न ही प्राक्कलित राशि, निर्माण एजेंसी या वास्तविक ठेकेदार के बारे में जानकारी हो पायी।
5. सड़क के नीचे से गुजरनेवाली नाली को बनाने से सड़क का काम करा रहे बिचौलियों ने पल्ला झाड़ लिया। उसके लिए मुहल्लेवालों से श्रम व पैसे की मांग की गयी। श्रम तो मुहल्ले के बच्चों ने किया ही (नीचे चित्र देखें), ईंट, पटिया आदि के रूप में मुहल्लेवासियों ने निर्माण सामग्री भी दी। इसके बावजूद बिना ह्यूम पाइप दिए जैसे-तैसे टुकड़ी ईंट से जोड़कर नाली बनायी गयी, जिसके चलते अब नाली में जलजमाव की समस्या से लोग जूझ रहे हैं।
6. लोकसभाध्यक्ष संबंधित प्रखंड में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से निर्मित सड़क का उद्घाटन करने आयीं (उस वक्त का चित्र नीचे देखें), लेकिन अपनी ही सांसद निधि से निर्मित सड़क के बगल से गुजरने के बावजूद उसकी खोज-ख्ाबर लेना संभवत: जरूरी नहीं समझा।
देश और प्रदेश के विविध मसले जनता द्वारा निर्वाचित सांसद लोकसभाध्यक्ष के समक्ष सदन में रखते हैं। लेकिन जब लोकसभाध्यक्ष की सांसद निधि से निर्मित सड़क ही इस कदर धांधली की शिकार हो तो जनता कहां जाए, क्या करे?
Saturday, April 3, 2010
Friday, April 2, 2010
उन सब का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे याद रखा।
लंबे समय बाद ब्लॉगजगत में लौट रहा हूं। थोड़ा असहज महसूस हो रहा है, लेकिन घर लौटने पर किसे खुशी नहीं होती। बहरहाल, सबसे पहले मैं उन सभी साथियों के प्रति आभार व अभिवादन व्यक्त करना चाहूंगा, जिन्होंने मेरी अनुपस्थिति में भी मुझे याद रखा।
लवली कुमारी जी ने मेरी पिछली पोस्ट में टिप्पणी कर खैरियत पूछी थी। पिछले खरीफ सीजन में सूखे की वजह से कुछ परेशानियां थीं, जिनका असर मेरी जमीनी खेती-बाड़ी पर अभी भी है। लेकिन मैं ठीक हूं और अब इस स्थिति में हूं कि आप सभी से अपने विचारों व भावनाओं को साझा करने के लिए कुछ समय निकाल सकूं।
अनुराग शर्मा जी ने ताऊ की मुंडेश्वरी मंदिर वाली पहेली में टिप्पणी की है, ‘कमाल है ताऊ. पहेली कैमूर की और विजेताओं में अशोक पाण्डेय जी (खेतीबारी वाले) का नाम भी नहीं! कमाल है!’ भाई, मुझे इस पहेली का उस समय पता ही नहीं चल पाया, वरना विजेता बनने का यह मौका तो समीर भाई से पहले ही मैं झटक लेता:) वैसे मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि पहेली के जरिए कैमूर की धरती पर मौजूद इस प्राचीनतम हिन्दू मंदिर की चर्चा हुई। चर्चाकारों व विजेताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद और बधाई। मैं स्वयं इस बात के लिए प्रयत्नशील रहा हूं कि बिहार से बाहर के लोग भी इस अनमोल धरोहर के बारे में जानें। मुंडेश्वरी मंदिर से संबंधित मेरे तीन आलेख नेट पर मौजूद हैं, दो मेरे ब्लॉग में और एक साप्ताहिक अखबार ‘चौथी दुनिया’ में।
आपको यह जानकर संतोष होगा कि ब्लॉगिंग से दूर रहने के बावजूद मैं इंटरनेट से दूर नहीं था। नेट पर मैं तकरीबन हर रोज आता था, लेकिन जरूरी काम निपटाने तक ही टिक पाता था। मैंने कुछ डायरीनुमा ब्लॉग बना रखे हैं, जिनमें मैं विविध समाचारपत्रों की साइटों पर प्रकाशित काम लायक खबरों की कतरनों का संग्रह करता हूं। यह काम भी मैंने कमोबेश जारी रखा।
ब्लॉगिंग से दूर रहने की वजह से मुझे क्षति भी हुई। ‘खेती-बाड़ी’ का गूगल पेजरैंक 3 से 2 हो गया और ब्लॉग एग्रीगेटरों की सक्रियता क्रमांक में भी यह काफी पीछे खिसक गया। मैं ट्विटर के निर्देश के मुताबिक अपने खाते को अपडेट नहीं कर पाया, और अब अपने ट्विटर अकाउंट तक पहुंच नहीं पा रहा हूं। ब्लॉगजगत में इस बीच कई नए साथी जुड़े होंगे, कई नई जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ होगा, मैं उन सबसे दूर रहा। इस क्षति की पूरी भरपाई तो संभव नहीं, लेकिन उम्मीद है कि आंशिक भरपाई शीघ्र कर लूंगा।
इतने दिनों बाद लौटने पर ब्लॉगजगत बिलकुल बदला-बदला नजर आ रहा है। ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत का रूप-रंग तो बदला दिख ही रहा है, साथी ब्लॉगरों के चिट्ठों की साज-सज्जा भी पहले से अलग और आकर्षक नजर आ रही है। एक नजर उन सब पर डालनी है, इसलिए अभी के लिए इतना ही। तब तक के लिए राम-राम।
लवली कुमारी जी ने मेरी पिछली पोस्ट में टिप्पणी कर खैरियत पूछी थी। पिछले खरीफ सीजन में सूखे की वजह से कुछ परेशानियां थीं, जिनका असर मेरी जमीनी खेती-बाड़ी पर अभी भी है। लेकिन मैं ठीक हूं और अब इस स्थिति में हूं कि आप सभी से अपने विचारों व भावनाओं को साझा करने के लिए कुछ समय निकाल सकूं।
अनुराग शर्मा जी ने ताऊ की मुंडेश्वरी मंदिर वाली पहेली में टिप्पणी की है, ‘कमाल है ताऊ. पहेली कैमूर की और विजेताओं में अशोक पाण्डेय जी (खेतीबारी वाले) का नाम भी नहीं! कमाल है!’ भाई, मुझे इस पहेली का उस समय पता ही नहीं चल पाया, वरना विजेता बनने का यह मौका तो समीर भाई से पहले ही मैं झटक लेता:) वैसे मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि पहेली के जरिए कैमूर की धरती पर मौजूद इस प्राचीनतम हिन्दू मंदिर की चर्चा हुई। चर्चाकारों व विजेताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद और बधाई। मैं स्वयं इस बात के लिए प्रयत्नशील रहा हूं कि बिहार से बाहर के लोग भी इस अनमोल धरोहर के बारे में जानें। मुंडेश्वरी मंदिर से संबंधित मेरे तीन आलेख नेट पर मौजूद हैं, दो मेरे ब्लॉग में और एक साप्ताहिक अखबार ‘चौथी दुनिया’ में।
आपको यह जानकर संतोष होगा कि ब्लॉगिंग से दूर रहने के बावजूद मैं इंटरनेट से दूर नहीं था। नेट पर मैं तकरीबन हर रोज आता था, लेकिन जरूरी काम निपटाने तक ही टिक पाता था। मैंने कुछ डायरीनुमा ब्लॉग बना रखे हैं, जिनमें मैं विविध समाचारपत्रों की साइटों पर प्रकाशित काम लायक खबरों की कतरनों का संग्रह करता हूं। यह काम भी मैंने कमोबेश जारी रखा।
ब्लॉगिंग से दूर रहने की वजह से मुझे क्षति भी हुई। ‘खेती-बाड़ी’ का गूगल पेजरैंक 3 से 2 हो गया और ब्लॉग एग्रीगेटरों की सक्रियता क्रमांक में भी यह काफी पीछे खिसक गया। मैं ट्विटर के निर्देश के मुताबिक अपने खाते को अपडेट नहीं कर पाया, और अब अपने ट्विटर अकाउंट तक पहुंच नहीं पा रहा हूं। ब्लॉगजगत में इस बीच कई नए साथी जुड़े होंगे, कई नई जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ होगा, मैं उन सबसे दूर रहा। इस क्षति की पूरी भरपाई तो संभव नहीं, लेकिन उम्मीद है कि आंशिक भरपाई शीघ्र कर लूंगा।
इतने दिनों बाद लौटने पर ब्लॉगजगत बिलकुल बदला-बदला नजर आ रहा है। ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत का रूप-रंग तो बदला दिख ही रहा है, साथी ब्लॉगरों के चिट्ठों की साज-सज्जा भी पहले से अलग और आकर्षक नजर आ रही है। एक नजर उन सब पर डालनी है, इसलिए अभी के लिए इतना ही। तब तक के लिए राम-राम।
Subscribe to:
Posts (Atom)
-
प्रा चीन यूनान के शासक सिकंदर (Alexander) को विश्व विजेता कहा जाता है। लेकिन क्या आप सिकंदर के गुरु को जानते हैं? सिकंदर के गुरु अरस्तु (Ari...
-
भाषा का न सांप्रदायिक आधार होता है, न ही वह शास्त्रीयता के बंधन को मानती है। अपने इस सहज रूप में उसकी संप्रेषणयीता और सौन्दर्य को देखना हो...
-
हमारे गांवों में एक कहावत है, 'जिसकी खेती, उसकी मति।' हालांकि हमारे कृषि वैज्ञानिक व पदाधिकारी शायद ऐसा नहीं सोचते। किसान कोई गलत कृ...
-
आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
-
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान कि...
-
11 अप्रैल को हिन्दी के प्रख्यात कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की पुण्यतिथि थी। उस दिन चाहता था कि उनकी स्मृति से जुड़ी कुछ बातें खेती-...