Monday, August 17, 2009

रेडियो डॉयचे वेले हिंदी सेवा के 45 साल : पत्रकारों के अनुभव की कहानी, उनकी ही जुबानी

हमारे गांवों में बिजली की चमक कभी-कभी ही कौंधती है। इसलिए प्रसारण माध्‍यमों में ग्रामीणों की आज भी सबसे अधिक निर्भरता रेडियो पर ही है। हिन्‍दी में खबरों के लिए रेडियो पर बीबीसी की तरह सुपरिचित नाम रेडियो डॉयचे वेले का भी है। इस 15 अगस्‍त को उसकी हिंदी सेवा को शुरू हुए पैंतालीस साल हो गए हैं। राइन नदी पर बसे कार्निवाल के शहर कोलोन से 15 अगस्त के ही दिन 1964 में इसके हिंदी कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू हुआ था। इससे जुड़े पत्रकार इस मौके पर बता रहे हैं इसके सफरनामा और अपने अनुभवों को।

45 साल पहले शॉर्टवेव रेडियो डॉयचे वेले की ख़बरों को सुनने का एकमात्र माध्यम हुआ करता था। लेकिन आज बग़ैर किसी परेशानी के घर बैठे कंप्यूटर पर जब मर्ज़ी चाहे कार्यक्रम सुने जा सकते हैं। इससे जुड़ी पत्रकार मानसी गोपालकृष्णन इस तकनीकी प्रगति को रेखांकित करते हुए कहती हैं, ‘’ इस बात से तो शायद ही कोई इंकार करेगा कि पिछले पांच वर्षों में इंटरनेट और मोबाइल ने हमारी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया है। और यह बात डॉयचे वेले की हिंदी सेवा के लिए भी सही है।‘’

डॉयचे वेले की हिंदी सेवा के लिए नई दिल्‍ली से इसके पहले डेली रिपोर्टर कुलदीप कुमार अपने अनुभव बताते हैं, ‘’ 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान मैं लखनऊ से अमेठी जा रहा था। रास्ते में क़स्बा पड़ता है – मुसाफिरखाना। वहां एक केमिस्ट की दूकान देखकर मैंने टैक्सी रुकवाई और केमिस्ट से कहा कि टेप रिकार्डर का हेड साफ़ करने के लिए कार्बन टेट्रा क्लोराइड चाहिए। उसने कहा कि यह काम तो वह स्पिरिट से ही कर देगा बिना पैसा लिए। टेप रिकार्डर देखकर उसने पूछा कि क्या मैं रेडियो पत्रकार हूं? मेरे हां कहने पर उसने संस्था का नाम पूछा। जब मैंने कहा डॉयचे वेले तो उसने तुंरत सवाल किया - तो क्या आप कुलदीप कुमार हैं? मुझे भौंचक्का होते देख उसने बताया कि हर शाम वह रोज़ डॉयचे वेले का हिन्‍दी प्रसारण सुनता है।

आमजन का भरोसा और उससे मिलनेवाला स्‍नेह और अपनापन पत्रकारों की सबसे बड़ी पूंजी होती है। जो पत्रकार इस पूंजी की अहमियत समझते हैं, उनके लिए यह पेशा मिशन से कम नहीं। तो आइए देखते हैं इन पैंतालीस वर्षों में आए बदलावों को किस तरह आंकते हैं डॉयचे वेले हिन्‍दी सेवा से जुड़े पत्रकार। पत्रकारिता के मिशन के उनके अनुभवों की कहानी उनकी ही जुबानी।

4 comments:

  1. बहुत बढिया बात बताई आपने. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. जर्मनी का यह रेडियो कभी रेगुलर नहीं सुना। आपने बताया तो ध्यान दूंगा।

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  3. यह जानकारी बांटने के लिए आभार -बचपन में तो एक कान से बी बी सी और दूसरे से डोयिचे वैले सुनता था !

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  4. डॉयचे वेले ka zikra achcha laga ...thanks

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