Thursday, October 26, 2023

नंगे पैर चलकर पाश्चात्य दर्शन की नींव डाली और पी गया जहर!

प्राचीन यूनान के शासक सिकंदर (Alexander) को विश्व विजेता कहा जाता है। लेकिन क्या आप सिकंदर के गुरु को जानते हैं?


सिकंदर के गुरु अरस्तु (Aristotle) थे। अरस्तु के गुरु प्लेटो (Plato) थे, जिन्हें अरबी में अफलातून कहा गया। प्लेटो के द्वारा एथेंस शहर में 387 ईसवी पूर्व में पश्चिमी जगत की उच्च शिक्षा की पहली संस्था एकेडमी (Academy) की स्थापना की गई। आज उच्च शिक्षा के केन्द्रों के लिए बहुप्रयुक्त एकेडमी शब्द वहीं से ली गई है। प्लेटो के द्वारा रचित ग्रंथ रिपब्लिक काफी प्रसिद्ध है। प्लेटो के गुरु सुकरात (Socrates) थे, जिन्हें बहुधा पाश्चात्य दर्शन का जनक ( founding father of western philosophy) माना जाता है।

पश्चिम के ज्ञान-जगत की दार्शनिक पृष्ठभूमि को तैयार करने में इन तीन दार्शनिकों (सुकरात, प्लेटो और अरस्तू) की त्रयी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

पाश्चात्य दर्शन की शुरुआत यूनान से मानी जाती है। सुकरात, प्लेटो और अरस्तू से भी पहले वहां थेल्स जैसे दार्शनिकों की चर्चा मिलती है। सोफिस्ट लोगों की भी चर्चा मिलती है, जो भ्रमणशील शिक्षक थे और जरूरी नहीं था कि वे यूनान के ही हों। वे यूनान में अमीर लोगों से पैसे लेकर उन्हें शिक्षा दिया करते थे। लेकिन जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि पाश्चात्य दर्शन की शुरुआत आमतौर पर सुकरात से मानी जाती है, इसलिए यहां हम सुकरात के बारे में कुछ और जानने की कोशिश करते हैं। सुकरात ने खुद कुछ नहीं लिखा। उनके व्यक्तित्व व विचारों के बारे में हमें उनके समकालीनों के लेखन से जानकारी मिलती है।

सुकरात के जिन विचारों के बारे में हमें जानकारी मिलती है उनमें कुछ मुख्य इस प्रकार हैं -

(1) मानव ज्ञान खुद की अज्ञानता की पहचान से शुरू होता है; (2) अपरीक्षित जीवन जीने योग्य नहीं है; (3) सद्गुण ही ज्ञान है; और (4) एक अच्छे इंसान को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता, क्योंकि चाहे उसे कितना भी दुर्भाग्य झेलना पड़े, उसका पुण्य बरकरार रहेगा।

सुकरात के बारे में कहा जाता है कि वे देखने में सुंदर नहीं थे। बड़े-बड़े बाल रखे हुए अस्त-व्यस्त कपड़ों में नंगे पैर चला करते थे। फिर भी वे एथेंस के युवा वर्ग में वे काफी लोकप्रिय थे।

सुकरात अपनी प्रश्न पूछने की पद्धति के लिए प्रसिद्ध थे, जिसे अब सुकराती प्रश्नोत्तरी (Socratic Questioning) के नाम से जाना जाता है। इस पद्धति में शिक्षक छात्र को उच्चतम ज्ञान की प्राप्ति कराने के लिए अज्ञानी मानसिकता अपना कर प्रश्न पूछता है। सुकरात ने लोगों में मान्यताओं व धारणाओं को चुनौती देने और आलोचनात्मक सोच व आत्म-निरीक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए इस पद्धति का उपयोग किया।

तत्कालीन यूनान में प्रचलित मान्यताओं पर सवाल खड़ा करने के चलते सुकरात पर न्यायालय में मुकदमा चला जिसमें उन्हें देव निंदा और युवाओं को मतिभ्रष्ट करने के आरोप लगाकर विषपान के जरिए मौत की सजा सुनाई गई। सुकरात के शिष्यों व शुभचिंतकों ने मृत्यु दंड से बचाने केलिए उन्हें जेल से भगाने का इंतजाम किया, लेकिन सुकरात देश के कानून के खिलाफ चलने को तैयार नहीं हुए और उन्होंने हंसते-हंसते विष का प्याला पी कर मृत्यु का आलिंगन किया।

Friday, October 20, 2023

धोरडो : 22 साल पहले भूकंप से हुआ था तबाह, अब बेस्ट टूरिज्म विलेज बना

आज हम भारत के एक ऐसे गांव की चर्चा करेंगे जो 22 साल पहले भूकंप में पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था, लेकिन आज विश्व पटल पर अपनी पहचान बना चुका है।

गुजरात (Gujarat) के कच्छ के एक छोटे से गांव धोरडो (Dhordo) को संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन (UNWTO) द्वारा बेस्ट टूरिज्म विलेज चुना गया है। उसने बेस्ट टूरिज्म विलेज 2023 (Best Tourism Village 2023) के रूप में दुनिया भर के 54 गांवों के नाम की घोषणा की है, जिसमें गुजरात के इस गांव को भी स्थान दिया है। 

संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन ने सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव 2023 की अपनी सूची की घोषणा करते हुए अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर जारी बयान में कहा कि यह सम्मान उन गांवों को दिया जाता है जो ग्रामीण इलाकों व परिदृश्यों के पोषण, सांस्कृतिक विविधता तथा स्थानीय मूल्यों व खान-पान परंपराओं के संरक्षण में अग्रणी हैं। संगठन के महासचिव ने कहा कि पर्यटन समावेशिता, स्थानीय समुदायों के सशक्तिकरण और सभी क्षेत्रों में लाभ के वितरण के लिए एक सशक्त जरिया हो सकता है। उन्होंने कहा कि संगठन की पहल उन गांवों को मान्यता देती है जिन्होंने अपने विकास और कल्याण के लिए पर्यटन को उत्प्रेरक के रूप में उपयोग किया है।

दरअसल साल 2021 में शुरू की गई यह पहल संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संघ के ग्रामीण विकास के लिए पर्यटन कार्यक्रम (tourism for rural development program) का हिस्सा है। कार्यक्रम पर्यटन के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और समावेशन को बढ़ावा देने, जनसंख्या में कमी से निपटने, नवाचार और मूल्य श्रृंखला एकीकरण को आगे बढ़ाने तथा टिकाऊ प्रथाओं (sustainable practices) को प्रोत्साहित करने के लिए काम करता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर धोरडो गांव की तस्वीरें पोस्ट करते हुए कहा, “कच्छ में धोरडो की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक सुंदरता का जश्न मनाया जाता देखकर बेहद रोमांचित हूं। यह सम्मान न केवल भारतीय पर्यटन की क्षमता को, बल्कि विशेष रूप से कच्छ के लोगों के समर्पण को भी दर्शाता है। धोरडो चमकता रहे और दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करता रहे।”

धोरडो गांव भारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित है। 2011 की जनगणना के मुताबिक इस गांव की आबादी 620 है। इस गांव को रण उत्सव की वजह से पहचान मिली है। यह उत्सव हर साल दिसंबर से फरवरी तक 3 महीने के लिए मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान पर्यटकों की भारी भीड़ रहती है। रण उत्सव की वजह से इस गांव में कई तरह के डेवलपमेंट के काम हुए हैं, जिससे यह गांव गुजरात के विकास का चेहरा बन गया है। 

बताया जाता है कि साल 2001 में गुजरात के कच्छ इलाके में आए विनाशकारी भूकंप ने गांव को पूरी तरह से तबाह कर दिया था। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के सीएम रहते ही धोरडो की दशा व दिशा सुधारने के प्रयास शुरू कर दिए। साथ ही गांव के गुलबेग मियां की कोशिशें भी रंग लाईं। गुलबेग मियां चाहते थे कि धोरडो गांव में रण उत्‍सव का आयोजन किया जाए, जिससे इसकी तस्‍वीर बदली जा सके। उनके पुत्र मियां हुसैन ने पिता की इच्‍छा गुजरात की तत्‍कालीन मोदी सरकार के पास पहुंचाई तो उनके सुझाव पर अमल हुआ और धोरडो की तकदीर बदलते देर नहीं लगी। वर्तमान में मियां हुसैन गांव के सरपंच हैं। उनके पिता अब नहीं हैं, लेकिन गांव में उनका स्मारक बना हुआ है।

धोरडो गांव में रण उत्सव के आयोजन के लिए यहां पर टेंट सिटी बनती है, जिसमें पर्यटक रुकते हैं और कच्छ के रेगिस्तान में फैले सफेद नमक का सर्दियों के सीजन में लुत्फ उठाते हैं। पिछले दिनों सरकार ने जी 20 की टूरिज्म बैठक यहीं पर आयोजित की थी। बताया जाता है कि 90 के दशक में यहां पर छोटे पैमाने पर दिनभर चलनेवाला उत्सव होता था। 2008 में तंबू में उत्सव की शुरुआत हुई।

Wednesday, October 18, 2023

साहित्य क्या है .. कागज के नोट पर अंकित मूल्य साहित्य क्यों नहीं है?


विद्यालय या महाविद्यालय में हममें से लगभग सभी ने साहित्य पढ़ा होगा। लेकिन साहित्य है क्या, इसका जवाब देने में हमें सोचना पड़ जाता है। इसलिए यहां पर हम संक्षेप में जानने की कोशिश करते हैं कि साहित्य का क्या मतलब है।

साहित्य शब्द संस्कृत के वाङ्मय, अंग्रेजी के लिटरेचर और उर्दू के अदब का समानार्थी है। प्राचीन भारतीय चिंतन परंपरा में साहित्य के अर्थ में काव्य शब्द का प्रयोग हुआ है। काव्य के लिए साहित्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सातवीं सदी में भर्तृहरि ने किया है। साहित्य शब्द की उत्पत्ति सहित शब्द से मानी जाती है। काव्यशास्त्र के प्राचीनतम ग्रन्थों में शामिल अपनी रचना काव्यालंकार में आचार्य भामह ने लिखा- शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्। अर्थात काव्य वह है जिसमें शब्द और अर्थ का सहभाव हो। सहित शब्द की व्याख्या 'स' जोड़ 'हित के रूप में भी की जाती है। अर्थात जिससे हित होता हो, रचनाकार का भी और रचना को पढ़ने या श्रवण करनेवाले का भी। इस तरह से साहित्य में लोकमंगल के भाव का भी समावेश है। अब सवाल उठता है कि तो हम मुद्रा के रूप में इस्तेमाल होने वाले कागज के नोट पर अंकित उसके मूल्य को भी साहित्य कहेंगे? उसमें भी शब्द और अर्थ का सहभाव है और लोगों का हित होता है। निश्चय ही हम उसे साहित्य नहीं कह सकते, क्योंकि आचार्यों ने साहित्य के कुछ अन्य लक्षण भी बताए हैं। साहित्यदर्पण: के रचयिता आचार्य विश्वनाथ ने कहा- वाक्यं रसात्मकं काव्यम्। अर्थात रसात्मक वाक्य को काव्य कहते हैं। आचार्य मम्मट ने लिखा- तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि। अर्थात दोषरहित गुणसहित एवं यथासंभव अलंकारयुक्त शब्दार्थ काव्य है। पंडितराज जगन्नाथ ने कहा- रमणीयार्थप्रतिपादक: शब्द: काव्यम्। अर्थात रमणीय अर्थ का प्रतिपादक शब्द काव्य है।

संस्कृत आचार्यों के बाद मध्यकाल के कवियों ने भी काव्य लक्षण पर विचार किया है, लेकिन उनकी बातों में संस्कृत आचार्यों की पुनरावृत्ति ही हुई है। उदाहरण के तौर पर मध्यकालीन कवि चिंतामणि ने कविकुल-कल्पतरु में कहा- सगुन अलंकारन सहित, दोष रहित जो होई। शब्द अर्थ वारौ कवित्त, विवुध कहत सब कोई। अर्थात कविता वह है जो गुणों से युक्त हो, अलंकारों से विभूषित हो और दोषरहित हो, जिसमें शब्द और अर्थ का सामंजस्य हो वही काव्य है।

आधुनिक युग में कई साहित्यकारों ने भी साहित्य के लक्षणों पर प्रकाश डाला है। प्रगतिवादी धारा से जुड़े लेखकों ने साहित्य को सामाजिक यथार्थ से जोड़कर परिभाषित किया। कहा गया कि साहित्य समाज का दर्पण है। मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य को 'जीवन की आलोचना' कहा। कई आधुनिक साहित्यकारों का मत संस्कृत आचार्यों से मेल खाता है। डॉ नगेंद्र के अनुसार- रमणीय अनुभूति, उक्ति वैचित्र्य और छंद इन तीनों का समन्वित रूप ही कविता है। अज्ञेय ने कहा- कविता सबसे पहले शब्द है और अंत में भी वही बात रह जाती है कि कविता शब्द है।

इस तरह से हमने देखा कि विभिन्न युगों में भिन्न-भिन्न विद्वानों ने साहित्य को परिभाषित किया है। इस बात पर लगभग सभी सहमत हैं कि साहित्य में शब्द और अर्थ का सामंजस्य होना जरूरी है।