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गौरतलब है कि होमियोपैथी के बारे में अंग्रेज़ी चिकित्सा का इस्तेमाल करने वाले डॉक्टर पहले से ही आपत्तियां जताते रहे हैं। 'वॉयस ऑफ़ यंग साइंस नेटवर्क' के ब्रितानी और अफ़्रीकी शोधकर्ताओं ने इस साल जून महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन को पत्र लिखकर कहा था, "हम विश्व स्वास्थ्य संगठन से मांग करते हैं कि वह टीबी, बच्चों के अतिसार, इंफ़्लुऐन्ज़ा, मलेरिया और ऐचआईवी के लिए होमियोपैथी के इलाज के प्रोत्साहन की भर्त्सना करे।" उनका कहना था कि उनके जो साथी विश्व के देहाती और ग़रीब लोगों के साथ काम करते हैं, वे उन तक बड़ी मुश्किल से चिकित्सा सहायता पहुँचा पाते हैं। ऐसे में जब प्रभावी इलाज की जगह होमियोपैथी आ जाती है तो अनेक लोगों की जान चली जाती है। उनके मुताबिक होमियोपैथी इन बीमारियों का इलाज नहीं कर सकती। 'वॉयस ऑफ़ यंग साइंस नेटवर्क' के सदस्य और सेंट ऐन्ड्रयू विश्वविद्यालय में जैव आण्विक विज्ञान के शोधकर्ता डॉक्टर रॉबर्ट हेगन के शब्दों में - "हम चाहते हैं कि दुनिया भर की सरकारें ऐसी ख़तरनाक बीमारियों के उपचार के लिए होमियोपैथिक इलाज के ख़तरों को समझें।" डॉक्टरों ने यह शिकायत भी की कि बच्चों में अतिसार के इलाज के लिए होमियोपैथी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। रॉयल लिवरपूल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में छूत की बीमारियों के विशेषज्ञ डॉक्टर निक बीचिंग कहते हैं, "मलेरिया, ऐचआईवी और टीबी जैसे संक्रमणों से भारी संख्या में लोग मरते हैं लेकिन इनका कई तरह से इलाज किया जा सकता है। जबकि ऐसे कोई तटस्थ प्रमाण नहीं हैं कि होमियोपैथी इन संक्रमणों में कारगर सिद्ध होती है। इसलिए स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा ऐसी जानलेवा बीमारियों के इलाज के लिए होमियोपैथी का प्रचार करना बहुत ग़ैर ज़िम्मेदारी का काम है।"
इस तरह की दलीलों का जवाब देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी माना है कि होमियोपैथी प्रभावी नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्टॉप टीबी विभाग की निदेशक डॉक्टर मारियो रेविग्लियॉं ने कहा, "टीबी के इलाज के लिए हमारे निर्देश और इंटरनेशनल स्टैंडर्स ऑफ़ ट्यूबरकोलॉसिस केयर - दोनों ही होमियोपैथी के इस्तेमाल की सिफ़ारिश नहीं करते।" विश्व स्वास्थ्य संगठन के बाल और किशोर स्वास्थ्य और विकास के एक प्रवक्ता ने कहा, "हमें अभी तक ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं कि अतिसार जैसी बीमारियों में होमियोपैथी के इलाज से कोई लाभ होता है।" उन्होने कहा, "होमियोपैथी निर्जलन की रोकथाम और इलाज पर ध्यान केंद्रित नहीं करती, जो कि अतिसार के उपचार के वैज्ञानिक आधार और हमारी सिफ़ारिश के बिल्कुल विपरीत है।"
होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति का जनक जर्मन फिजिशियन फ्रेडरिक सैमुएल हैनिमैन (10 अप्रैल, 1755 ई.-2 जुलाई, 1843 ई.) को माना जाता है। उनके द्वारा विकसित लॉ ऑफ सिमिलर्स को होमियोपैथ का आधारभूत सिद्धांत माना जाता है। भारत में होमियोपैथी चिकित्सा का आरंभ 19वीं शताब्दी के दूसरे-तीसरे दशक से (बंगाल से) हो गया था। आजादी के बाद 1952 में भारत सरकार ने होमियोपैथिक एडवाइजरी कमेटी का गठन किया, जिसकी सिफारिशों के आधार पर 1973 में ऐक्ट बनाकर इस चिकित्सा पद्धति को मान्यता प्रदान की गयी। होमियोपैथी में रिसर्च के लिए 1978 में स्वतंत्र सेंट्रल काउंसिल की स्थापना की गयी।
होमियोपैथी को बढ़ावा देने के लिए निश्चित तौर पर इसी तरह की कोशिशें अन्य देशों में भी हुई होंगी और शायद अधिकांश लोगों का मानना होगा कि इस चिकित्सा पद्धति से काफी लाभ हो रहा है। उल्लेखनीय है कि पूरी दुनिया भर में प्रचलित एलोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी आदि जैसी इलाज की कई पद्धतियों के बीच होमियोपैथी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। माना जाता है कि होमियोपैथिक दवाइयां रोग को जड़ से समाप्त कर देती हैं। खास बात यह है कि एलोपैथी आदि में जहां कभी-कभी दवा के साइड इफेक्ट या सूट न करने का खतरा होता है, वहीं होमियोपैथी में ऐसा कुछ नहीं होता। अपने देश में कुछ दिनों पूर्व जारी एक अध्ययन रिपोर्ट में एसोसिएटेड चेंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (एसोचेम) ने होमियोपैथी को बड़ी तेजी से लोकप्रिय होती चिकित्सा पद्धति बताया था। इसका कारण बताते हुए एसोचेम के प्रेसिडेंट वेणुगोपाल एन. धूत ने कहा, यह श्वांस संबंधी बीमारियों, आर्थराइटिस, डायबिटीज, थायरॉयड और अन्य तमाम गंभीर मानी जानी वाली बीमारियों की प्रभावी इलाज पद्धति है, और वह भी बिना किसी साइड इफेक्ट के।
होमियोपैथी के खिलाफ दी जा रही दलीलों के संदर्भ में सोसाइटी ऑफ़ होमियोपैथ्स की मुख्य कार्यकारी पाओला रॉस का कहना है, "ये होमियोपैथी के बारे में दुष्प्रचार करने की एक और नाकाम कोशिश है। होमियोपैथी के इलाज़ के बारे में अब बहुत ही पुख़्ता सबूत सामने आ रहे हैं जो बढ़ते जा रहे हैं। इसमें बच्चों में अतिसार इत्यादी भी शामिल है।" मुझे सोसाइटी ऑफ होमियोपैथ्स की बात सही लग रही है। वैसे भी चिकित्सा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में किसी भी एकाधिकारवादी तानाशाहीपूर्ण फतवे को उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस मामले में मैं विश्व स्वास्थ्य संगठन के खिलाफ और होमियोपैथी के साथ हूं। आप क्या सोचते हैं?