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दाने दाने पर लिखा है, खानेवाले का नाम। यह कहावत आपने जरूर सुनी होगी। लेकिन अब हमें उस समय के लिए तैयार रहना चाहिए, जब कहना पड़े, 'दाने दाने पर लिखा है, बनानेवाले का नाम।' हाल के वर्षों में मोंसैंटो, सिनजेंटा, बीएएसएफ आदि जैसी बहुराष्ट्रीय निजी कंपिनयों द्वारा तैयार जीन संवर्धित (Genetically Modified) बीजों का दबदबा जितनी तेजी से बढ़ रहा है, उसका यही निहितार्थ है।
जीएम पौधों का उत्पादन जेनेटिक इंजीनियरिंग विधि से किया जाता है। इसमें आनुवांशिक सामग्री मिलाकर फसल के गुण बदलते हैं। जींस के हस्तांतरण का यह कार्य प्रयोगशाला में होता है। उसके बाद उस फसल की प्रायोगिक खेती (Field Trials) कर उसे परखा जाता है। तत्पश्चात व्यापारिक रूप से फसल का उत्पादन किया जाता है।
जीएम फूड की स्वीकार्यता को लेकर दुनिया भर में विवाद रहा है। जीन का हस्तांतरण प्रकृति के विधान के विरुद्ध कार्य है तथा जरूरी नहीं कि इसके परिणाम अच्छे ही हों। इसको लेकर अनेक लोगों की नैतिक और धार्मिक आपत्तियां रहती हैं। खासकर शाकाहारियों को आशंका रहती है कि इस भोजन में मानव व पशु जीन न हों। पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) पर जीएम फसलों के साइड इफेक्ट होने की खबरें भी आती रहती हैं। वैसे भी निजी कंपनियों का मुख्य उद्देश्य मुनाफा होता है तथा इसके लिए वे बहुत सी अनुचित बातों को नजरअंदाज कर सकती हैं। इन कंपनियों पर भारत जैसे गरीब देशों में चोरी-चुपके फील्ड ट्रायल करने के आरोप भी लगते रहे हैं।
अभी तो एशियाई देशों खासकर भारत में पारंपरिक फसलों का महत्व बरकरार है। लेकिन भारत में भी मोनसेंटो और महीको (महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड कंपनी) कंपनियों के बीटी (बैसिलस थ्यूरेनजिएन्सिस) कपास बीज तमाम विरोध के बावजूद देश के कई हिस्सों में उगाए जा चुके हैं और उनके रकबे में लगातार विस्तार हो रहा है। यही नहीं, बीटी बैगन जैसे कई अन्य जीन संवर्धित फसलों की प्रायोगिक खेती शुरू हो चुकी है और अगले वर्ष से उन्हें बाजार में व्यावसायिक तौर पर उपलब्ध कराए जाने की योजना है।
जीएम सीड के बढ़ते हुए दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके कारोबार में लगी अमरीकी कंपनी मोनसेंटो, यूरोपीय कंपनी सिनजेंटा तथा जर्मन कंपनी बीएएसएफ ने पिछले वर्ष अरबों रुपये डॉलर का मुनाफा बटोरा। कुछ साल पहले तक विश्वव्यापी विरोध के कारण मोंसैंटो को जहां वर्ष 2003 में 2 करोड़ 30 लाख डालर का घाटा उठाना पड़ा था, उसीने वर्ष 2007 में एक अरब डॉलर का मुनाफा कमाया। यूरोप की जिनसेटा ने बीते वर्ष एक अरब 10 करोड़ डॉलर का शुद्ध लाभ अर्जित किया, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 75 फीसदी अधिक रहा। इन कंपनियों के बीज आज पराग्वे से लेकर चीन तक और भारत से लेकन अर्जेंटीना तक धड़ल्ले से बिक रहे हैं।
भारत में घाटे का सौदा हो चुकी खेती के भंवरजाल में फंसे किसानों को जीन संवर्धित हाइब्रिड बीज काफी लुभा रहे हैं। कृषि विशेषज्ञों द्वारा भी कहा जा रहा है कि कृषि उपज वृद्धि में आ चुके ठहराव को हाइब्रिड बीज ही गति दे सकते हैं। विश्वव्यापी खाद्य संकट ने भी जीन संवर्धित फसलों की स्वीकार्यता की राह आसान बनायी है।
जीएम फसल जब अधिक उपज देंगे तो कोई भी किसान गैर-जीएम पारंपरिक फसल नहीं उगाना चाहेगा। भविष्य में यह भी हो सकता है कि जीएम फसलों के अपमिश्रण से पारंपरिक फसल दूषित होकर विलुप्त हो जाएं। चूंकि जीएम बीजों के उत्पादन का करीब सारा कारोबार निजी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण में है, इसलिए वह दिन दूर नहीं जब हमारे भोजन के हरेक दाने पर किसी न किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी का नाम लिखा हो। यह भी संभव है कि तब हम फसलों को धान, गेहूं, अरहर, आलू, बैंगन, कपास जैसे उनके पारंपरिक नामों के बजाय ब्रांडनेम (पेप्सी व कोकाकोला की तरह) से जानें।
(फोटो बीबीसी हिन्दी से साभार)