प्राचीन यूनान के शासक सिकंदर (Alexander) को विश्व विजेता कहा जाता है। लेकिन क्या आप सिकंदर के गुरु को जानते हैं?
सिकंदर के गुरु अरस्तु (Aristotle) थे। अरस्तु के गुरु प्लेटो (Plato) थे, जिन्हें अरबी में अफलातून कहा गया। प्लेटो के द्वारा एथेंस शहर में 387 ईसवी पूर्व में पश्चिमी जगत की उच्च शिक्षा की पहली संस्था एकेडमी (Academy) की स्थापना की गई। आज उच्च शिक्षा के केन्द्रों के लिए बहुप्रयुक्त एकेडमी शब्द वहीं से ली गई है। प्लेटो के द्वारा रचित ग्रंथ रिपब्लिक काफी प्रसिद्ध है। प्लेटो के गुरु सुकरात (Socrates) थे, जिन्हें बहुधा पाश्चात्य दर्शन का जनक ( founding father of western philosophy) माना जाता है।
पश्चिम के ज्ञान-जगत की दार्शनिक पृष्ठभूमि को तैयार करने में इन तीन दार्शनिकों (सुकरात, प्लेटो और अरस्तू) की त्रयी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
पाश्चात्य दर्शन की शुरुआत यूनान से मानी जाती है। सुकरात, प्लेटो और अरस्तू से भी पहले वहां थेल्स जैसे दार्शनिकों की चर्चा मिलती है। सोफिस्ट लोगों की भी चर्चा मिलती है, जो भ्रमणशील शिक्षक थे और जरूरी नहीं था कि वे यूनान के ही हों। वे यूनान में अमीर लोगों से पैसे लेकर उन्हें शिक्षा दिया करते थे। लेकिन जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि पाश्चात्य दर्शन की शुरुआत आमतौर पर सुकरात से मानी जाती है, इसलिए यहां हम सुकरात के बारे में कुछ और जानने की कोशिश करते हैं। सुकरात ने खुद कुछ नहीं लिखा। उनके व्यक्तित्व व विचारों के बारे में हमें उनके समकालीनों के लेखन से जानकारी मिलती है।
सुकरात के जिन विचारों के बारे में हमें जानकारी मिलती है उनमें कुछ मुख्य इस प्रकार हैं -
(1) मानव ज्ञान खुद की अज्ञानता की पहचान से शुरू होता है; (2) अपरीक्षित जीवन जीने योग्य नहीं है; (3) सद्गुण ही ज्ञान है; और (4) एक अच्छे इंसान को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता, क्योंकि चाहे उसे कितना भी दुर्भाग्य झेलना पड़े, उसका पुण्य बरकरार रहेगा।
सुकरात के बारे में कहा जाता है कि वे देखने में सुंदर नहीं थे। बड़े-बड़े बाल रखे हुए अस्त-व्यस्त कपड़ों में नंगे पैर चला करते थे। फिर भी वे एथेंस के युवा वर्ग में वे काफी लोकप्रिय थे।
सुकरात अपनी प्रश्न पूछने की पद्धति के लिए प्रसिद्ध थे, जिसे अब सुकराती प्रश्नोत्तरी (Socratic Questioning) के नाम से जाना जाता है। इस पद्धति में शिक्षक छात्र को उच्चतम ज्ञान की प्राप्ति कराने के लिए अज्ञानी मानसिकता अपना कर प्रश्न पूछता है। सुकरात ने लोगों में मान्यताओं व धारणाओं को चुनौती देने और आलोचनात्मक सोच व आत्म-निरीक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए इस पद्धति का उपयोग किया।
तत्कालीन यूनान में प्रचलित मान्यताओं पर सवाल खड़ा करने के चलते सुकरात पर न्यायालय में मुकदमा चला जिसमें उन्हें देव निंदा और युवाओं को मतिभ्रष्ट करने के आरोप लगाकर विषपान के जरिए मौत की सजा सुनाई गई। सुकरात के शिष्यों व शुभचिंतकों ने मृत्यु दंड से बचाने केलिए उन्हें जेल से भगाने का इंतजाम किया, लेकिन सुकरात देश के कानून के खिलाफ चलने को तैयार नहीं हुए और उन्होंने हंसते-हंसते विष का प्याला पी कर मृत्यु का आलिंगन किया।