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आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
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आज हम आपसे हिन्दी के विषय में बातचीत करना चाहते हैं। हो सकता है, हमारे कुछ मित्रों को लगे कि किसान को खेती-बाड़ी की चिंता करनी चाहिए। वह हि...
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भाषा का न सांप्रदायिक आधार होता है, न ही वह शास्त्रीयता के बंधन को मानती है। अपने इस सहज रूप में उसकी संप्रेषणयीता और सौन्दर्य को देखना हो...
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आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान कि...
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ऐसे दौर में जब लोग निजी लाभ के लिए रचना करते हैं, गोरख पाण्डेय ने जनहित के लिए लिखा। उन्होंने जनता की जिजीविषा बनाये रखने के लिए उसकी ही ज...
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वेदों का चर्खा चला, सदियां गुजरीं। लोग-बाग बसने लगे। फिर भी चलते रहे। गुफाओं से घर उठाये। उंचे से नीचे उतरे। भेड़ों से गायें रखीं। जंगल से ब...
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अब समय आ गया है कि हम ब्लॉगर डैशबोर्ड की जगह सीधे गूगल डैशबोर्ड पर जाकर ब्लागरी या अन्य संबंधित काम करें। जी हां, गूगल ने नित नए उत्पाद ...
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11 अप्रैल को हिन्दी के प्रख्यात कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की पुण्यतिथि थी। उस दिन चाहता था कि उनकी स्मृति से जुड़ी कुछ बातें खेती-...
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दुनिया में पानी के बाद यदि कोई चीज सबसे अधिक पी जानेवाली है तो वह संभवत: चाय ही है। सुबह-सुबह चाय न मिले तो दिन का जायका ही नहीं बनता। आप र...
Sarthak vyangy. Voxmedia, Boredpanda & Ameblo profile
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