खेती-बाड़ी में भी उनकी स्मृति बनी रहे, इस कोशिश में प्रस्तुत है उनका एक भोजपुरी गीत :
गोरख पाण्डेय |
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अंगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...
नोटवा से आई, बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...
गांधी से आई, आंधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...
कांगरेस से आई, जनता से आई
झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...
डालर से आई, रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...
वादा से आई, लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...
लाठी से आई, गोली से आई
लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...
महंगी ले आई, ग़रीबी ले आई
केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...
छोटका का छोटहन, बड़का का बड़हन
बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...
परसों ले आई, बरसों ले आई
हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...
धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई
अंखियन पर परदा लगाई
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
गोरख पाण्डेय द्वारा ही स्थापित संगठन जन संस्कृति मंच से जुड़ी पटना की चर्चित नाट्य संस्था हिरावल के कलाकारों की आवाज में यह सुनने लायक है :
(गीत कविता कोश से साभार)