कृषि विज्ञान के क्षेत्र में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसे खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से हरित क्रांति के बाद सबसे अहम माना जा रहा है। ब्रिटेन के लिवरपूल व ब्रिस्टल विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने नॉरविच के जॉन इन्स सेंटर की मदद से गेहूं के जीनोम के जेनेटिक सीक्वेंस को पूरी तरह से डीकोड कर लेने में कामयाबी हासिल की है। सदियों से गेहूं दुनिया भर में मानव का मुख्य आहार रहा है। लेकिन जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी के चलते जरूरतों के हिसाब से इसकी उपलब्धता चिंता का विषय बनी हुई थी। वैज्ञानिकों का दावा है कि ताजा उपलब्धि से सूखे और बीमारियों से लड़नेवाले और अधिक उपज देनेवाले प्रभेदों का विकास करने में मदद मिलेगी, जिससे अनाज का उत्पादन काफी बढ़ जाएगा। जाहिर है, तब दुनिया में अधिक लोगों को अधिक मात्रा में खाने के लिए रोटी उपलब्ध होगी।
गौरतलब है कि चावल और मक्का के जीनोम पहले ही डीकोड किए जा चुके हैं। लेकिन जटिल और बड़ी संरचना की वजह से गेहूं के जीनोम को डीकोड करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था। गेहूं का जीनोम अब तक डीकोड किया गया सबसे बड़ा जीनोम है। यह आकार में मानव जीनोम से भी पांचगुना बड़ा है। हालांकि जैसा कि इस शोध के अगुआ रहे लिवरपूल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नील हॉल बताते हैं कि जहां मानव जीनोम का सीक्वेंस तैयार करने में पंद्रह साल लगे थे, डीएनए प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के चलते गेहूं का जेनेटिक सीक्वेंस महज एक साल में तैयार कर लिया गया।
पूरी खबर बीबीसी, द हिन्दू या नवभारत टाइम्स में पढ़ी जा सकती है। फोटो द हिन्दू से साभार।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
आज पहली बार हमारे गांव के मैनेजर बाबू को यह दुनिया अच्छे लोगों और अच्छाइयों से भरी-पूरी लग रही है। जिन पढ़े-लिखे शहरी लोगों को वे जेठ की द...
-
क्या सचमुच सरकार गरीबी मिटा रही है? वह शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पेयजल आदि पर जो खर्च कर रही उसका लाभ सही में लक्षित लोगों को मिल रहा है?...
-
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान कि...
-
सिर्फ पूंजी पर ही नजर रखना और समाज की अनदेखी करना नैतिकता के लिहाज से गलत है ही, यह गलत अर्थनीति भी है। करीब एक दशक पहले जब देश में आर्थिक स...
-
यदि आपकी पर्यटन व तीर्थाटन में रुचि है तो आपको कैमूर पहाड़ पर मौजूद मुंडेश्वरी धाम की यात्रा एक बार अवश्य करनी चाहिए। पहाड़ की चढ़ाई, जंगल...
-
प्रा चीन यूनान के शासक सिकंदर (Alexander) को विश्व विजेता कहा जाता है। लेकिन क्या आप सिकंदर के गुरु को जानते हैं? सिकंदर के गुरु अरस्तु (Ari...
-
अब समय आ गया है कि हम ब्लॉगर डैशबोर्ड की जगह सीधे गूगल डैशबोर्ड पर जाकर ब्लागरी या अन्य संबंधित काम करें। जी हां, गूगल ने नित नए उत्पाद ...
-
आ म यानी मेग्नीफेरा इंडिका का रसदार फल। फलों का राजा। भारत का राष्ट्रीय फल। महाकवि कालीदास ने इसकी प्रशंसा में गीत लिखे। यूनान के प्रतापी ...
महत्वपूर्ण उपलब्धि और महत्वपूर्ण जानकारी भी. आभार. .
ReplyDeletebahut mahatvpurn jaankari.....dhnywad!
ReplyDeleteबहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी मिली.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत अच्छी प्रस्तुति। लेकिन जिस आनाज को कीडे नही खायेगे, या खायेगे तो मर जायेगे, उसे इंसान केसे खायेगा, क्या उस के लिये वो जहर नही होगा.:::?
ReplyDeleteराज भैया, जीन संवर्धन प्रौद्योगिकी में बुराई नहीं है, बुराई है इसके दुरूपयोग में। इसका उपयोग इस तरीके से होना चाहिए कि जैव-विविधता और अनाजों की गुणवत्ता बरकरार रहे। हालांकि मुनाफे के लिए काम करनेवाली निजी कंपनियां ऐसा न कर अक्सर अनाजों की जीन संरचना के साथ खतरनाक छेड़-छाड़ करने लगती हैं, जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज के लिए नुकसानदेह है।
ReplyDeleteदेखते हैं। क्या गोदामों में सड़ेगा भी नहीं यह।
ReplyDeleteशुभ समाचार के लिये धन्यवाद!
ReplyDeleteपैदावार तो अभी भी हो रही है, लेकिन जरुरत है शरद पॉवर जैसे अनाज्खोरो को खदेड़ने कि.....
ReplyDeleteFantastic post i really like it Baby Care Products
DeleteGreat news ! ..Thanks.
ReplyDelete