Wednesday, April 13, 2011

आपने महुआ घटवारिन की कथा तो सुनी ही होगी !

11 अप्रैल को हिन्‍दी के प्रख्‍यात कथाशिल्‍पी फणीश्‍वर नाथ रेणु की पुण्‍यतिथि थी। उस दिन चाहता था कि उनकी स्‍मृति से जुड़ी कुछ बातें खेती-बाड़ी में भी सहेज लूं। लेकिन गांव में संसाधनों की सीमाएं होती हैं। कभी नेट फेल, कभी बत्‍ती गुल। सब कुछ ठीक-ठाक रहा भी तो खेती-गृहस्‍थी के पचास तरह के काम। फिर भी गांव की मिट्टी में कुछ है जो मन को बांधे रहती है, अपने से दूर नहीं जाने देती। माटी की यही महक रेणु की रचनाओं में भी है।

बिहार के अररिया जिले के औराही हिंगना गांव में 4 मार्च 1921 को जन्‍मे इस सुप्रसिद्ध साहित्‍यकार की रचनाओं में ग्रामीण समाज का जितनी बारीकी से और जिस आंचलिक भाषा में चित्रण हुआ है, वह अन्‍यत्र दुर्लभ है। जैसा कंटेट, बिलकुल वैसी ही भाषा। दोनों एकरूप। गांव की कथा, गांव की भाषा, गांव का परिवेश, गांव के पात्र...पूरा का पूरा देहात जीवंत हो उठता है रेणु की रचनाओं में। उनके उपन्‍यास या कहानियों को पढ़ना, तब के उत्‍तर भारतीय गांव की यात्रा करने जैसा है। ऐसी यात्रा जिसका कोई अंत नहीं। यात्रा समाप्‍त हो चुकने के बाद भी मानसिक यात्रा जारी ही रहती है। इस यात्रा के क्रम में महुआ घटवारिन जैसे कई पात्र हमारे इतने करीब आ जाते हैं कि अक्‍सर उनकी परछाईं में हम अपनी छाया तलाशते रह जाते हैं।

जिन्‍होंने रेणु को पढ़ा है, वे महुआ घटवारिन को शायद ही भूल पाएं। उनकी लोकप्रिय कहानी मारे गए गुलफाम में महुआ का प्रसंग आता है। सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्‍द्र ने इस कहानी पर तीसरी कसम नामक फिल्‍म बनायी थी, जिसके संवाद खुद रेणु ने लिखे थे। बासु भट्टाचार्य के निर्देशन में 1966 में बनी यह फिल्‍म उस समय फ्लॉप हो गयी थी और बताते हैं कि शैलेन्‍द्र इस सदमे को बर्दाश्‍त नहीं कर सके थे। फिल्‍म की नाकामयाबी उनकी मौत का कारण बनी। लेकिन आनेवाले समय के लिए यह फिल्‍म यादगार बन गयी। इसके गाने यादगार बन गए, इसके दृश्‍य यादगार बन गए, इसके किस्‍से यादगार बन गए।

बहरहाल, हम बात कर रहे थे महुआ घटवारिन की। कथा में बैलगाड़ीवान हीरामन नौटंकी वाली हीराबाई को रास्‍ते में उसके बारे में बताता है, ‘’इसी मुलुक की थी महुआ। थी तो घटवारिन, लेकिन सौ सतवंती में एक थी। उसका बाप दारू-ताड़ी पीकर दिन-रात बेहोश पड़ा रहता। उसकी सौतेली मां साच्छात राकसनी। बहुत बड़ी नजर-चालक। रात में गांजा-दारू-अफीम चुराकर बेचनेवाले से लेकर तरह-तरह के लोगों से उसकी जान-पहचान थी। सबसे घुट्टा-भर हेल-मेल। महुआ कुमारी थी। लेकिन काम कराते-कराते उसकी हड्डी निकाल दी थी राकसनी ने। जवान हो गई, कहीं शादी-ब्याह की बात भी नहीं चलाई।‘’ एक रात सौतेली मां महुआ को सौदागर के हाथ बेच देती है। सावन-भादो की उमड़ी हुई नदी, भयावनी रात, आकाश में बिजली की कड़कड़ाहट.. लेकिन सौतेली मां को बारी-क्‍वारी नन्‍ही बच्‍ची पर तनिक भी दया नहीं आती। वह किवाड़ बंद कर लेती है और महुआ को छोड़ देती है अकेली घाट पर जाने के लिए। आसमान में मेघ हड़बड़ा उठते हैं और हरहराकर बरखा होने लगती है। महुआ रोने लगती है अपनी मां को याद करके। आज उसकी मां होती तो ऐसे दुर्दिन में कलेजे से सटाकर रखती अपनी महुआ बेटी को। महुआ को मां पर गुस्‍सा भी आता है, यही दिन दिखाने के लिए कोख में रखा था.. जनमते ही नमक चटाकर मार क्‍यों नहीं डाला था :

''हूं-ऊं-ऊं-रे डाइनियां मैयो मोरी-ई-ई,
नोनवा चटाई काहे नाही मारलि सौरी-घर-अ-अ।
एहि दिनवाँ खातिर छिनरो धिया
तेंहु पोसलि कि तेनू-दूध उगटन।‘’

तीसरी कसम फिल्‍म में भी महुआ घटवारिन की कथा बहुत सुंदर व मार्मिक तरीके से सुनायी गयी है। वैसे तो इस फिल्‍म का हर गाना बेजोड़ है, लेकिन यह गीत मन को अंदर तक बेध डालता है :

26 comments:

  1. @''हूं-ऊं-ऊं-रे डाइनियां मैयो मोरी-ई-ई,
    नोनवा चटाई काहे नाही मारलि सौरी-घर-अ-अ।
    एहि दिनवाँ खातिर छिनरो धिया
    तेंहु पोसलि कि तेनू-दूध उगटन।‘’

    आगे क्या हुआ? क्या यह कहानी ऑनलाइन उपलब्ध है? ये लोककथायें इतनी हृदयविदारक क्यों होती हैं?

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  2. तीसरी कसम को तो कई बार देख चुका हूं। तीसरी कसम के बारे में कहा जाता है कि यह सेल्यूलाइड पर रची गई एक कविता है...शब्दश: सत्य है।

    लेकिन मैंने रेणु जी की जितनी कहानियां पढ़ी हैं उन सबमें सबसे ज्यादा पसंद है 'लाल पान की बेगम'। कभी मौका मिले तो पढ़ियेगा जरूर.....वो भाषा की खूबसूरती....वो लहालोट कर जाने वाले बोल कि क्या कहा जाय...एकदम मन मस्त कर देने वाली कहानी है 'लाल पान की बेगम'

    यदि आपने अब तक न पढ़ी हो तो जरूर पढ़ें - यह रहा गुगल बुक्स के जरिये यहां पढ़ने का लिंक -

    लाल पान की बेगम

    रेणू जी को लेकर लिखी गई बढ़िया पोस्ट।

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  3. उत्तमोत्तम पोस्ट!
    फणीश्वरनाथ रेणू जी तो बारम्बार पठनीय हैं!

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  4. kal aapki yah post charchamanch par hogi .. aap vaha aa kar apne vicharon se anugrahit kare .. aabhaar..

    Phanishwar ji ko Sat Sat Naman

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  5. आभार
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  6. रेणू जी के विषय में दी बहुत सार्थक है ....आपका आभार

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  7. आपके ब्लॉग का अनुसरण कर लिया है ...अब आपके विचारों से सदा अवगत रहूँगा ....!

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  8. @अनुराग भाई, रेणु की यह कहानी पंचम जी द्वारा उपलब्‍ध कराए गए लिंक पर मौजूद है। इसे यहां भी पढ़ा जा सकता है http://www.abhivyakti-hindi.org/gauravgatha/2001/magregayegulfam/mgg1.htm
    @सतीश पंचम जी, लाल पान की बेगम मुझे भी पसंद है। खुशी की बात है कि गांव देहात में अब भी वैसा माहौल दिखता है। हां, यह जरूर है कि बैलगाड़ी की जगह अब ट्रैक्‍टर ने ले ली है:)

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  9. रेणु जी को पढना सच में सौभाग्य की बात है ... बहुत बढ़िया पोस्ट....

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  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। आभार|

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  11. बढिया विश्‍लेषण .. सार्थक पोस्‍ट !!

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  12. रेणु जी की रचना तो स्कूल की किताबों में भी खूब पढ़ी। यहां पढ़ना भी अच्छा लगा।

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  13. तीसरी कसम एक शानदार कहानी है, और इस कहानी पर बनी फिल्‍म भी उतनी ही शानदार है।


    ---------
    हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
    अब क्‍या दोगे प्‍यार की परिभाषा?

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  14. This is an interesting article. Thanks for the sharing.

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  15. आपको, परिजनों तथा मित्रों को दीपावली पर मंगलकामनायें! ईश्वर की कृपा आपपर बनी रहे।

    ********************
    साल की सबसे अंधेरी रात में*
    दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
    लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

    बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
    भूल कर के घाव उन घातों के हम
    समझें सभी तकरार को बीती हुई

    कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
    अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
    प्रेम की गढ लें इमारत इक नई
    ********************

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  16. नमस्कार मित्र आईये बात करें कुछ बदलते रिश्तों की आज कीनई पुरानी हलचल पर इंतजार है आपके आने का
    सादर
    सुनीता शानू

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  17. सार्थक, सारगर्भित प्रस्तुति, सादर.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें.

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  18. आज 22/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  19. What's up colleagues, pleasant post and nice urging commented here, I am in fact enjoying by these.
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  23. This comment has been removed by the author.

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अपना बहुमूल्‍य समय देने के लिए धन्‍यवाद। अपने विचारों से हमें जरूर अवगत कराएं, उनसे हमारी समझ बढ़ती है।