Thursday, June 26, 2008

बुरा होगा वह दिन जब भारतीय किसान बीज के लिए विदेश पर निर्भर रहेगा

''किसानों को अच्‍छी क्‍वालिटी के बीजों की उपलब्‍धता पक्‍का करने के लिए सरकार ने बीज विधेयक में संशोधन करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्‍यक्षता में हुई केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में तय किया गया कि बीज विधेयक 2004 में सरकारी संशोधन लाया जायेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्‍यमंत्री पृथ्‍वीराज चाह्वाण ने नई दिल्‍ली में संवाददाताओं को बताया कि प्रस्‍तावित संशोध्‍ान से उच्‍च क्‍वालिटी वाले बीजों की उपलब्‍धता किसानों को पक्‍का की जा सकेगी। उन्‍होंने बताया कि विधेयक में प्रावधान होगा कि घटिया क्‍वालिटी के बीजों की बिक्री रुके, बीज उत्‍पादन में निजी क्षेत्र की सहभागिता बढ़े, बीजों का भली-भांति परीक्षण हो और बीजों के आयात को उदार बनाकर किसानों के हितों की सुरक्षा हो सके।''

यह खबर 26 जून, 2008 को बीज विधेयक में संशोधन करेगी केन्‍द्र सरकार शीर्षक से प्रभासाक्षी पोर्टल पर प्रकाशित हुई है। ख्‍ाबर से स्‍पष्‍ट है कि बीजों का महंगा होना सरकार की चिंता नहीं है। खबर में कहीं भी किसानों को सस्‍ते दर पर बीजों को उपलब्‍ध कराने की बात नहीं है। सरकार चिंतित है घटिया क्‍वालिटी के बीजों की बिक्री से। वह किसानों को अच्‍छे क्‍वालिटी के बीज उपलब्‍ध कराना चाहती है। इसके लिये उसे बीज उत्‍पादन में निजी क्षेत्र की सहभागिता बढ़ाना और बीजों के आयात को उदार बनाना जरूरी जान पड़ता है। बीज विधेयक 2004 में प्रस्‍तावित संशोधन में वह इसके लिये आवश्‍यक प्रावधान करेगी।

घटिया क्‍वालिटी के बीजों की बिक्री पर रोक लगे और किसानों को अच्‍छे क्‍वालिटी के बीज मिलें, इससे भला किसे एतराज हो सकता है। लेकिन इसके लिये बीजों के आयात और निजी क्षेत्र की सहभागिता को जरूरी बताना उचित नहीं जान पड़ता। क्‍या राष्‍ट्रीय बीज निगम और राज्‍य बीज निगमों द्वारा उत्‍पादित बीज घटिया होते हैं, जो निजी क्षेत्र की सहभागिता बढ़ाना जरूरी बताया जा रहा है। वैसे भी सरकार के बीज निगम सिर्फ सरकारी फार्मों पर ही बीज उत्‍पादन नहीं कराते, बल्कि किसानों को आधार बीज उपलब्‍ध कराकर अपनी देखरेख में उनके खेतों में भी प्रमाणित बीज उत्‍पादित कराते हैं। वह भी तो निजी क्षेत्र की सहभागिता ही है। जा‍हिर है सरकार इतना से संतुष्‍ट नहीं है। जो काम आज नेशनल सीड कॉरपोरेशन की अगुवाई में हो रहा है, उस काम में वह शायद निजी कंपनियों को अगुवा बनाना चाहती है।

सरकार का इरादा विदेश से अधिक मात्रा में बीज के आयात का भी है। इसके लिये वह नियमों को उदार बनाना चाहती है। हालांकि सरकार की यह नीयत कई सवाल खड़ा करती है। मसलन, क्‍या अपने देश में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, विभिन्न कृषि विश्‍वविद्यालय व अन्‍य शोध संस्‍थाओं के कृषि वैज्ञानिक जिन बीजों का विकास कर रहे हैं, वे सही नहीं हैं? क्‍या हमारे कृषि वैज्ञानिक बीज के मामले में देश को आत्‍मनिर्भर बनाये रखने में अक्षम हैं? क्‍या हमारे देश में दूसरी हरित क्रांति आयातित बीजों के बूते होगी? अपनी मिट्टी पर उपजनेवाले जिन फसल-प्रभेदों पर हमें नाज रहा है, विदेशों में भी जिनकी मांग रही है, उन्‍हें हम त्‍याग कर विदेशी प्रभेदों को अपनायें?

बीज विधेयक में ऐसे संशोधन से तो सिर्फ बीज उत्‍पादन से जुड़ी विदेशी कंपनियों और बीज आयातकों व अन्‍य कारोबारियों का भला होगा। बाहर से बीजें आयेंगी, तो निश्चित है कि उसमें बड़ा परिमाण जीन संवर्द्धित बीजों का होगा, जिनके औचित्‍य को लेकर दुनिया भर में विवाद है। इससे तो हमारी परंपरागत कृषि प्रणाली को नुकसान होगा ही, कृषि लागत अत्‍यधिक बढ़ जायेगी। ये परिस्थितियां किसान ओर किसानी दोनों को बरबाद करेंगी, जिसका खामियाजा सारे देशवासियों को उठाना होगा। कितना बुरा होगा वह दिन जब हम फसलों के बीज के लिये भी विदेश पर आश्रित हो जायेंगे? कहीं जाने या अनजाने में सरकार बीजों के मामले में हमारी आत्‍मनिर्भरता को समाप्‍त करने की साजिश का हिस्‍सा तो नहीं बन रही?

हमारे यहां यह विडंबना ही है कि रिकार्ड उत्‍पादन होने के बावजूद हमारी उपज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है, और महंगा होने के बावजूद विदेशी बीजों के आयात को सरल बनाया जा रहा है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने इस समय चावल व कुछ अन्‍य कृषि उत्‍पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है। इस बेमेल नीति का नतीजा सामने भी आ रहा है - किसानों की कृषि लागत इतनी बढ़ती जा रही है कि फसल बेचकर उसे निकालना भी मुश्किल हो रहा है।

5 comments:

  1. आपका प्रयास वाकई सराहनीय है

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  2. मुझे भी समझ नहीं आता कि भारतीय कृषि विज्ञान चमत्कार क्यों नहीं दिखा रहा। और एक क्रान्ति बहुत समय से ओवर ड्यू है!

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  3. ये विडम्बना ही है कि किसानों के हितों का ध्यान रखने की जगह ऐसी फैसले ले रही है सरकार !

    क्या ये विश्व व्यापर संगठन के नियमों का असर है ?

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  4. सच में यह एक विडम्बना ही है...

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  5. "हमारे यहां यह विडंबना ही है कि रिकार्ड उत्‍पादन होने के बावजूद हमारी उपज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है, और महंगा होने के बावजूद विदेशी बीजों के आयात को सरल बनाया जा रहा है।"

    बहुत ही चौंका देने वाली खबर है. आपके पिछले कई लेख देखे. आपका विश्लेषण हमारे लिये बहुत उपयोगी है. आभार !!

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